संतान की दीर्घायु का व्रत हलषष्ठी
(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
पुत्र की दीर्घायु के लिए हरछठ का व्रत भाद्र पक्ष की छठ को रखा जाता है। आज के दिन पुत्रवती स्त्रियाँ व्रत करती हैं। आज के दिन न तो जोते खेत मंझाये जाते हैं, और न हल से जोता खाया जाता है। तालाब में पैदा होने वाला पसई का चावल खाया जाता है। गाय का दूध दही मना है। शक्कर भी नहीं खाई जाती है। भैंस का दूध, पूरी सेंधा नमक घी खाया जाता है। दीवाल पर गोबर से लीपकर हरछठ की अल्पना बना भी जाती है। बीच में 2 पुत्र व सभी देवी-देवताओं, गाय, भैंस, बाघ व बच्चों के चित्र बनाये जाते हैं। इसके उपरान्त आंगन में झरबेरी व जारी छिउल गाड़कर पूजा की जाती है। 6 मेल की बहुरी भुनाकर छोटी चुकरियों में भरकर रखी जाती हैं, पसई के चावल,दही में मिलकर चढ़ाया जाता है और 6 पत्तों में रखकर चाटा जाता है, सब प्रकार की मेवा, पूरी शक्कर भी चढ़ाई जाती है। हरछठ की 6 कथायें होती हैं।
कथाएं इस प्रकार हैं- एक राजा था उसने एक तालाब खुदवाया। बहुत दिन खोदने के बाद व लाख जतन करने के बाद भी पानी नहीं निकला। राजा ने पंडितों से पूछा कि पानी क्यों नहीं निकलता? पंडित ने बताया कि अगर हरछठ के दिन राजा अपने नाती की बलि दें तो तालाब भर जायेगा। राजा बड़े असमंजस में पड़ गया। राजा ने अपनी बहू को बुलाया और कहा कि तुम्हारे पिता जी बहुत बीमार हैं देख आओ। तुम फौरन चली जाओ बच्चों को यहीं छोड़ जाना। बहू ने कहा पिता जी आज तो हरछठ है मुझे पूजा करना, मैं कैसे जा सकती हूँ? राजा ने कहा तुम्हारी डोली मेड़-मेड़ जायेगी जोते में नहीं जायेगी। मैं जानता हूँ कि न जोता खाया जाता और न मंझाया जाता है। बहू की डोली फौरन तैयार की गई। बहू बैठकर अपने पिता के घर चल दी। बहू की डोली जब मैके के पास पहुँची तब सुना कि हरछठ के बाजे बज रहे हैं। बहू ने सोचा अगर हमारे पिता बीमार होते तो किसकी हिम्मत थी बाजा बजाने की? घर पहुँच कर अपनी माँ से पूछा क्या बात है? माँ ने कहा तुम्हारे पिता जी ठीक हैं और तुम आज हरछठ के दिन बच्चों को छोड़कर कैसे गईं? माँ ने कहा फौरन जाओ और बच्चों को लेकर हरछठ की पूजा करो जाकर।
कहारों ने फौरन डोली घुमाई घर की ओर वापस आये। जब नगर के पास डोली पहुँची तब बहू ने कहारों से पूछा कि हमारे ससुर का तालाब कहाँ हैं उसको भी देखते चलेंगे जिसमें पानी नहीं भरता। उसी तरफ डोली ले ले चलो। तालाब के किनारे जाकर उसने देखा अथाह जल लहरा रहा है। लाल, सफेद कमल खिले हैं और पत्तों के ऊपर उनका लड़का किलकारी मारकर खेल रहा है। बहू ने सोचा कि देखो आज हरछठ के दिन मुझे बाहर भेज दिया और मेरे बच्चे को भी नहीं देखा। कहीं डूब जाता तो क्या होता? बहू फौरन तालाब में कूदकर अपने बच्चे को निकालकर ले आई। बच्चे को गले से लगा लिया और चल दी। इधर सास फांसी लगाने जा रही थी कि अगर बहू अपना बच्चा मांगेगी तो हम क्या देंगे? उसको क्या मुँह दिखाऊँगी। इतने में बच्चे को लेकर बहू सास के पास पहुँची और बोली अम्मा आज हरछठ को पहले मुझे घर से निकाला फिर बच्चे को भी निकाल दिया। अगर मौके पर न पहुँच जाती तो बच्चा डूब कर मर जाता। रानी बहू को बालक के साथ देखकर बहुत अचम्भे में पड़ गई और बच्चे को वापस पाकर बहू की गोद से लेकर कलेजे से लगा सुया और रो-रोकर कहने लगी-बहू हमने तो तेरे बच्चे की बलि दी थी तभी तालाब से पानी निकला। बहू मैं बहुत पापिन हूँ। मुझे माफ कर दो। हरछठ माँ की कृपा से तेरा बच्चा तुम्हें वापस मिला है। राजा भी आगये वह भी अपने किये पर दुखी थे। दोनों ने बहू से माफी माँगी। बहू ने सास-ससुर को उठाया
