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धनवंद बने के चक्कर मंं

धनवंद बने के चक्कर मंं

डॉ रामकृष्ण मिश्र
रंजीत नाम हल ओकर। माय बाप के टूअर। जेकर जेकर गोड़ैती करित चले, मुदा टहलुआ बने भी तो बिन पैसा कौड़ी के। रंजितवा तनी तनी तीन कफ चाह ले आओ,,कडा़ पत्ती मारके कहिहें,एगो अलगे से पेआली माँग लिहें। कोई पंसारी के दुकान से समान लावे ला पुरजा थमा देवे इ कहित कि ठीक से गिनके झोला में रखिहें आउ प इसा माँगे पर कह दिहें कि उन्हकर खाता मे लिख लऽ। असने केतनन छिट पुट बेगारी करावे में ओकर भविस के चकरी जाम करके रखाएल रहे। रंजीत खयलक हे कि नऽ, चाह तो खूबे ढोलक बाकि आधो कपटी चाह के पूछार ओकरा ला बेमानी हल।
कखनिओ ओकर मन में लगऽ हल कि हमर जिनगी के इ
ई गाड़ी कइसे खिंचायत? जबकि ओकरा से तीनगो भाई बड़ हलन जे सोनार पट्टी में जेवर बनावे के करीगरी सीखित हलन। साइत, ई सोच के कि एकरा जब काम पर कनहू लगा देल जाएत त हमनी के गोडैती के करत।
कोइ-कोइ महलवे के आदमी ,जेकरा लगे कि एकरा जिनगी बेकार हो जय इ से ओकर काम पर लगावे कै जोगाड़ में लग्न, कि एगो दूकनदार किहाँ रखवा देलनन। उहाँ ,काम तो दस बारह घंटा के होए बाकि मजूरी के नाम खाली दू साँझ खायला आउ एक बेर चाह,उहो पनछोछराइन।
अखनी तो उ बारहे बच्छर के हल त केतना बरदास करत हल। बेराम पड़ गेल। तनी ठीक भेल त दोकानदार दोसर के रख लेलक।
कहल गेल हे कि जेकरा मदद करेला भगवान खाड़ हो जाहथ ओकर सब मदद करे लगऽ हे। बाते बाते सोनरे पट्टी के एगो दुकनदार बड़ी दुलार मलार के अपना हीं लेगेल। उ दुकनदार के कारवार लमहर हल इ, रनजीत के खाली दुकान के सफाई आउ हलका फुलका काम ,गाहक ला चाय-उय लावे के काम मिल गेल। अब तो ई खुस भी निरोग भी।
जेवर बनवावे ला आएल गहकी के सेवा टसल के अलावे अब करीगर के पास से बनल समानो लावे लगल। दोकानदारो के लगे लगल कि ई हे काम के लड़ीका एकरा अदमी बनावल जा सकऽ हे। बस, एक दिन सोनारपट्टी के गरीगर के मेठ के बोलौलक आउ कहलक कि एकरा जेवर बनावे बनावे के करिगर इ सिखा दे बाबू ई हे बड़ी काम के। रंजीत दोसर दिन से करिगरी सीखे लगल। सुरू मे तो बड़ी मुसकिल बझैल इ फिन रम गेला पर भगवान किरपा से अपने एक एक डिजाइन बनावे आउ बड़का करी गर के देखाबे। ओकर करिगरी देख के अचरज मे हेड करीगरो सोचे लगे कि एतने उमर मेन अइसन दिमाग क इसे हो गेल इ। धीरे धीरे ओकर बडाई होए लगल ओकर डिजाइन आउ सफाई देख के सोनार पट्टी में करिगरी के धाक जमे लगल। ओकर बनवल जेवर गहकी पसंद होवे से दुकनदारो के नजर मे खिले लगल। कुछे दिन में गहकी पहिले छोटामोटा काम ला सीधे रनजीते से मिले लगलन आउ अपन खास सरोकार बढ़ावे लगल। ओकान से अलग चुप्पे गहकी के का लेवे लगल ,लरब लेके समान बनाके गहकी के घरे पहुँचावे लगल। दुकनदार के एकरा भनक तक नमिले। सरोकारी जाल बढ़े लगल। कैकन लोग मिलित गेलन जसे फायदा लेवे लगल। अइसने में एगो भल विचारी से दोस्तियारो निअन भेल इ। उनका से एक दिन अपन मन के बात कहलक कि "हम चाहंऽही कि अप्पन एगो दोकान खोली। सुनते दोस्त कहृथी कि हमर एगो दोकान खाली हे ,खोल सकऽ ह। बात बन गेल ,दुकान के रंग रोगन सजावट में हफ्ता पंदरहिअन लगल इ तब जाके धूम धाम से पूजा पाठ करके मुहूर्त भेल इ। ओकर दोकान के जोड़ के सजल दोकान उ महल्ला में कोई के न। टाल में पोठा जेवर के एकेगो दोकान से कमे दिन में अइसन जमल कि आस पास के दोसर महल्ला से गहकी टूट पड़लन।
दोकान तो अइसन लछनगर निकलल इ कि बेचारा कुमारे हल से बिहाह ला अगुओ आवे लगलथी। न नुकर करित बिआहो होगेल इ। देखे सुने में देखनगर गोरना ह इए हल। दहेज तो बेसी न मिलल इ बाकि कनेया जोडी में ठीक मिलल इ। दोकान तो चलिए चलल इ प इसा कमाए के लूर बुध भी बढ़िआए लगल इ। कातो धन आवॄ हे त धरम इमान के नीयतो में खोट आवे लग जाहे। अब ओकर जूआ खेले के मन मिजाज भेल इ। इखेल में गते गते अइसन पिल गेल कि जूआ खेले 0दूर दूर जाए लगल।
एकरो से मन न भरल इ तचिट फंड आउ लाटरी के खेल सुरू खयलक। नतीजा दुकनदारी मे बट्टा होए लगल इ,आउ अब एकरा बनावल जेवर में सिकायतो होवे,कातो सोना के समान पंदरहिए पेन्हे मे किआए लगल इ कुछ के तो नया बहरि के दू लाख के जेवर करिआ हो गेल इ। लोग जब ओकर माथा पर चढे लगलन त तरह तरह के झूठ मूठ बात बना के टरकावे के कोसिस करे। नीयत में अइसन खोट इ घुस गेल इ कि मकान आलिको से दगावाजी करे मे नोकरा जरको संकोच न भेल इ।
जेकर जेकर समिन खराब भेल इ ,चाहे बेआना लेके समान नदेलक उ सब आके दोकान पर हल्ला गोदाल करत से अलग। ई सब देख के मकान मालिक ओकान खाली करे ला कह देलन
कुछ दिन ला मोहलत तो माँगलक ,आखिर में खाली करे पड़ल इ।
दोकान खाली करते ओकर पतं केदौरा अइसन चलल इ कि अब कंहूँ ठौर मिले के नाम न। करजा उधरिया जेकर प इसा धारले है उ लोग सेलुकाए के फेरा। मगेकि धन कमाय के लोभ में गत से दुरगत हो गेलइ।
रामकृष्ण 
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