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“अखंड भारत” और भारत को “हिंदूराष्ट्र” बनाने के संकल्प पूर्ण करने का यही एकमात्र उपाय है?

 “अखंड भारत” और भारत को “हिंदूराष्ट्र” बनाने के संकल्प पूर्ण करने का यही एकमात्र उपाय है?

क्या देश एक ऐसी सकारात्मक तानाशाही की ओर अग्रसर हो रहा है या किया जा रहा है जो दिखने में लोकतंत्र लगे? क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के “अखंड भारत” और भारत को “हिंदूराष्ट्र” बनाने के संकल्प पूर्ण करने का यही एकमात्र उपाय है?
राजनीति शास्त्र के जानकार मेरी इस बात से सहमत होंगे कि शासन करने के लिए कोई भी तंत्र – लोकतंत्र, राजशाही, तानाशाही या सैनिक शासन अपने आप में परिपूर्ण नहीं हैं| इन सभी विधाओं में कुछ न कुछ ऐसी खामियां मौजूद हैं जो राज्य या देश के कुशल संचालन में बाधक साबित होती हैं| इसके अलावा, समय, स्थान और तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर अलग अलग तंत्र ही सफल हो सकते हैं.अपनाये जा सकते हैं|
भारत में लोकतंत्र अभी भी शैशवावस्था में कहा जायेगा| जिस तंत्र में मोहल्ले, गाँव, कस्बे, नगर, विधानसभा, लोकसभा इत्यादि का विभिन्न फोरम में प्रतिनिधित्व करने वाले योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि धन, बाहुबल, जाति या धर्म के आधार पर चुनकर जनता के लिए निर्णय लेते हों, क़ानून बनाते हों उस देश में लोकतंत्र की उपादेयता पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक ही है| ज़रा अपना दिल टटोलकर बतलाइये – क्या आपके द्वारा चुने विभिन्न जनप्रतिनिधि अपनी अपनी जगह “द बेस्ट” अर्थात “सर्वश्रेष्ठ” हैं? क्या उनके अलावा तमाम बेहतर विकल्प मौजूद नहीं थे?
ऐसे में, जब हमारे आका, हमारे हाकिम ही दोयम या तीसरे या चौथे दर्जे के हों तो लोकतंत्र को सफल कैसे माना जा सकता है? क्या भारत विभाजन का निर्णय लेने वाले, देश को, विशेषतया लाखों हिंदुओं को दंगों की आग में झोंकने वाले निर्णय सही थे? इन सब बातों पर गंभीरतापूर्वक मनन करने की आवश्यकता है| ऐसे संकुचित मार्ग वाले तंत्र में ही सही रास्ता खोजने की जरूरत है| तो क्या किया जाये? कोई है जो इन सब पर निर्णय लेने की स्थिति में है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भलीभांति जानने वाले अवश्य ये भी जानते होंगे कि इस संगठन के दो मुख्य उद्देश्य हैं – भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करवाना और कांग्रेसियों की कायरतापूर्ण एवं स्वार्थपरक करतूतों के चलते टुकड़ों में बंटे भारत का पुनः एकीकरण कर “अखंड भारत” का निर्माण| द्वितीय सरसंघचालक पूज्यनीय माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर “गुरूजी” ने 6 अगस्त 1947 को हैदराबाद सिंध (अब पाकिस्तान का हिस्सा) में स्वयंसेवकों को उद्बोधित करते हुए स्पष्ट कहा था – ये बंटवारा अस्थायी है, मुझे दुःख है कि हिंदुओं को अपना घरबार छोड़कर जाना पड़ रहा है| मैं आपको वचन देता हूँ – आप पुनः अपनी मातृभूमि में वापिस लौटेंगे|
संघ की शाखा में जाने वाला या इससे जुड़ा प्रत्येक स्वयंसेवक, चाहे वह सत्ता में हो, व्यापार में हो, विदेश में हो या शासन प्रशासन के विभिन्न पदों पर बैठा हो, इन दो संकल्पों को जाने अनजाने प्रार्थना और अन्य माध्यमों से शपथपूर्वक कहता रहता है| हम सबको भरोसा है – “गुरूजी” की वाणी एकदिन सत्य साबित होगी| इतिहास के पन्ने में सत्तर – अस्सी साल कोई अधिक मायने नहीं रखते| गुरूजी के इस संकल्प और संघ के इन दो मुख्य एजेंडों को सफल बनाने के लिए आवश्यक था केंद्र और विभिन्न महत्वपूर्ण राज्यों की सत्ताओं के शीर्ष पर ऐसे कमिटमेंट वाले लोगों को स्थापित करना जो देशहित में, इसके सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए इन दो वचनों को पूर्ण करें|
