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"तदबीर"

  "तदबीर"

रह गई सब तदबीर धरी की धरी,
अचानक ही जब छूट गई नौकरी!

बड़े सुनहरे सपने लेकर आया था नए शहर,
पल में चकनाचूर हो गए गया सब कुछ बिखर।

बहना के  मैं जल्दी से पीले करूंगा हाथ,
माँ बाबूजी को लाकर रखूंगा अपने साथ।

छोटे भाई को अच्छी स्कूल में पढ़ाऊंगा,
पढ़ा लिखा कर उसे इंजीनियर बनाऊंगा।

यूँ समझो मैं पहुंच गया था किसी शिखर पर ,
पर यह क्या धड़ाम से गिरा सीधा जमीं पर!

कर्मचारियों की कटौती में मेरी कटौती हो गई, 
स्थायी नौकरी से  अचानक मेरी छुट्टी हो गई।

अब फिर रहा मायूस सड़कों पर मारा मारा,
फिर काम मिल जाए दे दो कोई नौकरी दोबारा।

मां बाप और भाई बहन बैठे आस लगाए,
फिर से भैया का मनी ऑर्डर मिल जाए।
✍सुमित मानधना 'गौरव', सूरत 😎
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