संकट में नितीश की विश्वसनीयता
(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भारतीय राजनीति में पलटी मारने के दो अलग अध्याय है। पहले में व्यक्तिगत रूप से पाला बदलने वाले योद्धा हैं। दूसरे में मुख्यमंत्री की कुर्सी के साथ पलटी मारने वाले दिग्विजयी है। इस दूसरे अध्याय में नितीश कुमार का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हुआ। क्योंकि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में दो बार यह उपलब्धि हासिल की है। यह बहुत दिलचस्प अध्याय है। नितीश कुमार करीब दो दशक तक भाजपा के साथ रहे।इसी गठबन्धन के साथ रहते हुए वह केंद्र में मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री बने। इसी गठबन्धन में रहते हुए वह सुशासन बाबू के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
राजद की कृपा से नीतीश कुमार को विधानसभा का विश्वास मत तो हासिल हो जाएगा। लेकिन उनकी विश्वसनीयता का संकट अब कभी दूर नहीं होगा क्योंकि पाला बदलना उनकी राजनीति का स्थाई तत्व बन चुका है। उन्होने कुछ ही वर्षों मेँ राजनीति के दो विपरीत ध्रुवों की दो बार यात्रा पूरी की। पहली बार भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बने थे। तब राजद को घोटाले बाज और जंगल राज वाली पार्टी बताते थे, फिर भाजपा को छोड़ कर राजद के सहयोग से मुख्यमंत्री बने। तब भाजपा को धोखेबाज कहा। अब वह लालू यादव के छोटे भाई उनके पुत्रों के चाचा और राबड़ी देवी के देवर बन गए हैं। इनके साथ जुगलबन्दी करते हुए भाजपा पर निशाना लगा रहे थे। इस रिश्तेदारी से मोहभंग हुआ तो फिर भाजपा में आ गए। क्या मजाल की मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दें। पूरी कवायद इस कुर्सी के लिए ही थी। यहां पहुँचते ही राजद को निशाने पर ले लिया। फिर राजद जंगल राज और घोटालों की हिमायती हो गई। इतना ही नहीं एक दूसरे पर निजी और चरित्र हनन के आरोप फिर गूंजने लगे लेकिन एक बार फिर भाजपा के साथ घुटन होने लगी। फिर कुर्सी लेकर राजद की महफिल में पहुँच गए। एक बार फिर राजद आरोप मुक्त हो गई। उसकी जगह भाजपा निशाने पर आ गई। मतलब कभी भाजपा अच्छी राजद खराब और कभी राजद अच्छी और भाजपा खराब लेकिन हर पाले में नितीश अपने को महान प्रदर्शित करना चाहते हैं। इस तरह के नेता सत्ता में तो बने रह सकते हैं, लेकिन अपनी विश्वसनीयता को गँवा देते हैं। भाजपा के साथ रहते हुए उनकी प्रतिष्ठा सुशासन बाबू के रूप में थी लेकिन अस्थिरता के कारण अब लोग उनको पलटू भी कहने लगे हैं।
भारतीय राजनीति में पलटी मारने के दो अलग अध्याय है। पहले में व्यक्तिगत रूप से पाला बदलने वाले योद्धा हैं। दूसरे में मुख्यमंत्री की कुर्सी के साथ पलटी मारने वाले दिग्विजयी है। इस दूसरे अध्याय में नितीश कुमार का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हुआ। क्योंकि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में दो बार यह उपलब्धि हासिल की है। यह बहुत दिलचस्प अध्याय है। नितीश कुमार करीब दो दशक तक भाजपा के साथ रहे।इसी गठबन्धन के साथ रहते हुए वह केंद्र में मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री बने। इसी गठबन्धन में रहते हुए वह सुशासन बाबू के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
