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न जाने क्यूँ

न जाने क्यूँ

बने रहना चाहते हैं
हम
निरपेक्ष?
कभी
सशक्त पंख होने
और 
उडने की क्षमता के बावजूद|
कर लेते हैं
आँख बन्द
सामने
बिल्ली को देखकर।
और बिल्ली
वह तो बैठी ही है
शिकार की तलाश मे
घात लगाये
चरम पंथी बन।
देखा है
कभी कभी
सीही को( कांटेदार छोटा सा जानवर)
शेर का
मुकाबला करते?
शायद नही,
यह 
नजरिये की नही
अपितु
हौसले की बात है।
आप
कह सकते है
सीही को
अति वादी
या 
चरमपंथी
मगर
नही है साहस
कहने का
शेर को
वाम पंथी
जो
निज स्वार्थ मे
कभी कभी
केवल
वर्चस्व के लिये
करता है हमला
बनाना चाहता है 
शिकार
अनेक अबोध
नरम पंथी
शाकाहारी
विचार रखने वाले
निरपेक्ष 
छोटे छोटे जानवरो को।
जो
नही मिटा पाते
उसकी भूख
मगर
भय वश
मान लेते हैं
उसे
जंगल का राजा।
कभी देखा है
जंगल मे
हाथी को
वह नही डरता
शेर से
मगर
नही मानता
कोई 
उसे राजा
जंगल का।
जानते है क्यों?
वह
अतिवादी नही है
नही मारता
राह मे आने वाले
किसी भी
छोटे बडे जानवर को।
बस खत्म कर दें
चर्चा
वाम पंथ या दक्षिण पंथ की
यहीं?
नही 
एक बार
शाकाहारी 
जंगली भैंसे का भी
अवलोकन करो
और समझो
अन्तर
पंथ का
अति वाद और
साम्यवाद का|
धर्मनिरपेक्ष और निरपेक्ष का,
धर्म के समर्थक
और
अधर्मी का।
भैंसा
शाकाहारी,
जिसे मान लिया गया
फकत
शिकार
शेर के लिये
निरपेक्ष रहने के कारण।
कर लेता है
कभी कभी
मुकाबला
शेर का
पटक देता है
उसे
अपने बलशाली
सीँगो पर उठाकर
जब कभी
शेर
करता है शिकार
उसके मासूम बच्चे का।
बस
यही तो है
असहिष्णुता
जो फैलायी जाती है
शेर
तथा 
उसके समर्थक 
हिंसक पशुओं द्वारा
धर्मनिरपेक्षता पर
बताया जाता है
हमला
वाम पंथियो द्वारा।
तब
शेरो का पूरा झुण्ड
घेरता है
उन भैंसो को
और 
बनाता है शिकार
किसी एक भैंसे को।
और बाकी भैंसे
हा हा हा -----+
देखते हैं
सामने खडे होकर
बनते हुये
शिकार
अपने ही साथी का।
और लौट जाते है
कुछ देर बाद
मानकर
नियती को
सर्वोपरि।

अ कीर्ति वर्द्धन
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