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निद्रा पर विजय पाकर अर्जुन कहलाए गुडाकेश

निद्रा पर विजय पाकर अर्जुन कहलाए गुडाकेश

(हिफी डेस्क-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
रामायण अगर हमारे जीवन में मर्यादा का पाठ पढ़ाती है तो श्रीमद् भागवत गीता जीवन जीने की कला सिखाती है। द्वापर युग के महायुद्ध में जब महाधनुर्धर अर्जुन मोहग्रस्त हो गये, तब उनके सारथी बने योगेश्वर श्रीकृष्ण ने युद्ध मैदान के बीचोबीच रथ खड़ाकर उपदेश देकर अपने मित्र अर्जुन का मोह दूर किया और कर्तव्य का पथ दिखाया। इस प्रकार भगवान कृष्ण ने छोटे-छोटे राज्यों में बंटे भारत को एक सशक्त और अविभाज्य राष्ट्र बनाया था। गीता में गूढ़ शब्दों का प्रयोग किया गया है जिनकी विशद व्याख्या की जा सकती है। श्री जयदयाल गोयन्दका ने यह जनोपयोगी कार्य किया। उन्होंने श्रीमद भागवत गीता के कुछ गूढ़ शब्दों को जन सामान्य की भाषा में समझाने का प्रयास किया है ताकि गीता को जन सामान्य भी अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से उतार सके। -प्रधान सम्पादक

प्रश्न-संजय ने यहाँ भगवान् को पुनः हृषीकेश क्यों कहा?

उत्तर-भगवान् को हृषीकेश कहकर संजय महाराज धृतराष्ट्र को यह सूचित कर रहे हैं कि इन्द्रियों के स्वामी साक्षात् परमेश्वर श्रीकृष्ण जिन अर्जुन के रथ पर सारथी का काम कर रहे हैं, उनमें युद्ध करके आप लोग विजय की आशा करते हैं-यह कितना बड़ा अज्ञान है।

प्रश्न-अपने रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा करने के लिये अनुरोध करते समय अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण को ‘अच्युत’ नाम से सम्बोधन किया, इसका क्या हेतु है?

उत्तर-जिसका किसी समय भी पराभव या तपन न हो अथवा जो अपने स्वरूप, शक्ति और महत्व से सर्वथा तथा सर्वदा अस्खलित रहे-उसे, ‘अच्युत कहते हैं। अर्जुन इस नाम से सम्बोधित करके भगवान् की महत्ता के और उनके स्वरूप के सम्बन्ध में अपने ज्ञान को प्रकट करते हैं। वे कहते हैं कि आप रथ हाँक रहे हैं तो क्या हुआ, वस्तुतः आप सदा-सर्वदा साक्षात् परमेश्वर ही हैं।

यावदेतान्न्ािरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्।

कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणमुद्यमे।। 22।।

प्रश्न-इस श्लोक का स्पष्टीकरण कीजिये।

उत्तर-अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण से कह रहे हैं कि आप मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले जाकर ऐसे उपयुक्त स्थान पर और इतने समय तक खड़ा रखिये, जहाँ से और जितने समय में मैं युद्ध के लिये सज-धजकर खड़े हुए समस्त योद्धाओं को भलीभाँति देख सकूँ। ऐसा करके मैं यह जानना चाहता हूँ कि इस रणोद्यम में-युद्ध के विकट प्रसंग में स्वयं मुझको किन-किन वीरों के साथ लड़ना होगा।

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।

धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।। 23।।

प्रश्न-दुर्योधन को अर्जुन ने दुर्बुद्धि क्या बतलाया?

उत्तर-वनवास तथा अज्ञातवास के तेरह वर्ष पूरे होने पर पाण्डवों को उनका राज्य लौटा देने की बात निश्चित हो चुकी थी और तब तक वह कौरवों के हाथ में धरोहर के रूप में था, परन्तु उसे अन्यायपूर्वक हड़प जाने की नीयत से दुर्योधन इससे सर्वथा इन्कार कर गये। दुर्योधन ने पाण्डवों के साथ अब तक और तो अनेकों अन्याय तथा अत्याचार किये ही थे, परन्तु इस बार उनका यह अन्याय तो असह्य ही हो गया। दुर्योधन की इसी पाप बुद्धि का स्मरण करके अर्जुन उन्हें दुर्बुद्धि बतला रहे हैं।

प्रश्न-दुर्योधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो ये राजा इस सेना में आये हैं, इन युद्ध करने वालों को मैं देखूँगा, अर्जुन के इस कथन का क्या अभिप्राय है

उत्तर-अर्जुन का इसमें यह भाव प्रतीत होता है कि पाप बुद्धि दुर्योधन का अन्याय और अत्याचार सारे जगत में प्रत्यक्ष प्रकट है, तो भी उसका हित करने की इच्छा से उसकी सहायता करने के लिये ये राजा लोग यहाँ इकट्ठे हुए है; इससे मालूम होता है कि इनकी भी बुद्धि दुर्योधन की बुद्धि के समान ही दुष्ट हो गयी है। तभी तो ये सब अन्याय का खुला समर्थन करने के लिय आकर जुटे हैं और अपनी शान दिखाकर उसकी पीठ ठोक रहे हैं तथा इस प्रकार उसका हित करने जाकर वास्तव में उसका अहित कर रहे हैं। अपने को बड़ा बलवान् मानकर और युद्ध के लिये उत्सुक होकर खड़े हुए इन सबको मैं जरा देखूँ तो सही कि ये कौन-कौन हैं? और फिर युद्ध स्थल में भी देखूँ कि ये कितने बड़े वीर हैं और इन्हें अन्याय तथा अधर्म का पक्ष लेने का मजा चखाऊँ।

एममुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।

सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्।। 24।।

भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्।

उवाच पार्थ पश्यैतान् समवेतान् कुरुनिति।। 25।।

प्रश्न-‘गुडाकेश‘ का क्या अर्थ है और संजय ने अर्जुन को यहाँ गुडाकेश क्यों कहा?

