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राजनीतिक गठबंधन

राजनीतिक गठबंधन

जय प्रकाश कुँवर
गठबंधन शब्द गांठ से ही बनता है । गांठ का शाब्दिक अर्थ होता है कि रस्सी ,तागे ,कपड़ों आदि के सिरों को घुमा कर और एक दूसरे में फंसा कर कसने से बनने वाला उभरा हुआ रूप । यह रूप यानी गांठ कभी भी सहज और समान नहीं होता है , चाहे जितना भी दबाव या प्रयास करके देखा जाए । यह हमेशा ही उभरा हुआ ही दिखता है । इसी तरह गठबंधन से बना हुआ कोई भी पदार्थ चाहे वह निर्जीव हो या सजीव हो , कभी भी सहज नहीं हो सकता है और उसके अंदर कुछ न कुछ भेद बना ही रह जाता है ।
हमारे कुछ आदि कवियों ने इसके संबंध में बड़ी अच्छी अच्छी बातें लिखी हैं । जिसका भाव मैं अपने शब्दों में लिख रहा हूं --
1. दोस्तों धागा प्रेम का , मत तोड़ो चटकाय ।
टुटे पर फिर ना जुड़े ,जोड़े गांठ रह जाय ।।
2. दोस्तों प्रीति न कीजिए ,जस खीरा ने कीन्ह ।
उपर से तो दिल मिले , भीतर फांकें तीन ।।
आज के माहौल में उपरोक्त बातें शत प्रतिशत खरी उतरती है । बेमेल राजनीतिक गठबंधन तो हो रहे हैं सत्ता पर काबिज रहने के लिए , परंतु नीतिगत रूप से इन गठबंधनों में कोई तालमेल नहीं रह जाता है , और अंदर ही अंदर उठापटक चलता रहता है । और इन गठबंधनों के राजनेताओं को चुनने वाली आम जनता ठगी हुई महसूस करती है । यह गठबंधन ऊपर से तो एक दिल दिखाई पड़ते हैं और शासन का भार संभालते हैं , परंतु भीतर भीतर इनमें हमेशा हलचल बना रहता है , एवं भीतर भीतर अपने दल का संख्या बल बढ़ाने की कोशिश आपस में तोड़फोड़ करके करने की बात चलती रहती है । राज्य तथा देश में प्रशासन का काम या तो प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ में होता है,या फिर भगवान भरोसे चलता रहता है। अब इस हालात में आम जनता खुद ही सोच सकती है कि इस तरह बेमेल गठबंधन कर सरकार चलाने की कोशिश करने वाले लोगों द्वारा राज्य का अथवा देश का भला किस हद तक हो सकता है ।
परंतु विडंबना यह है कि प्रजातंत्र में ऐसे राजनेताओं को व्यक्तिगत तौर पर अथवा दलगत तौर पर चुनने वाले भी हम आम जनता के लोग ही हैं । हम अपने जानते इन्हें चुनते हैं देश और राज्य को विकसित करने के लिए परंतु चुने जाने के बाद ऐसे राजनेता प्राथमिकता के आधार पर अपना विकास देश व राज्य की तुलना में ज्यादा ही करने में लग जाते हैं , और तब तक अपना सामाजिक एवं आर्थिक विकास करने में लगे रहते हैं, जब तक ये सीबीआई अथवा प्रवर्तन निदेशालय के अफसरों द्वारा पकड़े नहीं जाते हैं । एक बार पकड़े जाने पर इनके घरों से रुपयों के बंडल पेटियों और ट्रकों में भरकर ले जाया जाता है । फिर भी ये चिल्लाते हैं कि हम निर्दोष हैं और यह सब उनके गठबंधन के लोगों तथा विरोधियों द्वारा करवाया जा रहा है। उनको यह बताने में अब भी शर्म आता है कि यह जनता का पैसा है जो देश के विकास में लगना चाहिए था , परंतु उन्होंने अनैतिक रूप से इसे अपने परिवार को बढ़ाने के लिए जमा किया है ।
धन्य हैं ऐसे राजनेता और धन्य है ऐसे गठबंधनों की राजनीति जो देश को केवल अपने सत्ता लाभ के लिए तथा अपने स्वयं एवं पारिवारिक विकास के लिए देश को खोखला करने पर तुले हुए हैं । अब भी समय है अपने को सुधारने की और सच्चा देशभक्त बनकर देश को समृद्ध करने की। देश का विकास ही हम सबका विकास है । वंदे मातरम । जय भारत।
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