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रक्षाबंधन

रक्षाबंधन

           (भारतीय संस्कृति का संस्कार सूत्र)

रक्षा बंधन आया खुशियां अपार लाया,मन बहनों का फूला न समाया

अनेकों मिठाईयां राखी रोली अक्षत रख कर,थाल खूब सजाया 

मानो धरती ने अंबर सूरज चंदा को, इंद्रधनुषी रक्षासूत्र पहनाया

खुशी से सबने फुलझड़ी पटाखे खूब चलाए, झमाझम बादल ने जल वरसाया 

लक्ष्मी ने बलि को रक्षा सूत्र बाॅ॑ध,श्री विष्णु मुक्त कराये

शची ने कच्चा धागा बाॅ॑ध देवेन्द्र को, दैत्यों से देव जिताये

भारत की सनातन संस्कृति ने,कच्चे धागे अभिमंत्रित कर अटूट बनाये

भाई-बहन, पति-पत्नी, गुरु-शिष्य,जीव-अजीव की रक्षा हित रक्षा सूत्र बनाये

कालांतर में रक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट बंधन का पावन पर्व कहलाया

सारे जग को हमने ही, रिश्तों के स्नेह युक्त बंधन को अनमोल बतलाया

भाई-बहन एक माता-पिता के ही, दो अभिन्न शरीर हैं

दोनों में इसी लिए प्यार पवित्र,अभिनव अलौकिक अधीर हैं

एक दूजे रक्षाबंधन के बंधन में बॅ॑ध कर,हो जाते अमीर हैं

बंधन धागे के अटूट हैं,वही उनकी पावनता के जमीर हैं

जग में मत पथ भिन्न हैं,पर रिश्ते भाई बहन के एक हैं

विपदा, झंझावात,सुख- दुःख में, दोनों की शक्ति एक हैं

पश्चिम का कलुष प्रवाह,हमारी संस्कृति के सूर्य को ग्रस रहा

भारत में भी भाई -बहन का प्यार, स्वार्थ का बन ग्रास रहा

सत्य धर्म जब आहत होता, रिश्तों में हो जाता विभेद शुरू

हृदय अंतर्मन के नाते में, मस्तिष्क करने लगता भेद शुरू

कुमकुम,अक्षत, रोली, चंदन,धागा स्नेह का निर्मल करता पावन अंतर्मन

उपहारों का कोई मोल न होता, अनमोल सदा ही होता प्यार का बंधन

       जय सनातन संस्कृति, जय भारत

              चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
      (ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक)
               अहमदाबाद, गुजरात
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