बाग और फूल
बैठे बैठे बाग में
देखा कुछ ऐसा।
जैसे सूरज की किरणें
धीरे धीरे फैल रही थी।
वैसे वैसे ही फूल भी
खिलते जा रहे थे।
देख प्रकृति का ये नजारा
बड़ा रामणी लग रहा था।।
फूलो की सुंदरता और महक से
खिल उठा सारा गुल्स्थान।
तितली भवरे मड़राने लगे
खिलते हुए फूलो पर।
स्नेह प्यार का ये दृश्य
देखकर आँखे भर आई।
क्या हम मानव भी
ऐसा कुछ कर सकते।।
बागों की सुंदरता होती
उसके पेड़ों और फूलो से।
प्रकृति भी निभाती इसमें
अपनी बड़ी भूमिका।
इसलिए मानव को मिलता है
इसमें आनंद और सुख।
ये सब कुछ दिया हमें
उस श्रष्टी निर्माता ने।।
प्यार मोहब्बत होती है
अक्सर ही बागों में ।
प्रेमी प्रेमिका आदि जन
मिलते जुलते है बागो में।
और प्रकृति भी लालचती
उन्हें मोहब्बत करने को।
इसलिए मानव के दिलों में
मोहब्बत के दीप जल उठते।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबईहमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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