Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

नीतीश ने जीता विश्वास मत

नीतीश ने जीता विश्वास मत

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार सरकार ने विश्वास मत हासिल कर लिया। यह पूर्व निर्धारित था। नीतीश कुमार ने समीकरण और संख्याबल का इंतजाम करने के बाद ही पाला बदला था। सत्ता की राजनीति में वह घाटे का सौदा नहीं करते हैं। इसके लिए उन्हें अपनी छवि की चिंता नहीं रहती। मुख्यमन्त्री की कुर्सी न मिले तो छवि बना कर भी क्या करेंगे। वह मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर है यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यह राजनीतिक जीवन का साध्य है।यहां तक पहुँचने और फिर बने रहने में साधन का कोई महत्त्व नहीं। राजनीति में छवि का क्या है, वह परिवर्तनशील है। सच में देखा जाए तो राजनीति के हमाम में सभी दल नंगे ही दिखेंगे। नीतीश कुमार कुर्सी को साथ रख कर पाला बदलने में माहिर हैं। इसी पोजीशन में वह राजनीतिक रूप में दो विपरीत ध्रुवों की यात्रा बड़ी सहजता से कर लेते हैं। बिहार की राजनीति में भाजपा और राजद दो विपरीत ध्रुव हैं। भाजपा राष्ट्रवादी विचारधारा और कैडर पर आधारित पार्टी है। दूसरी तरफ राजद परिवार आधारित पार्टी है।इसके संस्थापक मुख्यमन्त्री रहते हुए ही घोटालों के आरोपी बने थे। उस समय उनके पुत्र छोटे थे। इसलिए अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमन्त्री बना दिया था। लालू यादव आज भी वहीं है। अब उनका स्वास्थ भी ठीक नहीं रहता। छोटे पुत्र तेजस्वी बड़े हो गए। नीतीश कुमार को वही डील कर रहे हैं। कहने को उपमुख्यमंत्री हैं लेकिन नीतीश के मुकाबले लगभग दो गुना संख्याबल है। ऐसी सरकारें खास अंदाज में चलती हैं। मुख्यमन्त्री को अपने उप मुख्यमन्त्री की कृपा पर निर्भर रहना पड़ता है। उसका एक मात्र उद्देश्य अपनी कुर्सी को सुरक्षित रखना होता है।

भाजपा और जेडीयू की बात अलग थी। दोनों ने मिल कर चुनाव लड़ा था। गठबंधन के नेता नीतीश कुमार थे। उन्हीं को भावी मुख्यमन्त्री के रूप में प्रस्तुत किया गया था। इसी गठबन्धन को जनादेश मिला था। इसमें भी जेडीयू का संख्याबल भाजपा से कम था लेकिन भाजपा ने जनादेश का सम्मान किया। नीतीश के नेतृत्व में सरकार को जन आकांक्षा के अनुरूप चलाया जा रहा था।राजद की तरफ का नीतीश पर कोई दबाब नहीं था। राजद का पूरा कुनबा ही घोटालों के आरोप में घिरा है। बताया जाता है कि लालू यादव ने अपनी भ्रष्ट कार्य शैली से पूरे कुनबे को लाभान्वित किया था। नीतीश ने जब पहली बार पाला बदल कर राजद के सरकार बनाई थी,तब भी राजद ने अपनी मूल प्रकृति का परित्याग नहीं किया था। उस सरकार में तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री थे। उनके बड़े भाई स्वास्थ्य मंत्री थे। दोनों मिलकर लालू यादव की विरासत को बढ़ाने में जुटे थे। सुशासन बाबू यह देख कर बेचैन हो गए थे। उन्हें लगा भाजपा के साथ रहकर जो छवि निर्मित हुई थी, सब तार तार हुई जा रही है। इसलिए नीतीश कुमार उस गठबंधन से पीछा छुड़ाकर भाजपा में वापस आ गए थे। नीतीश और लालू परिवार के बीच फिर अमर्यादित आरोपों की बौछार शुरू हो गई थी। ऐसा लगा जैसे नीतीश अब कभी लालू के कुनबे की तरफ पलट कर नहीं देखेंगे लेकिन फिर बैतलवा डाल पर की कहावत चरितार्थ हुई। एक दूसरे पर हमला बोलने वाले एक पाले में आ गए। विधानसभा में विश्वासमत भी हासिल कर लिया। लेकिन राजद यह विश्वास के साथ नहीं कह सकती कि नीतीश कब तक उसके चंगुल में रहेंगे। इसलिए तेजस्वी यादव राजद की परम्परा के अनुरूप ही खुल कर कार्य कर रहे हैं। इस बेमेल गठबंधन की पिछली सरकार में तो विसंगति दिखाई देने में कुछ समय लगा था लेकिन इस सरकार की शुरुआत ही विसंगति से हुई है। राजद ने अपरोक्ष रूप में नीतीश कुमार को औकात बता दी है। यह संदेश दिया गया कि उन्हें राजद के हिसाब से ही सरकार चलानी होगी। नीतीश ने भी इस संदेश को शिरोधार्य कर लिया है। उन्होने बता दिया राजद कोटे के मंत्रियों पर लगे आरोपों पर वह मौन रहेंगे।

