कांग्रेस ने जानबूझकर शुक्रवार (जुमा) और 5 अगस्त का दिन शोक के प्रतीक काले कपड़े पहनकर विरोध प्रदर्शन के लिए चुना?
क्यों ठीक इसी तरह मुस्लिम लीग ने शुक्रवार 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे के लिए चुना और कलकत्ता में मुसलमानों का आह्वान किया था कि वे जुमे की नमाज़ पढ़ने के बाद लाखों की संख्या में एक ख़ास जगह हथियारबंद होकर इकट्ठे हो जायें और वहाँ से हिंदुओं के कत्लेआम के लिए निकल पड़ें? कलकत्ता नरसंहार के नाम से कुख्यात इस हृदयविदारक घटना में बंगाल के कसाई कहे जाने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री और मुस्लिम लीग नेता शहीद सुहरावर्दी के नेतृत्व में उग्र मुसलमानों की भीड़ ने हज़ारों हिंदू व्यापारियों की दुकानें लूट लीं, जला दीं, तीस हज़ार हिंदुओं का निर्ममता से क़त्ल कर दिया और हज़ारों महिलाओं, बच्चियों की अस्मत लूट ली थी|
सभी सहमत होंगे कि इतिहास में दिनों और तारीखों का बड़ा महत्त्व होता है| कुछ तारीखें और दिन स्वयं इतिहास का अभिन्न अंग बन जाते हैं| 5 अगस्त भी एक ऐसा ही दिन है जब वर्ष 2020 में हिंदुओं ने अपने पाँच सौ साल पहले खोये गौरव और अस्मिता को पुनः वापिस प्राप्त करने का प्रयास अयोध्या में रामजन्मभूमि स्थान पर एक भव्य मंदिर बनाने का संकल्प लेते हुए शिलान्यास के रूप में किया था| बर्बर मुग़ल आक्रांताओं ने हिंदू धर्म को मिटाने के लिए भले ही क्रूरता की पराकाष्ठा पार कर दी हो, वे ऐसा कर न सके| बाबरी मस्जिद के रूप में अपमान की निशानी ख़त्म होने और उसकी जगह 5 अगस्त 2020 को राममंदिर का शिलान्यास इतिहास के पन्नों में न सिर्फ हमेशा के लिए दर्ज हो गया है बल्कि कालांतर में यह सनातन संस्कृति के एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में निरूपित होगा|
आइये, कुछ बातों और प्रामाणिक तथ्यों पर बिंदुवार विचार कर लेते हैं:
1. कांग्रेस ने सुप्रीमकोर्ट में एफिडेविट दाखिल कर भगवान राम को काल्पनिक बताते हुए उनके अस्तित्व से स्पष्ट इंकार किया|
2. कांग्रेस के तत्कालीन दिग्गज नेतागण और नामचीन वकील सुप्रीमकोर्ट में बाबरी मस्जिद के पक्ष और रामजन्मभूमि के विरोध में पैरवी करने के लिए खुलकर खड़े हुए|
3. स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने तुष्टिकरण की नीति अपनाते हुए मुसलमानों को अपना वोटबैंक बनाने की कुचेष्टा की और हिंदू हितों की न सिर्फ उपेक्षा की बल्कि निरंतर अपमान करते रहे| जवाहरलाल नेहरु द्वारा “हिंदू कोड बिल” को हिंदुओं के भारी विरोध के बावजूद जबरन लागू करना, साथ ही “समान नागरिक संहिता” लागू न करना इस भेदभाव वाली नीति का प्रत्यक्ष प्रमाण है|
4. सोनिया गांधी और उनके परिवार का हिंदुओं के प्रति दुर्भावना एवं घृणा पालना और ईसाइयत के प्रचार और धर्मांतरण में लगी मिशनरियों को संरक्षण प्रदान करना| याद रहे, प्रियंका और राहुल को ईसाइयत में स्वीकार करने वाली रस्म बप्तिस्मा स्वयं पोप ने अपने फरवरी 1986 के भारत दौरे के दौरान की थी| आज यही धर्मान्तरित भाई बहिन चुनाव में हिंदुओं के वोट पाने की लालसा में माथे पर त्रिपुंड लगाये घूमते हैं, दत्तात्रेय गोत्र के जनेउधारी ब्राह्मण होने का झूठा और हास्यास्पद दावा करते हैं|
5. सौ करोड़ से भी अधिक हिंदुओं के आराध्य भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में कांग्रेस न तो मंदिर बनने से रोक सकी और न ही इतना सब नाटक करने के बावजूद मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने में कामयाब हुई| जहाँ हिंदू भाजपा से अधिकाधिक जुड़ने लगा वहीं मुस्लिम जनमानस सपा, बसपा, जदयू, टीआरएस, तृणमूल कांग्रेस जैसी क्षेत्रीय पार्टियों की ओर स्पष्ट झुक गया| अब कांग्रेस क्या करे? माया मिली न राम| मुसलमानों को भरमाकर एक बार फिर से अपनी ओर खींचने के लिए कौन सा नया हथकंडा अपना जाये?
जिस तरह मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946 के दिन को कलकत्ता के हिंदुओं के नरसंहार के लिए जानबूझकर इसलिए चुना था कि इसी दिन अर्थात शुक्रवार (जुमा) और रमज़ान के महीने के अठारहवें दिन पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने बद्र की खूनी लड़ाई में विजय हासिल करते हुए मक्का पर कब्जा कर लिया था| जुमे की नमाज़ के बाद जमा हुई कलकत्ता के दो लाख मुसलमानों की उग्र भीड़ को उकसाने के लिए सुहरावर्दी ने इस बात का बार बार प्रयोग किया|
ठीक उसी तरह कांग्रेस, जो खुलकर तो राममंदिर शिलान्यास के विरोध में नहीं बोल सकती लेकिन सांकेतिक रूप से उन मुसलमानों को, जिनका उसने छः दशकों तक तुष्टिकरण करते हुए सत्ता की मलाई चाटी, ये स्पष्ट संदेश देना चाहती थी कि हम राममंदिर के फैसले के पहले भी विरोध में थे और आज भी हैं| इसीलिये सत्ता के भूखे कांग्रेसी मंहगाई का विरोध करने की नीयत से नहीं बल्कि अपने आकाओं सोनिया और राहुल को जेल जाने से बचाने एवं राममंदिर शिलान्यास की वर्षगाँठ पर शोक के प्रतीक काले कपडे पहनकर सड़कों पर ड्रामेबाजी करने उतर पड़े| स्पष्ट है कि इन्होंने इस तारीख 5 अगस्त और शुक्रवार अर्थात जुमे के दिन को एक सोची समझी साजिश के तहत चुना था|
देखते हैं, खर्च हो चुकी, विलुप्ति के कगार पर खड़ी कमज़ोर कांग्रेस को ये पैंतरेबाजी किस तरह सहायता कर पाती है और सोनिया और राहुल को और कितने दिन जेल की हवा खाने से बचा पाती है| फिलहाल, देश की जनता को इनके हथकंडे समझने और सावधान रहने की आवश्यकता है|
लेखक - अतुल मालवीय
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