संस्कृत दिवस के अवसर पर संगोष्ठी आयोजित की गई|
संस्कृत संस्कृति की अभिव्यक्ति है: डॉक्टर सुरेंद्र
औरंगाबाद से दिव्य रश्मि संवाददाता अरविन्द अकेला की खबर
औरंगाबाद शहर की हृदयस्थली में स्थित रामनरेश सिंह संस्कृत उच्च विद्यालय के सभाकक्ष में संस्कृत दिवस के अवसर पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता उक्त महाविद्यालय के सचिव श्री विश्वनाथ सिंह तथा मंच संचालन कवि धनंजय जयपुरी ने किया।
सर्वप्रथम संस्कृत के अनुरागियों ने पटल पर रखे पवित्र ग्रंथ 'वेद' पर पुष्प अर्पित किए तदुपरांत दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया। वक्ताओं ने एक स्वर से इस बात पर बल दिया कि विपुल साहित्य वाली संस्कृत भाषा में वे सारे गुण समाहित हैं जो संस्कृत को वैश्विक स्वरूप प्रदान कर सकते हैं।
कार्यक्रम का विषय प्रवेश कराते हुए आचार्य विनय कुमार पांडेय ने कहा कि संस्कृत एक ऐसी भाषा है जिसके उच्चारण मात्र से वातावरण में एक सकारात्मक ऊर्जा पैदा हो जाती है। इस क्रम को जोड़ते हुए प्रो शिवपूजन सिंह एवं पर्यावरणविद प्रो रामाधार सिंह ने कहा कि संस्कृत एक वैश्विक भाषा है,जरूरत इस बात की है कि इसे शासकीय संरक्षण प्राप्त हो और रोजगार परक बनाया जाए।
संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि संस्कृत संस्कृति की अभिव्यक्ति है, इसके बगैर सांस्कृतिक उन्नयन की अपेक्षा नहीं की जा सकती। गोष्ठी को बौद्धिक समर्थन प्रदान करते हुए डॉक्टर महेंद्र पांडेय ने कहा कि मंत्रद्रष्टा ऋषियों की भूमि भारत के ज्ञान भंडार की पूंजी संस्कृत है। इसे नेपथ्य में ढकेल दिए जाने के कारण आज विश्वगुरु पश्चिमी ज्ञान का परमुखापेक्षी हो गया है।
अधिवक्ता अनिल कुमार सिंह ने कहा कि संस्कृत भाषा संगणक के अनुकूल है। अतः इसे रोजगारमुखी बनाया जा सकता है।
संचालन के क्रम में साहित्यकार धनंजय जयपुरी ने कहा कि किसी भी देश की संस्कृति संस्कृत पर ही आश्रित है। इसकी उपेक्षा राष्ट्र की सेहत के लिए कभी हितकर नहीं होगी। बतौर मुख्य अतिथि आचार्य लालभूषण मिश्र ने कहा कि एक समय ऐसा था जब भारत के पशु-पक्षी भी संस्कृत समझते थे परंतु, आज संस्कृत की सम्यक् जानकारी रखने वाले लोगों का सर्वथा अभाव हो गया है जो चिंता का विषय है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वनाथ सिंह ने कहा कि हमें एकजुट होकर संस्कृत के समर्थन में आवाज बुलंद करनी होगी तभी सरकार की कुंभकरणी नींद खुलेगी। सभा के अंत में कार्यक्रम के संयोजक एवं प्राचार्य डॉ सूरजपत सिंह ने आगत अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि निश्चय ही संस्कृति के संरक्षण और उन्नति का मूल संस्कृत में ही निहित है।
इस कार्यक्रम में उपर्युक्त लोगों के अलावा डॉ अखिलेश्वर मिश्र,विनोद सिंह, प्रधानाध्यापक प्रफुल्ल कुमार, प्रो रंजीत कुमार सिंह, दामोदर मिश्र, कृष्णा सिंह, सरोज सिंह, राजेंद्र पाठक, मुरलीधर पांडेय, राजेंद्र प्रसाद सिंह, राम सुरेश सिंह, शिवनंदन पांडेय, राम भजन सिंह,कृष्णा सिंह प्रवृत्ति लोग उपस्थित थे।
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