कशीदे शान के वो झूठी मुकाम के
बना डाला जहन्नुम जन्नत के नाम पेफरयादी ही की गलती है
कि उसने विरोध क्यूँ किया
कत्ल हो जाता बिन आवाज़
उसने शोर क्यों किया
शहर की आग ये भड़की है
बस तेरे ही शोर से
आईना दिखलाने पे इतना
तूने जोर क्यों दिया
भगवान उसका है तुम
उसको कुछ कह नहीं सकती
तेरा क्या है तेरे पास इतने
कुछ अपमान सह नहीं सकती
यहां बैठें हैं हम फैसला लेकर के
तू ही कातिल है
वो नहीं जिसने सर कलम किया
उनका हक है कि वे तुम्हारे
आराध्यों को गरियायें
तुम गर बोली तो
तेरे सर पे ही इलज़ाम है आये
हिन्दू है, खबरदार जो
कभी अपने हक़ की बात की
मरते रहते हैं काफिर यूँ भी
लानत है तूने जीने की बात की
जब तक हम बैठे हैं बनकर
बड़ी पंचायतों के पंच
हिम्मत न करना फिर कभी
न करना जीने का ये प्रपंच
होगा देश तेरा होगे सनातन
मुझे घंटा न फर्क पड़ता
रहेगा फैसला यही
औकात जान ले अपनी।-मनोज मिश्र
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