अधिक विस्तार में न जाते हुए इस परिणाम पर आ जाते हैं कि संघ के सहायक संगठन – जनसंघ के परिमार्जित रूप – भारतीय जनता पार्टी ने चाणक्यनीति अपनाते हुए भारत की सत्ता पर कब्जा कर लिया| पाठक इस हेतु अपनाये गए रास्तों से खूब परिचित होंगे जिन्होंने लोकसभा में मात्र दो सीटें हासिल करने वाली पार्टी को आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बना दिया है| इसी के साथ आवश्यक था कि महत्वपूर्ण राज्यों में भी ऐसी ही सरकारें हों जो हिंदू राष्ट्र और अखंड भारत के संकल्पों को पूरा करने में केंद्र का सहयोग करें| जिन राज्यों में थोड़ी बहुत कसर बाकी थी उसे कूटनीति के माध्यम से पूरा किया जाना ही श्रेयस्कर था| कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य इसका ज्वलंत उदाहरण हैं| निस्संदेह अगली बारी राजस्थान की है| बंगाल में भाजपा ने किस कदर अपनी ताकत झोंकी ये किसी से छुपा नहीं है| भले ही इस बार सफलता न मिली हो, आगे के लिए एक मार्ग प्रशस्त तो हुआ ही है| आसाम जैसे बड़े और मुस्लिम घनत्व वाले राज्य का भाजपा की झोली में आना कोई संयोग मात्र नहीं है|
संघ से जुड़े लोग ये भी जानते होंगे कि यहाँ लोकतंत्र का कोई अस्तित्व नहीं होता| सक्षम पदाधिकारियों द्वारा देश और समाज के हित में निर्णय ले लिए जाते हैं और उन निर्णयों को लागू करने की सूचना मात्र दी जाती है| इनपर बहुमत द्वारा निर्णय या विचारविमर्श इत्यादि का दूर दूर तक प्रश्न ही नहीं उठता| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इन्हीं नीतियों का अनुपालन हमें विभिन्न स्वरूपों में देखने को मिलता है, जैसे धारा 370 का हटना, राममंदिर का निर्माण, तीन तलाक को अवैध ठहराना इत्यादि| आगे बारी “समान नागरिक संहिता” की है जो अतिशीघ्र हमारे सम्मुख होगी, ऐसा मेरा मानना है|
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इसी एजेंडे के तहत देश एक ऐसी तानाशाही की ओर अग्रसर हो रहा है जो प्रत्यक्षतः जनता को न तो समझ आयेगी न ही दिखाई देगी| विपक्ष को येन, केन प्रकारेण इस तरह ख़त्म कर दिया जायेगा और किया भी जा रहा है कि लोगों को ये एक स्वाभाविक और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत होने का भ्रम होगा| कांग्रेस जैसे राजनैतिक दल को क्षेत्रीय दलों से भी दयनीय हालत में ला देना संघ की इसी कूटनीति का परिणाम है| हिंदुत्व को इस तरह उभारा जा रहा है कि बहुसंख्यक हिंदू समाज का शिक्षित वर्ग भी इस प्रवाह में बहकर संघ नेतृत्व का साथ दे रहा है| कल तक जो अपने को कट्टर कांग्रेसी या धर्मनिरपेक्ष कहते थे वे आज उससे अधिक मुखरता से हिंदुत्व और भाजपा के साथ खड़े हैं| महाराष्ट्र जैसे सबसे संपन्न और देश के राजकोष में सर्वाधिक योगदान करने वाले बड़े राज्य में “हिंदुत्व” के नाम पर सरकार गिर जाना और शरद पवार जैसे मंझे खिलाड़ी को पटकनी देना कोई मामूली घटना नहीं है, यह संघ की ही रणनीति का परिणाम है|
मैं स्वयं इस रणनीति के भरपूर पक्ष में हूँ| बहुसंख्यक हिंदू समाज और देश के पास इससे बेहतर कोई विकल्प ही नहीं है| जिस देश में हिंदू को द्वितीय श्रेणी का नागरिक समझा जाता हो, जहाँ अपने धर्म के पक्ष में आवाज उठाने वाले हिंदुओं का निर्ममता से क़त्ल कर दिया जाता हो, आजादी से लेकर आज तक जिसपर बेतहाशा जुल्म किये जा रहे हों, जहाँ कन्हैयालाल जैसे सीधे सादे देशभक्तों का गला सिर्फ एक सोशल मीडिया पोस्ट का समर्थन करने पर मुसलमान जिहादियों द्वारा सरेआम काटकर उसका वीडियो वायरल कर हिंदुओं की मर्दानगी को ललकारा जाता हो, उस देश का हिंदू ऐसे छद्म लोकतंत्र को क्या चाटेगा जो भ्रष्टाचार, जातिवाद, मुस्लिम तुष्टिकरण और अकर्मण्यता का पोषण करता हो|
लोकतंत्र को कुछ वर्षों बल्कि दशकों के लिए “ठंडे बस्ते” में रखना ही होगा, बस प्रक्रिया ऐसी होगी जिससे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ये अलोकतांत्रिक साबित न हो सके| ये हमारा सौभाग्य है कि देश की कमान नरेंद्र मोदी जैसे संघ के समर्पित स्वयंसेवक के हाथ में है जो निस्पृह भाव से अखंड भारत एवं हिंदू राष्ट्र की दिशा में कार्य कर रहे हैं| ऐसे में ये मानकर चलिये कि संघ की कार्यप्रणाली जिसमें “लोकतांत्रिक निर्णयों” के लिए कोई स्थान नहीं होता, अपनाकर ही हिंदू इस देश में सुरक्षित रह सकता है, हिंदू प्रजाति बच सकती है और इसी के फलस्वरूप ये देश भी जीवित रहेगा, सुदृढ़ बनेगा अपना खोया वैभव, खोया भूभाग प्राप्त करेगा| प्रतीक्षा कीजिये, लोकतंत्र की हायतोबा मचाने और उन वामपंथियों के प्रोपेगंडे का शिकार होने की जरूरत नहीं है जिनके आका देशों में स्वयं कभी लोकतंत्र का नामोनिशान नहीं रहा| वंदेमातरम्! भारत माता की जय!

लेखक - अतुल मालवीय

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