Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

हिन्दू आस्था पर सेक्यूलर प्रहार

हिन्दू आस्था पर सेक्यूलर प्रहार

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भारत में हिन्दू आस्था पर अमर्यादित बयान देना, फिल्म बनाना उसके पोस्टर जारी करना आदि कथित सेक्युलर दायरे में आता है। देश के लिए संतोष का विषय यह कि इसके विरोध में अराजक या हिंसक प्रदर्शन नहीं होता है। इसलिए अमर्यादित बयान देने वाले को कोई माफी मांगने का निर्देश नहीं देता।इसी बहाने वोट बैंक की राजनीति चलती रहती है, हिन्दू आस्था पर बनने वाली अमर्यादित फिल्म और डॉक्यूमेंट्री का प्रचार हो जाता है। ऐसा करने वाले बेखौफ रहते हैं। उन पर असहिष्णु और साम्प्रदायिक होने का आरोप नहीं लगता। उनके विरोध में सम्मान वापसी का अभियान नहीं चलता हैं, इनके कारण किसी अभिनेता की बेगम को भारत में रहने से डर नहीं लगता। किसी को तस्लीमा नसरीन और सलमान रुश्दी की तरह निर्वासित जीवन के लिए विवश नहीं होना पड़ता है। इसके लिए कोई पूर्व मुख्यमंत्री यह नहीं कहता कि इन्हें केवल मुँह से नहीं शरीर से भी माफी माँगनी चाहिए। ये सभी लोग कथित सेक्यूलर विचार के दावेदार बने रहते हैं जबकि भारत की तरह विविधता किसी अन्य देश में नहीं है। अल्पसंख्यक वर्ग के साथ भेदभाव भारतीय संस्कृति में कभी नहीं रहा। यहां तो-

सर्वे भवन्तु सुखिनः

सर्वे संतु निरामया

की कामन की गई।

दुनिया की अन्य सभ्यताओं के लिए यह आश्चर्य का विषय हो सकता है लेकिन भारत में यह प्रत्यक्ष है।इसे देखने के लिए बहुत पीछे लौटने की आवश्यकता नहीं है। ज्ञानव्यापी परिसर सर्वे के बाद लगातर हिन्दू आस्था का मजाक बनाया गया। यह क्रम धीमा हुआ तो काली डाक्यूमेंट्री आ गई। इनके विरोध की बात तो बहुत दूर, अपने को सेक्यूलर कहने वाले किसी भी व्यक्ति ने इसका संज्ञान नहीं लिया। इतना ही नहीं इनका समर्थन करने वालों की भी कमी नहीं है। किसी को नहीं लगा कि इस अभद्रता के लिए इनको माफी मांगनी चाहिए।

विविधता में एकता भारत की विशेषता है। इसको कायम रखना अपरिहार्य है। इसके लिए सभी लोगों को एक दूसरे की धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करना चाहिए। किसी को आहत करने वाली टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। किन्तु इस पर दोहरे मापदंड घातक होते है। इससे समस्या का समाधान नहीं होता है बल्कि विवाद बढ़ता है। इसके अलावा तुष्टीकरण की सियासत के भी समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते है लेकिन भारत की सेक्युलर सियासत खुद में सर्वाधिक साम्प्रदायिक है। इसने वोटबैंक के लिए समाज का दूरगामी अहित किया है। जिन मुद्दों का आपसी संवाद से समाधान हो सकता था, उसे भी यह सेक्युलर जमात जटिल बनाती रही है। हिन्दुओं की आस्था पर अनुचित टिप्पणी का इन पर कोई असर नहीं होता है। विपक्ष के अनुसार इस बार राष्ट्रपति चुनाव दो विचारधाराओं के बीच है। वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए उसका दावा सही है। एक तरफ सेक्युलर सियासत का विचार है, जिसमें हिन्दू आस्था पर प्रहार मौन साध लिया जाता है। इतना ही नहीं अनेक नेता अमर्यादित बयानों का समर्थन करते हैं। दूसरी तरफ राष्ट्रवादी विचारधारा है। यह सच्चे अर्थो में पंथनिरपेक्ष विचार है जिसमें बिना भेदभाव के अनुचित बयानों की निंदा की जाती है।इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस नेताओं के बयानों से समझा जा सकता है। तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ ने माँ काली पर अमर्यादित बयान दिया। कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर ने उनका समर्थन किया। यह वह विचारधारा है जिसने यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। काली पर जारी पोस्टर विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि मां काली पूरे भारत की भक्ति का केंद्र हैं। उनका आशीर्वाद देश पर बना रहे। स्वामी रामकृष्ण परमहंस, एक ऐसे संत थे जिन्होंने मां काली का स्पष्ट साक्षात्कार किया था, जिन्होंने मां काली के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था। वो कहते थे- ये सम्पूर्ण जगत,चर अचर, सब कुछ मां की चेतना से व्याप्त है। यह चेतना बंगाल की काली पूजा में दिखती है। यही चेतना बंगाल और पूरे भारत की आस्था में दिखती है और जब आस्था इतनी पवित्र होती है तो शक्ति हमारा पथ प्रदर्शन करती है। मां काली का असीमित और असीम आशीर्वाद भारत के साथ है। भारत इसी आध्यात्मिक ऊर्जा को लेकर आज विश्व कल्याण की भावना से आगे बढ़ रहा है।

नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रवादी और वास्तविक पंथनिरपेक्षता की विचारधारा के अनुरूप बयान दिया है। यह वह विचारधारा है जो देश के सर्वोच्च पद हेतु द्रोपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाती है। द्रोपदी मुर्मू शिव मन्दिर में झाड़ू लगाती है। नन्दी की प्रतिमा से भावुक संवाद करती है। इसी के साथ सभी पंथ मजहब और उपासना पद्धति का सम्मान करती है। लंबे राजनीतिक जीवन में कभी कोई अमर्यादित बयान नहीं दिया। किसी की आस्था को आहत करने वाले बयान का समर्थन नहीं किया। पद की आकांक्षा में कभी राष्ट्रवादी विचारधारा से विमुख नहीं हुईं। अयोध्या धाम के कथा संत आलोकानन्द व्यास जी ने फिल्म पर नाराजगी व्यक्त करते हुए बताया कि आज बहुत से लोगों के मन में गुस्सा है। भारत में लोगों ने सड़कों को जाम नहीं किया। कहीं पत्थरबाजी नहीं की गई। कहीं शाहीन बाग नहीं बनाया गया। कहीं सर तन से जुदा के नारे नहीं लगाए गए। यह पहली बार नहीं है जब किसी फिल्म द्वारा हिन्दू देवी देवता का उपहास बनाया गया हो। यह तो बॉलीवुड में ट्रैंड बन चुका है। इससे पहले पीके में भगवान शंकर के एक किरदार को एलियन से डरकर शौचालय में भगा दिया गया। वेब सीरीज तांडव में अभिनेता जीशान अयूब ने विवेकानंद नेशनल यूनिवर्सिटी (वीएनयू) के एक ऐसे छात्र शिवा शेखर की भूमिका निभाई है,जो बिहार से यूपीएसई की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली आया है। जीशान अयूब की एंट्री होती है। वह त्रिशूल और डमरू लेकर अमर्यादित डायलॉग देता है। अतरंगी रे के कई दृश्यों में हिन्दू देवी-देवताओं और धर्मग्रंथों का अपमान किया गया है। भगवान शिव और हनुमान जी को लेकर अपशब्दों का प्रयोग किया गया है। रामायण की आपत्तिजनक व्याख्या की गई है। ब्रह्मास्त्र के ट्रेलर में रणबीर कपूर जूते पहनकर मंदिर में जाता है।जूता पहनकर मंदिर की घंटियां बजाता है। बिडम्बना यह कि हिंदुओं को आहत करने वाली सभी बातें अभिव्यक्ति की आजादी के अंतर्गत आती है। यह बेलगाम प्रवृत्ति बन गई है। अभिव्यक्ति की आजादी अनियन्त्रित नहीं हो सकती। यह तथ्य सभी को समझना चाहिए।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