सरकार में बिहार में नए कानून मंत्री कार्तिकेय सिंह को लेकर विवाद शुरू हो गया है। इस पर नीतीश कुमार पूरी तरह लाचार दिखाई दिए। उन्होने कहा कि विवादित या आरोपी मंत्रियों पर उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव निर्णय लेंगे जबकि मंत्री पारिषद का मुखिया मुख्यमंत्री होता है। यह सही है कि गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री की सीमाएं होती है। फिर भी मुख्यमंत्री गठबन्धन के नेता से आरोपी मंत्री की जगह किसी दूसरे का नाम देने को कह सकता है। बार बार पाला बदलने के बाद नीतीश कुमार में इतना भी नैतिक साहस नहीं बचा है। उन्होंने मान लिया हैं कि राजद कोटे के सभी मंत्रियों के लिए तेजस्वी ही अघोषित मुख्यमंत्री है। नीतीश केवल अपनी कुर्सी और अपनी पार्टी के मंत्रियों के क्रियाकलाप देखेंगे। इसलिए नीतीश कुमार ने कहा कि कानून मंत्री कार्तिकेय सिंह पर लगे आरोपों के बारे में उनको कोई जानकारी नहीं थी जबकि उनके खिलाफ अपहरण के एक मामले मंगलवार को कोर्ट ने वारंट जारी किया था। यह अकेला मामला नहीं है। नीतीश सरकार में आधा दर्जन से ज्यादा क्रिमिनल और हिस्ट्रीशीटर शामिल हैं। वैसे राजद की समस्या यह है कि वह अच्छी छवि वाले विधायक लाए भी कहाँ से। इस पार्टी में ऐसे लोगों का ही वर्चस्व है। लालू यादव ने कभी सिद्धांतो की राजनीति नहीं की। नीतीश का यह कहना गलत है कि उन्हें आरोपी मंत्रियों की जानकारी नहीं है। नीतीश पूरी राजद को जानते हैं। पहले वह इन सभी का कच्चा चिट्ठा होने का दावा करते थे। यह लाचारी नीतीश ने कुर्सी के लिए खुद स्वीकार की है। कार्तिकेय सिंह को अपहरण मामले में सरेंडर करना था,वह सत्ता पक्ष की शोभा बढ़ा रहे हैं।बिडम्बना यह कि उन्हें कानून मंत्री बनाया गया। भाजपा ने कहा कि नीतीश कुमार की मंत्रिपरिषद बेहद भयानक तस्वीर पेश कर रही है। एक व्यक्ति के इस तथ्य को कैसे छिपाया गया कि वह अपहरण के मामले में वांछित है और उसने बिहार के कानून मंत्री के रूप में शपथ ली। नीतीश कुमार का राजद के दबाव में झुकना बेहद शर्मनाक है। जाहिर हैं कि कुर्सी के लिए सिद्धांत विहीन आचरण करने वाले नीतीश कुमार ने खुद ही अपनी विश्वसनीयता समाप्त कर ली है। ये बात अलग है कि तकनीकी आधार पर वह विश्वास मत हासिल करने में सफल रहे हैं।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