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कहाँ मिलेंगे अब विवेकानंद

कहाँ मिलेंगे अब विवेकानंद 

कहाँ मिलेंगे अब विवेकानंद,
कहाँ मिलेगा अब वैसा संस्कार,
लहराया जिसने परचम भारत का,
जिसे देख रहा था जिसे  संसार।
      कहाँ मिलेंगे अब...।

कहाँ मिलेगा अब उनसा पहनावा,
कहाँ मिलेगा वो बात-बिचार,
कहाँ मिलेगी अब वैसी सादगी,
कहाँ मिलेगा वैसा सद्व्यवहार।
     कहाँ मिलेंगे अब...।

हम भूल गये उनके आदर्शों को,
हम भूल रहे उनके संस्कार,
हो रहे सब स्वार्थ में अंधे,
भूल गये हम उनके सद्विचार। 
      कहाँ मिलेंगे अब...।

उनके आदर्श को अपनायें सभी,
ग्रहण करें उनसा शील-संस्कार ,
चलें उनके पदचिन्हों पर फिर से,
करें उनका सपना साकार।
      कहाँ मिलेंगे अब...।

अब तो जागो धरती पुत्रों,
छोड़ो अब ये काट व मार,
बना दो फिर जगतगुरू भारत को,
मिलेगी तम्हें यश-कीर्ति अपार। 
      कहाँ मिलेंगे अब...।
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