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संस्कृति और भाई बहन की संरक्षण का द्योतक रक्षाबंधन

संस्कृति और भाई बहन की संरक्षण का द्योतक रक्षाबंधन

जहानाबाद । भारतीय वांग्मय सनातन धर्म की संस्कृति में संस्कृति और भाई बहन की संरक्षण का पर्व रक्षा बंधन है। साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि रक्षाबंधन प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पूर्णिमा व राखी पूर्णिमा , राखरी पर्व भाई-बहन के प्रेम का उत्सव है। बहनें भाइयों की समृद्धि के लिए उनकी कलाई पर रंग-बिरंगी राखियाँ बांधती हैं । भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपराह्ण काल को अधिक महत्वपूर्ण नहीं माना वल्कि मध्याह्न काल से पहले राखी का त्यौहार मनाने का चलन है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार भद्रा , ग्रहण होने पर रक्षाबंधन मनाने का पूरी तरह निषेध है । रक्षा बंधन में बहने भाईयों की कलाई पर रक्षा-सूत्र या राखी बांध कर भाईयों की दीर्घायु, समृद्धि व ख़ुशी आदि की कामना करती हैं। ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल। देवों और असुरों के बीच लगातार 12 वर्षों तक संग्राम हुआ। दानव राज बली ने तीनों लोकों पर कब्ज़ा कर स्वयं को त्रिलोक का स्वामी घोषित कर लिया था। दैत्यों के सताए देवराज इन्द्र गुरु बृहस्पति की शरण में पहुँचे और रक्षा के लिए प्रार्थना की थी । देव गुरु बृहस्पति के निदेशानुसार श्रवण शुक्ल पूर्णिमा को इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने ब्राह्मणों से रक्षा-सूत्र में शक्ति का संचार कराया और इन्द्र के दाहिने हाथ की कलाई पर बांध दिया। रक्षा सूत्र से प्राप्त बल के माध्यम से इन्द्र ने असुरों को हरा दिया और खोया हुआ शासन पुनः प्राप्त किया। महिलाएँ सुबह पूजा के लिए तैयार होकर घर की दीवारों पर स्वर्ण टांग देती हैं। उसके बाद वे उसकी पूजा सेवईं, खीर और मिठाईयों से करती हैं। फिर वे सोने पर राखी का धागा बांधती हैं। महिलाएँ नाग पंचमी पर गेंहूँ की बालियाँ लगाती हैं, वे पूजा के लिए उस पौधे को रखती हैं। अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधने के बाद बालियों को भाईयों के कानों पर रखती हैं। शास्त्रीय विधि-विधान से राखी बांधते हैं। साथ ही वे पितृ-तर्पण और ऋषि-पूजन या ऋषि तर्पण करते है । त्यौहार मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की याद में मनाया जाता है । सगी बहन न हो, तो चचेरी-ममेरी बहन या जिसे भी आप बहन की तरह मानते हैं । द्रौपदी ने भगवान कृष्ण के हाथ पर चोट लगने के बाद अपनी साड़ी से कुछ कपड़ा फाड़कर बांधा था। द्रौपदी की इस उदारता के लिए श्री कृष्ण ने उन्हें वचन दिया था कि वे द्रौपदी की हमेशा रक्षा करेंगे। इसीलिए दुःशासन द्वारा चीरहरण की कोशिश के समय भगवान कृष्ण ने आकर द्रौपदी की रक्षा की थी। चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल सम्राट हुमाँयू को राखी भेजी थी। हुमाँयू ने राखी का सम्मान किया और अपनी बहन की रक्षा गुजरात के सम्राट से की थी। देवी लक्ष्मी ने सम्राट बाली की कलाई पर राखी बांधी थी ।
11 और 12 अगस्त 2022 के राखी बांधने के शुभ मुहूर्त पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त को शुरू हो रही है और इसका समापन 12 अगस्त को होगा। लेकिन भद्रा के साए की वजह से राखी इस साल में 11 अगस्त को शुभ नहीं है।पंचांग के अनुसार, सावन मास की पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त को सुबह 09:34 पर शुरू होगी जो 12 अगस्त को सुबह 07:18 तक रहेगी। इसके अनुसार 11 अगस्त को रक्षा बंधन मनाया जाना चाहिए। लेकिन 11 अगस्त को ही सुबह 09:35 बजे भद्रा लग जाएगी जो इस तारीख पर रात्रि 08:30 बजे तक जारी रहेगी। इसके अनुसार 11 अगस्त को रात 08:30 बजे के बाद रक्षा बंधन का पर्व मनाया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्रियों ने 1 अगस्त को रक्षा बंधन 2022 का शुभ मुहूर्त- रात 8:51 से रात 09:12 तक ।12 अगस्त 2022, शुक्रवार को अभिजीत मुहूर्त : 11:59 पूर्वाह्न से 12:52 अपराह्न , शुभ चौघड़िया समय : 12:25 से 02:05 अपराह्न तक ।12 अगस्त तक राखी बांधने का इंतजार नहीं कर सकते तो पंडित पवन शास्त्री के अनुसार, 11 अगस्त को पूंछ भद्रा के समय राखी बांध सकते हैं। 11 अगस्त को पूंछ भद्रा का समय शाम 5:17 बजे से लेकर शाम 6.18 तक रहेगा। इसके अलावा पूरे दिन 11 अगस्त की डेट को भद्रा का साया रहेगा।8:51 से रात 09:12 तक ।12 अगस्त 2022, शुक्रवार को अभिजीत मुहूर्त : 11:59 पूर्वाह्न से 12:52 अपराह्न , शुभ चौघड़िया समय : 12:25 से 02:05 अपराह्न तक ।12 अगस्त तक राखी बांधने का इंतजार नहीं कर सकते तो पंडित पवन शास्त्री के अनुसार, 11 अगस्त को पूंछ भद्रा के समय राखी बांध सकते हैं। 11 अगस्त को पूंछ भद्रा का समय शाम 5:17 बजे से लेकर शाम 6.18 तक रहेगा। इसके अलावा पूरे दिन 11 अगस्त की डेट को भद्रा का साया रहेगा।
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