जाने कितने ठग लुटेरे, भेष बदलकर घूमते,
जाने कितने आतंकी, भेष बदलकर घूमते?
कोई साधू रूप धरे, कोई जननायक बनता,
जाने कितने शिक्षक का, भेष बदलकर घूमते?
कितने मन्दिर मस्जिद बैठे, कितने जाकर चर्च छिपे,
कितने फादर और नन बने, कितने चोला बदल छिपे?
कोई चादर हरी ओढकर, कोई भगवा सफेद पहनकर,
कितने धर्म गुरू हो गये हैं, कितने धर्म को बदल छिपे?
नयी नयी मज़ारें बनती, उन पर कुछ फतवाधारी,
नित नये आश्रम खुलते, वहाँ बैठते भगवाधारी।
गली गाँव में चर्च बन रही, खेल धर्मांतरण का होता,
सफ़ेद वस्त्र काला मन लेकर, वहाँ बैठे इच्छाधारी।
अमन चैन की बात करें सब, मोह माया का खेल बताते,
अध्यात्म से मुक्ति की राह, सब उपदेशों में सार बताते।
लोभ मोह अहंकार से दूर रहो- देते सबको यह उपदेश,
लिप्त सभी खुद धन दौलत में, अहंकार से मुक्त बताते।
कुछ का लक्ष्य देखा केवल, झूठ फरेब और बेईमानी,
कुछ का लक्ष्य देखा केवल, धर्म की पहचान बढ़ानी।
मिलें बहत्तर हूरें या फिर, जर जोरू सामान का लोभ,
कुछ का लक्ष्य देखा केवल, ताकत से सत्ता पानी।
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