उत्तर-‘गुडाका’ निद्रा को कहते हैं; जो नींद को जीतकर उस पर अपना अधिकार कर ले, उसे ‘गुडाकेश’ कहते हैं। अर्जुन ने निद्रा जीत ली थी, वे बिना सोये रह सकते थे। नींद उन्हें सताती नहीं थी, आलस्य के वश तो वे कभी होते ही न थे। संजय ‘गुडाकेश’ कहकर यह सूचित कर रहे हैं कि जो अर्जुन सदा इतने सावधान और सजग हैं, उन्हें आपके पुत्र कैसे जीत सकेंगे?

प्रश्न-युद्ध के लिये जुटे हुए इन कौरवों को देख, भगवान् के इस कथन का क्या अभिप्राय है?

उत्तर-इससे भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि तुमने जो यह कहा था कि जब तक मैं सबको देख न लूँ तब तक रथ वहीं खड़ा रखियेगा, उसके अनुसार मैंने सबके बीच में ऐसी जगह रथ को लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ से तुम सबको भलीभाँति देख सको।

रथ स्थिर भाव से खड़ा है, अब तुम जितनी देर तक चाहो सबको भलीभाँति देख लो।

यहाँ ‘कुरून् पश्य’ अर्थात् ‘कौरवों को देखो’ इन शब्दों का प्रयोग करके भगवान् ने यह भाव भी दिखलाया है कि ‘इस सेना में जितने लोग हैं, प्रायः सभी तुम्हारे वंश के तथा आत्मीय स्वजन ही हैं। उनको तुम अच्छी तरह देख लो।’ भगवान के इसी संकेत ने अर्जुन के अन्तःकरण में छिपे हुए कुटुम्ब स्नेह को प्रकट कर दिया। अर्जुन के मन में बन्धु स्नेह से उत्पन्न्ा करुणा जनित कायरता प्रकट करने के लिये ये शब्द मानो बीजरूप हो गये। मालूम होता है कि अर्जुन को निमित्त बनाकर लोककल्याण करने के लिए स्वयं भगवान् ने ही इन शब्दों के द्वारा उनके हृदय में ऐसी भावना उत्पन्न्ा कर दी, जिससे उन्होंने युद्ध करने से इन्कार कर दिया और उसके फलस्वरूप साक्षात् भगवान् के मुखारबिन्द से त्रिलोकपावन दिव्य गीतामृत की ऐसी परम मधुर धारा बह निकली, जो अनन्त काल तक अनन्त जीवों का परम कल्याण करती रहेगी।

तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितृनथ पितामहान्।

आचार्यान्मातुलान् भ्रातृन पुत्रान् पौत्रान् सखींस्तथा।। 26।।

श्वशुरान् सुहृदृश्वैव सेनयोरुभयोरपि।

प्रश्न-इस डेढ़ श्लोक का स्पष्टीकरण कीजिये।

उत्तर-भगवान् की आज्ञा पाकर अर्जुन ने दोनों की सेनाओं में स्थित अपने समस्त स्वजनों को देखा। उनमें भूरिश्रवा आदि पिता के भाई, पितातुल्य पुरुष थे। भीष्म, सोमदत्त और वाहीक आदि पितामह-प्रपितामह थे। द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि गुरु थे पुरुजित, कुन्तिभोज और शल्य आदि मामा थे। अभिमन्यु, प्रतिविध्य, घटोत्कच, लक्ष्मण आदि अपने और भाइयों के पुत्र थे। लक्ष्मण आदि के पुत्र थे, जो सम्बन्ध में अर्जुन के पौत्र लगते थे। साथ खेले हुए बहुत से मित्र और सखा थे। द्रुपद, शैव्य आदि ससुर थे। और बिना ही किसी हेतु के उसका कल्याण चाहने वाले बहुत-से सुदृद् थे।

तान् समीक्ष्य म कौन्तेयः सर्वान् बन्धूनवस्थितान्।। 27।।

कृपया परयाविष्टो विषीदन्न्ािदमब्रवीत्।

प्रश्न-‘उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं’ से किनका लक्ष्य है? उत्तर-पूर्व के डेढ़ श्लोक में अर्जुन अपने ‘पिता-पितामहादि बहुत-से पुरुषों की बात कह चुके हैं; उनके सिवा जिनका सम्बन्ध स्पष्ट नहीं बता आये हैं, ऐसे धृष्टद्युम्न, शिखण्डी और सुरथ आदि साले तथा जयद्रथ आदि बहनोई और अन्यान्य जो अनेकों प्रकार के सम्बन्धों से युक्त स्वजन दोनों ओर की सेना में हैं-उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं से संजय उन सभी का लक्ष्य कराते हैं।
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