माँ ! नौ माह गर्भ में बालक को रखती,
माँ ! जन्म देकर अमृतमयी दूध का सेवन कराती,
माँ ! दुःख सारे सह कर भी जीने का हौसला दिलाती,
माँ ! संस्कारों को धारण करा जीने का मकसद बताती,
माँ ! आदमी से बढ़ कर इंसान बनाती,
माँ ! राह में भटके हुए को अध्यात्म का मार्ग बताती,
माँ ! विपत्तियों में धेर्य रखें,हमको यह सन्देश सुनाती,
माँ ! दीन दुखियों और गरीबों में शिक्षा के दीप जलाती,
माँ ! "मानवता श्रेष्ठ धर्म है",ऐसा हममे विश्वास जगाती,
माँ ! सदैव हमें नैतिकता का पाठ पढ़ाती,
माँ ! अँधेरे में जैसे चिंगारी,सदा हमको राह दिखाती,
माँ ! माँ ! माँ ! बस वह माँ है जो हमारी खातिर जीती है,
हम माँ को नमन करते हैं |
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