हिन्दू नारी
छोडकर संस्कार संस्कृति, वह आधुनिक बन गयी,
त्याग दी माथे की बिन्दी, अब कुमारी सी बन गयी।
दिखने लगी विधवा के जैसी, तज दिया सिन्दूर को,
सूनी माँग लिये घूमती, वह अभागिन सी बन गयी।
पालती थी बच्चों को जो, निज ममता का दूध पिला,
नग्नता का पर्याय इस दौर में, हिन्दू नारी बन गयी।
न कहीं आँचल बचा है, न दुपट्टा दिखता शीश पर,
आँचल की छाँव बच्चे सुलाती, झूठी कहानी बन गयी।
लाज और शर्म के गहने, शोभा थी जिसके तन मन की,
शर्मो हया गायब हुये सब, वह बेहया सी बन गयी।
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