देश ने जिन्हे भुला दिया
रचित ऋचा श्रावणी
मेरी यह कविता उस वीरांगना को समर्पित है जिन्होंने नेता जी के साथ कदम से कदम मिलाकर आजादी की जंग में शरीक हुई। राजमणि सरस्वती जो INA के लिए जासूसी की। मेरे कुछ शब्द इनके सम्मान में।
🙏। नेता जी की सिंहनी 🙏।
आजादी की जंग छिड़ी थी
अंग्रेजो को देश से भागना था
तब रंगून शहर में
तब दुर्गा का अवतार हुआ था।
समय था सन 1927 का जब तमिल संपन्न परिवार
में जन्म लिया वीर बाला ने
नाम परा राजमणि, जो गुण से थी तेजस्विनी
मुख पर था जिसके आलौकिक उजाला
10 वर्ष की आयु में
नेताजी से प्रेरित होकर
उठा बंदूक कंधे पर
निशानेबाजी सीखने लगी।
पिता करते थे आंदोलन का सम्मान
सहायता करने हेतु , करते थे धन का दान
आभार प्रकट करने आए एक दिन
हमारे बापू, गांधी महान।
देख बच्ची के हाथों बंदूक
हुआ उन्हे हिंसा का आभास
अहिंसा परमो धर्मः का दिया ज्ञान
परंतु मणि के ना आया तनिक भी रास।
अब आई बारी उम्र सोलहवीं की
हर लड़की सपने संजोए सलोनी सी
पर कहा राज को यह सब था मंजूर
❤️ में नेताजी और सिर पर आजादी का जुनून।
नेताजी का भाषण सुन
दिया उसने अपने सारे आभूषण दान
यह देख तब उसके घर पहुंचे बोस
देख कर उनको पुलकित हो उठी
नहीं रहा उसको कोई होश।
बोले प्रेम से बेटी तेरे गहनें लौटाने लाया हूं
अभी उम्र तुम्हारी छोटी है, यही बताने आया हूं
नहीं मानी वह सिहनी, ज़िद पर अपने ar गई
नहीं लूंगी अपने अलंकार वापस क्योंकि देशभक्ति की
कोई उम्र होती नहीं।
सुन उसके वचन को आवक रह गए सुभाष
लक्ष्मी तो आती जाती हैं,यह तो साक्षात सरस्वती है
इसे तो अपनी सेना में अवश्य करना होगा विराजमान।
वह दिन भी आया, जब नेताजी ने खबर भेजवाया
आओ सरस्वती तुम्हे INA में आना है
भारत मां की सेवा करनी है
मां ने तुम्हे बुलाया है।
हिम्मत उसमें कूट कूट कर भरी थी
जासूसी की कठिन प्रशिक्षण ली
तप तप कर कुंदन बनी
तभी तो नेताजी की सबसे प्रिय बनी।
ले स्वांग पुरुष का ,अपनी सखी संग
दुश्मन के खेमे में जा पहुंची
देती रही सूचना अपने संघ को
अंग्रेजो के कूटनीति की।
एक दिन उसकी सखी पकड़ी गई
घबराई और सहम सी गई
मारनी थी उसे खुद को गोली
लेकिन ऐसा कर न सकी।
रूप धर नृत्यांगना का
सरस्वती पहुंची उस खेमे में
नृत्य कर, शत्रु के आंखो में धूल झोके
भाग चली मोहिनी अपनी सखी को ले के।
दौड़े फिरंगी उनके पीछे लिए हाथ में बंदूक
लगा गोली पैर में और गिरी रण चंडी वही
हार ना मानी फिर भी भागी
छोड़ा नहीं सखी का साथ
चढ़ बैठी एक वृक्ष की डाल पर
तीन दिन और तीन रात।
चौथे दिन वह उतरी और पहुंची अपने आवास
देख उसे संगी साथी, मनाए खूब उल्लास
देख इस वीरांगना की बहादुरी
लगाया आज़ाद हिन्द फौज ने जय जयकार।
नेताजी ने सम्मान दिया
अपनी सेना में उच्च स्थान
प्रदान किया
लेकिन जब यह देश आजाद हुआ
और लहराया हमारा प्यारा तिरंगा
कांग्रेस की सरकार ने भुला दिया
इनका दिया हुआ बलिदान।
भुला दिया इनकी क्रांति को हिंदुस्तान
दे दिया गुमनामी का अंधकार
मिला उन्हे यही पुरुस्कार
हाय री सरकार, हाय री सरकार।
बहुत बाद में यह देश जगा
देने लगा उनको पेंशन कुछ
वो भी उन्होंने नहीं रखा
सुनामी राहत में दे दिया सबकुछ।
13 जनवरी 2018 को हुई यह
पंचतत्व में लीन
इश्वर ने नहीं बल्कि हमने
किया इतिहास से विलीन।
जिस मान की थी यह हकदार
किया इस देश के नेताओ ने तिरस्कार
अब भी कुछ बिगड़ा नहीं
रंगून में जन्मी इस दुर्गा को
अपने भीतर तुम जगाओ
अपने आगे की पीढ़ी को
इनकी वीर गाथा सुनाओ।
जय हिन्द 🙏
स्व रचित ऋचा श्रावणीहमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews
https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com