खुशबू अब आती नहीं खिड़कियों मकानों में
रहा नहीं अब प्रेम पुराना आज के इंसानों में
खुशबू अब आती नहीं खिड़कियों मकानों में
आलीशान बंगलों से प्यारी झोपड़ी में प्यार था
खुली हवा नीम के नीचे रिश्तो भरा अंबार था
गांव की चौपाले गायब पीपल की ठंडी छांव में
ना रही वो पाठशाला बस्ता ले जाते हम गांव में
सिमट गए सब कमरों में विचारों में होकर बंद
हम दो हमारे दो, संयुक्त परिवार रह गए चंद
उममड़ता प्यार का सिन्धु नयन नेह बरसाते थे
अतिथि आया घर सारे दर्शन पाकर हरसाते थे
प्यार भरे बोल मीठे प्रसुन खिलते कहां बागानों में
स्नेह खुशबू अब आती नहीं खिड़कियों मकानों में
मर्यादाएं सब ढहने लगी संस्कार सब लुप्त हुए
दबदबा रहता घरों में वो दिग्गज भी सुप्त हुए
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थानहमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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