जुगनू
जुगनू रात भर चमकते है
अपनी उपस्थिति जताते हैं
मगर सूर्य के सम्मुख
सभी निस्तेज हो जाते हैं।
बहुत सारे जुगनू मिलकर भी
एक दीपक नहीं बन पाते हैं
भटके हुए किसी पथिक को
मंजिल नहीं दिखा पाते हैं।
जुगनू बनकर खुद की खातिर
अक्सर लोग जिया करते हैं
निज स्वार्थ में जीने वाले
मंजिल नहीं बना करते हैं।
जो सूरज की किरणों सा फैले
वह तम दूर किया करते हैं
होते पथिक राह के लेकिन
मंजिल बन जाया करते हैं।
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