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कविता की हूंकार

कविता की हूंकार

मैं कविता की हूंकारो से गगन उठाया करता हूं
सोया सिंह वन का राजा शेर जगाया करता हूं

शौर्य पराक्रम वीरों में रण गीत सुनाया करता हूं
मातृभूमि वंदन कर कविता नित गाया करता हूं

ओज भरी हुंकार कहूं या जलती हुई मशाल।
देशभक्त मतवाला कह दो लेखक बेमिसाल।

लेखनी दीपक ले अंधकार मिटाया करता हूं।
राष्ट्रधारा में रणवीरों के गीत गाया करता हूं।

तीर और तलवार लिए रणभूमि के शब्द चुने।
राणा प्रताप वीर शिवाजी पराक्रमी स्वर बुने।

भारत मां की जयकारों से गगन गुंजाया करता हूं।
खनखनाती शमशीरो की झंकार सुनाया करता हूं।

बलिदानी पावन पथ का मैं राही बढ़ता जाता हूं।
शीश चढ़ाये मातृभूमि सपूतों को शीश नवाता हूं।

शौर्य पराक्रम ओज भरी वीरों की ललकारो को।
महासमर में कूद पड़े उन रणवीरों सरदारों को।

देशभक्ति की धारा में उन देशभक्त दीवानों को।
वंदन करती लेखनी सब मातृभूमि मतवालों को।

मेरे अल्फाजों में बहती अमर सपूतों की गाथा।
शूरवीर योद्धाओं की शौर्य पराक्रम यशगाथा।

दुर्गम बर्फीली घाटी में अटल खड़े सेनानी जो।
आग उगलते शोलों में रक्तरंजित हल्दीघाटी को।

शत शत वंदन वंदे मातरम मां भारती का वंदन है।
गौरवशाली देश हमारा कण कण पावन चंदन है।

रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान

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