मैं चन्दन ही हूँ
हाँ ! मैं चन्दन ही था, मुझे काटा गया,
घिसा पत्थर पर, माथे पे लगाया गया।
चाहता रहा खुशबु बाँटना, जमाने में,
मुझे तराश कर, बुतखाने में सजाया गया।
कुदरत की मेहरबानी, मुझे शीतलता मिली,
सुरक्षा में विषधरों को, मुझसे लिपटाया गया।
मगर नहीं चाहा किसी ने वुजूद मेरा बचाना,
वृक्षों को मेरे काटा गया, उजाड़ा गया।
चाहत रही, रहूँ अर्पित सदा प्रभु के चरणों में,
क्यूँ किसी नेता के शव में, मुझको जलाया गया?
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