राजद और कांग्रेस विपरीत ध्रुव पर थी। राजद और जेडीयू में तो अमर्यादित टीका-टिप्पणी का एक सिलसिला बन गया था। सन्योग यह कि दोनों बार पलटी मार कर नीतीश कुमार राजद की ही शरण में पहुँचे। राजद सरकार को जंगल राज शब्द से सर्वप्रथम नीतीश कुमार ने ही विभूषित किया था लेकिन दूसरी बार भी उन्हें जंगल राज का ही साथ पसन्द आया। पाला बदलने वालों के अपने-अपने तर्क होते हैं। उन्हें लगता है कि जनता कुछ नहीं समझती। किसी का एक पार्टी में दम घुटता है। शुद्ध हवा लेने के लिए वह दूसरे ठिकाने पर बसेरा बना लेते हैं।
इस अध्याय में नितीश कुमार ने हरियाणा के भजन लाल को भी पीछे छोड़ दिया है। वह हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। अपनी पूरी सरकार के साथ उन्होंने पार्टी बदल ली थी। पार्टी दूसरी थी, लेकिन मुख्यमंत्री भजन लाल ही थे। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि भजन लाल अपनी भजन मण्डली लेकर कांग्रेस में पहुँच गए। इस पाला बदल पर भजन लाल के भी तर्क थे। लेकिन नीतीश कुमार के पास इस बात का जवाब नहीं है कि उन्होंने पिछली बार राजद का साथ क्यों छोड़ा था। उस समय भी लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव उनके उपमुख्यमंत्री हुआ करते थे। नीतीश को यह भी बताना चाहिए कि उन्होंने दूसरी बार उस स्थिति में पहुँचने का निर्णय क्यों लिया,जिससे वह तौबा कर चुके थे।
दलबदल के पहले अध्याय में व्यक्तिगत योद्धाओं के नाम दर्ज हैं। यह बड़ा ग्रंथ है। आया राम गया राम की परम्परा बहुत मजबूत है। इनके सामने अक्सर दल बदल कानून भी बेमानी हो जाता है। यह नामकरण भी हरियाणा में हुआ था।यहां विधायक गया राम ने एक दिन में तीन दलबदल किया था। इस अध्याय में पांच वर्ष मंत्री रहने और चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद दल बदल करने वाले जनता के सेवक भी शामिल हंै किन्तु नीतीश कुमार का मुकाबला कोई नहीं कर सकता। कुछ दिन पहले तक उनके और तेजस्वी यादव के बीच आरोपों के तीर चलते थे। तेजस्वी ने प्रतीकात्मक विधानसभा की बैठक भी बुलाई थी, जिसमें नीतीश कुमार पर जम कर प्रहार किए गए थे। अब नीतीश कुमार तेजस्वी के साथ सरकार चलाएंगे। जेडीयू के मुकाबले राजद का संख्याबल लगभग दुगना है। नितीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर
बने रहने के लिए कीमत चुकानी होगी। जनता के बीच यह संदेश भी पहुंच गया है। एक झटके में नितीश कुमार सुशासन बाबू से पलटू कुमार बन चुके हैं। अब पुराना महागठबंधन ही नए सिरे से बनाया जाएगा, जिसमें राजद और कांग्रेस के साथ जनता दल यू शामिल होंगे। जेडीयू ने कुछ दिन पहले हुए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में राजग के उम्मीदवारों का समर्थन किया था। यह भी कहा जा रहा है कि वह उपराष्ट्रपति बनना चाहते थे लेकिन उनकी यह आकांक्षा पूरी नहीं हुई। इस कारण उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद उन्हें राजग में रहने का लाभ दिखाई नहीं दिया। वह राजग से इस बात का बदला लेना चाहते थे लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते थे। उपराष्ट्रपति न बनने के बाद इसी कुर्सी पर उम्मीद टिकी थी। यह अभिलाषा राजद ने पूरी कर दी। उसे भी इस मुश्किल समय पर अपने इशारों पर चलने वाली सरकार की आवश्यकता थी। नीतीश खुद ऐसी सरकार तश्तरी में लेकर पहुँच गए थे। कमजोर संख्याबल नीतीश कुमार को स्वाभिमान के साथ काम नहीं करने देगा। नीतीश कुमार अब जिस सरकार का नेतृत्व करेंगे उसमें कांग्रेस, राजद और वाम दलों का पूरा दखल रहेगा। इनमें से कोई भी नितीश की भावी महत्वाकांक्षा को पूरा नहीं होने देगा।
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