भ्रष्टाचार के हैं अभी कई और टावर
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा में कुतुबमीनार से भी अधिक ऊंचाई वाले 105 मीटर ऊंचे ट्विनटा वर्स को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गिरा दिया गया है। जानी-मानी कंस्ट्रक्शन कंपनी सुपरटेक के ट्विन टावर 9 सेकंड के भीतर ढाई बजे ताश के पत्तों के महल की तरह ढह गए।इन में से एक टावर एपेक्स 32 मंजिला और दूसरा टावर सेयेन 29 मंजिल का था। ये एमराल्ड कोर्ट का हिस्सा थे। इल्जाम है कि बिल्डर कंपनी ने कई नियमों का उल्लंघन किया था जिसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई और आखिरकार इसे गिराने के फैसले पर अमल कर दिया गया।
इसकी शुरुआत साल 2004 में हुई थी, जब न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (नोएडा) द्वारा एक हाउसिंग सोसाइटी बनाने के लिए सुपरटेक लिमिटेड को प्लॉट आवंटित किए गए थे। इसे एमराल्ड कोर्ट के नाम से जाना जाने लगा। 2005 में, नोएडा बिल्डिंग रेग्युलेशन और डायरेक्शन 1986 ने एक हाउसिंग सोसाइटी के लिए 14 टावर और हर टावर में 10 फ्लोर के निर्माण के लिए मंजूरी दी। सुपरटेक को 10 मंजिलों के साथ 14 टावरों के निर्माण की अनुमति दी गई। हालांकि, इसकी अधिकतम ऊंचाई 37 मीटर तक की कही गई। मूल योजना के अनुसार, प्रत्येक 10 मंजिला 14 टावरों और एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के साथ एक गार्डन बनाया गया।
जून, 2006 में कंपनी को समान शर्तों के साथ निर्माण के लिए अतिरिक्त भूमि दी गई थी। योजना में संशोधन किया गया नई योजना के अनुसार, दो और टावर बनाने थे। साल 2009 में, फाइनल प्लान दो टावरों एपेक्स और सेयेन के निर्माण का था जिनमें प्रत्येक में 40 फ्लोर थीं, जबकि इसे लेकर योजना को अभी तक मंजूरी नहीं दी गई थी। अतिरिक्त एफएआर खरीदकर 11 मंजिला को 24 मंजिल किया गया।
साल 2011 में रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि टावरों के निर्माण के दौरान यूपी अपार्टमेंट मालिक अधिनियम, 2010 का उल्लंघन किया गया है। मकान मालिकों ने दावा किया कि दोनों टावरों के बीच 16 मीटर से कम की दूरी थी जो कानून का उल्लंघन था। मूल योजना में जिस जगह पर पार्क व गार्डन बनाने के लिए कहा गया था वहां इन ट्विन टावरों को खड़ा कर दिया गया था।
इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट की सुनवाई शुरू होने से पहले, 2012 में प्राधिकरण ने 2009 में प्रस्तावित नई योजना को मंजूरी दी थी। अतिरिक्त एफएआर खरीदा गया और टावर्स को चालीस मंजिल किया गया।
अप्रैल 2014 में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरडब्ल्यूए के पक्ष में फैसला सुनाया, जबकि ट्विन टावरों को ध्वस्त करने का आदेश भी पारित किया। कोर्ट ने सुपरटेक को अपने खर्च पर टावरों को ध्वस्त करने और घर खरीदारों के पैसे 14 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करने के लिए कहा गया था।
सुपरटेक ने यहां भी हार नहीं मानी और एक लंबी कानूनी लड़ाई की। मई 2014 में, नोएडा प्राधिकरण और सुपरटेक ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया कि ट्विन टावरों का निर्माण नियमों के अनुसार किया गया है।
अगस्त 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश की पुष्टि की और टावरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया। इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि निर्माण में नियमों का उल्लंघन किया गया था।
