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शब्द ब्रह्म का जाग्रत रूप है मंत्र

शब्द ब्रह्म का जाग्रत रूप है मंत्र

          ---:भारतका एक ब्राह्मण.
           संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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      मंत्र शब्द मन: धातु से बना है।वही मन जिससे मनु बना।वही मनु जो आज मनुष्य है।मनुष्य के पास मनोबल होता है।यह मनोबल ही है जो असंभव को भी संभव कर कर के रख देता है।मंत्र की साधना दरअसल मन की साधना है।जो मन को साध लेता है वही मनस्वी कहलाता है।मनस्वी यानि मंत्र द्रष्टा।
                              मंत्र की परिभाषा देते समय हमारे मनिषियों ने कहा- -'यननात मंत्र:' यानि जिसका मनन किया जाय वह मंत्र है।अब प्रश्न उठता है कि मनन क्या है?वाँछित का व्यवधान जो है उसके निराकरण के निमित चिंतन की प्रगाढ़ अवस्था को मनन कहते हैं।यह मनन शब्द चिंतन का ही सहचर और समानधर्मी है।मन की शक्ति सभी विषम परिस्थितियों का समन कर के रख देती है।वह कभी पराजित नहीं हो सकता है।
     जब हम मंत्र की साधना करते हैं तब बहुत सारी बातों का हमें ख्याल रखना पडता है।ख्याल इसलिए की हमारी साधना फलिभूत हो।मंत्रसाधना के लिए हमें ' समय विग्यान,अंक विग्यान, यंत्र विग्यान, ध्वनि विग्यान और पदार्थ विग्यान का समयक बोध होना चाहिए।समय विग्यान के द्वारा हम अभिष्ट और उपयुक्त समय का बोध प्राप्त करते हैं।अंक विग्यान के द्वारा हमें संख्यात्मक बोध का निर्धारण प्राप्त होता है।यंत्र विग्यान के द्वारा हम उचित उपकरण का निर्माण कर लेते है जो हमारी साधना के निमित्त हो।और अंत में हम पदार्थ विग्यान के द्वारा उपयुक्त पदार्थ का योग देते हैं तथा अपनी साधना को फलिभूत पाते है।
                      इन उपादानों के साथ हीं साथ हमें मंत्र साधना के लिए योग के अष्टांग मार्ग का भी सेवन करना पडता है।यम,नियम,आसन,प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यन,धारना और सिद्धि।यही महर्षि पतँजली नें अष्टांग मार्ग का सिद्धांत 'योगसूत्र'में दिया है।मंत्र साधना के लिए हमें सुझाए गये इस योग मार्ग की सोपान दर सोपान साधना करनी पडती है।साधना यानि क्रियात्मकता।
                      हमें जिग्यासा हुई की हम विश्व की घटनाओं का ग्यान हो?हम सर्वग्य बने।पुरे विश्व की घटना हमारी जानकारी में रहे।कोई भी कहीं भी हम से जो चाहे जहाँ का चाहे हाल ले सकता है या मैं दे सकता हुँ।सुनने में तो यह बडा आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय है।पर यह सत्य है।जो नास्तिक है।जीसे अपने मन पर विश्वास नहीं है वह कहेगा की यह असंभव है।कपोल कल्पना है या फिर दिवास्वप्न।पर है यह अटल सत्य।
                      अब आप कहेगे यह कैसे संभव है?तो इसके लिए मैं एक "मंत्र"आपको दे रहा हुँ।आप इसकि साधना करके देख लीजिए।वह मंत्र भी महर्षि पतंजलि ने बताया है- -'सूर्योसंयमातभूवनग्यानम' यानि सूर्य के साथ संयम करो तो भूवन भर का आपको ग्यान हो जायेगा।आप संसार को देखने लगीयेगा।इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।आप शंका नहीं साधना करके तो देखीए।
         साधना हम तभी कर सकते हैं जब हमारे पास तदनुकूल साधन हो।साधन के अभाव में साधना नहीं की जा सकती है।साधन तभी संभव है जव साध और साधक दोनो योग्य हो।अयोग्य तो सिर्फ अरण्यरोदन कर सकता है।साधना के द्वारा जब हमरा दृष्टिपटल खुलता है तब सभी तरह के ग्यानांधकार और दोष मिट जाते है।समें वह नजर आने लगता है जिसकी हमें ऐषणा थी।हम मनस्वी थे।मनस्वी हैं और रहेगें।लोग कहते हैं- -'मन के हारे हार है मन के जीते जीत।'
                        आपकी मनोकामना पुरी हो।यही हमारा प्रयास है।हमारी शुभकामना है कि जीवन पथ पर आपको  मनोवाँछित फल की प्राप्ति हो।
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वलिदाद, अरवल(विहार)८०४४०२.
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