और बोली मुझे मेरा बच्चा मिल गया। आपने तो प्रजा की खुशी के लिए सब किया था। फिर बहू ने बच्चे को लेकर विधिवत् हरछठ की पूजा की। जैसे उनके दिन बहुरे, वैसे सभी के दिन बहुरें।
दूसरी कथा इस प्रकार है- एक थी सास और एक थी बहू। सास सीधी पर बहू थी अधबैली उसके सब काम पागलों जैसे होते थे। उनके एक बछड़ै था जिसका नाम था गोहुआँ। गाय तो नार में चरने चली जाती थी पर गोहुआँ घर में बंधा रहता था। उसी पड़ोस में एक दासी रहती थी उसके दो बच्चे थे। जिनके नाम थे ठेंगरिया और मोगरिया। जब वह काम पर जाती तो अपने बच्चों को अधबैली की सास को सौंप जाती। एक दिन सास ने कहा कि मैं बाहर जाती हूँ। शाम तक लौटुंगी। तब तक ठेंगरिया और मोगरिया लगाकर गोहुँआ पका लेना।
बहू अधबैली तो थी ही। गोहुँआ बछड़े की समझी, बछड़े को काट डाला और बटुली में भरकर चूल्हे पर चढ़ा दिया। सास ठेंगरिया और मोगरिया लकड़ी को कह गई थी उसने दासी के दोनों बच्चों को चूल्हे में लगा दिया। शाम को जब सास लौटी तो उसने पूछा गोहुआँ पकाया। बहू ने चिढ़कर कहा अच्छा बता गई थीं। गोहुआँ पकता ही नहीं है और ठेंगरिया मोगरिया जलते ही नहीं। सास ने जब चूल्हा और बटुली देखी तब करम ठोंक कर रह गई। रोकर कहने लगी अभी गाय अपना बछड़ा माँगेगी तो क्या दूँगी? इस पागल बहू ने तो सब को खा लिया। बहू को कोसकर रोती जाती थी। जंगल से गाय आ गई। गोहुआँ की माँ दरवाजे पर खूँटे के पास आकर खड़ी हो गई। बछड़े के लिए आकर बंबाई और सींग से घूर बेझा। घर से उसका बछड़ा आया। सास को कुछ सन्तोष हुआ। इधर दासी काम करके जब अपने बच्चों को लेने अधबैली की सास के पास गयी तो रास्ते में चींटियों की पांत मिल गई। वह खड़ी होकर पांत के खत्म होने की प्रतीक्षा करने लगी। पांत न अब खत्म हो न तब । बहुत देर बाद जब खत्म हुई तब दासी आगे बढ़ी। उसने देखा उसके दोनों बच्चे नार के बीच में खेल रहे हैं। उसने दोनों को उठा लिया और प्यार किया तथा सास से बोली इसी तरह बच्चों की देखभाल करती हो। तुमने तो इन्हें लावारिस छोड़ दिया था। जानवरों के पैरों से कुचल जाते तो। सास बोली बेटी, बच्चे तो तुम्हारे मर ही चुके थे पर हरछठ के प्रताप से और तुम्हारे पुण्य से तुम्हें मिल गये। इतना कहकर उसने अधबैली की सभी बातें सुनाईं। हरछठ की कृपा से सभी सुखपूर्वक रहने लगे। तीसरी कथा-एक थीं सास-बहू। सास तो बहुत सीधी थी पर बहू बड़ी दुष्ट थी। सास अपनी बहू के व्यवहार से दुखी थी। एक दिन सास बहुत सुबह अपने खेतों पर जाने लगी उसने बहू से कहा गाय, भैंस, बछड़ों के नीचे सफाई कर देना। सास के जाने के बाद बहू ने जाकर देखा खूब मल-मूत्र गोबर पड़ा था। दुर्गन्ध आ रही थी। बोली ऐसे जानवर पालने से क्या फायदा और एक डंडा उठाया चार-चार डंडे सभी के लगाये और सबको जंगल में खदेड़ दिया। शाम को जब सास लौटी तो पूछा-बहू सबके नीचे सफाई कर दी। बहू ने कहा वह सब बड़े गन्दे हैं। मैंने उन्हें चार-चार डंडे मारकर जंगल में खदेड़ दिया। सास ने माथा पीट लिया। बोली हाय बहू ये तुमने क्या किया? जिनसे हमको घी-दूध मिलता था मेरे जीवन का सहारा थे उनहें तुमने घर खदेड़ा। सास जंगल की ओर दौड़ गई। बहुत दूर पर उसने अपने गाय, भैंस, बैलों को चरते देखा। पुकार कर उन्हें घर चलने को कहा। उन्होंने वहीं से जवाब दिया कि अब तुम्हारे घर में तुम्हारा राज्य समाप्त हो गया है। अब तुम्हारी बहू का राज्य है। उसके शासन नें हम नहीं रहेंगे। सास ने कहा नहीं माता ऐसा अनर्थ न करो बड़ी भूल हुई, हमें क्षमा करो। अभी भी सभी हमारा कहना मानते हैं। अब तुम्हें कोई कष्ट न होगा इस तरह सास ने बहुत मनाया चिरौरी-बिनती की। वे मान गये और सास सबको लेकर घर लौट आई और सब आनन्द से रहने लगे। उस दिन से फिर किसी ने उन्हें नहीं सताया।
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