कोर्ट द्वारा इन टावरों के ध्वस्तीकरण की तारीख 28 अगस्त निर्धारित की गई और आखिरकार आज भ्रष्टाचार के इन दोनों टावरों को ध्वस्त कर दिया गया।
बेशक कथित नियम कानून का उल्लंघन कर बनाए गए टावरों का अस्तित्व मिटा दिया गया कुछ लोग इस कार्यवाही को भ्रष्टाचार पर कानून की जीत प्रचारित कर खुशी भी मना रहे हैं लेकिन कुछ लोगों ने अंतिम पल तक इन टावरों को गिराने के स्थान पर इनमें लोक कल्याण के किसी काम के लिए यथा अस्पताल या स्कूल बतौर उपयोग करने की अपील की गई। तर्क दिया गया कि ध्वस्तीकरण एक तरह से बहुत सारी प्राकृतिक संसाधनों से जुटाई गई संपदा का भी क्षरण करना है इस के स्थान पर बिल्डर कंपनी के निर्माण को सरकार जब्त कर किसी भी प्रकार के लोक कल्याण के लिए अथवा निराश्रित व निराश्रय लोगों को आवास मुहैया कराने के लिए उपयोग किया जा सकता था लेकिन ध्वस्तीकरण का आदेश जारी कर चुकी अदालत ने यह सुझाव सिरे से खारिज कर दिए। वजह इन टावर्स के अवैध निर्माण को हटाने की मांग कर रही आरडब्ल्यूए पास की इमारतों को हवा पानी युक्त वातावरण को बिल्डर द्वारा अवैध निर्माण कर जो हानि पहुंचाई गई निर्माण बरकरार रखने पर वही स्थिति यथावत रहती और वादी की शिकायत बनी रह जाती। यही कारण है कि अदालत अपने आदेश से टस से मस नहीं हुई और दोनों टावरों को नेस्तनाबूद कर दिया गया है। अब यह बात भी गौर तलब है कि देश भर में तकरीबन पचास फीसदी निर्माण किसी न किसी रूप में थोड़ा या अधिक नियम कानून का उल्लंघन कर होता है। बड़े बड़े प्राधिकरण और उनमें तैनात लाखों की संख्या में इंजीनियर अवर इंजीनियर टाउन प्लानर व लम्बे चैड़े सरकारी अधिकारियों की फौज के बावजूद देश के किसी भी शहर कस्बे में अस्सी फीसदी निर्माण कहीं न कहीं सरकारी नियम कानून कायदे का किसी न किसी रूप में अवमानना उल्लंघन कर किया गया है, किया जा रहा है, और भविष्य में भी इन टावर्स के ध्वस्त होने के बाद भी रुक जाएगा, ऐसा गारंटी के साथ दावा नहीं किया जा सकता है। दरअसल समस्या भ्रष्टाचार है जो समूचे सिस्टम में घर किए विराजमान है जब तक भ्रष्टाचार की लगाम नहीं कसी जाएगी तमाम तरह से बिल्डर निजी क्षेत्र के भूस्वामी अवैध निर्माण करते रहेंगे। बेशक अदालत की सख्ती और दलील बनाने की अतिरंजना के चलते एक गरीब मुल्क की करीब आठ सौ करोड़ की संपत्ति खाक में मिला दी गयी। इन टावरों में इस गरीब मुल्क के पांचकरोड़ से अधिक लोगों में से पचास हजार को सिर छुपाने के लिए आवास मिल सकता था जो खुले आसमान के नीचे रात बिताते हैं फुटपाथ पर राजमार्ग के किनारे सो जाते हैं वह करोड़ों लोग जो दिन रात रिक्शा चलाने कूड़ा चुगने स्ट्रीट वेंडर का काम करने के बाद भी एक घर बनाने के लिए पैसा नहीं जुटा पाते हैं। क्या अदालतें मीलार्ड एलीट सोसाइटी कभी ऐसे ध्वस्तीकरण के फैसले लेते समय उन लोगों को ध्यान में रखने का प्रयास करेंगी। ध्वस्त किए गए टावरों का मालिकाना हक बेशक बिल्डर का रहा हो लेकिन ध्वस्त की गई सामग्री इस राष्ट्र की थी। क्या सिर्फ दो टावर्स का ध्वस्तिकरण इस देश में तमाम अवैध निर्माण को खत्म कर देगा? क्या यह टावर्स समूचे भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गए थे? (
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