कान्हा
बंसी बजाते हैं
गायों को चराते है
गोपियों संग रास लीला रचाते हैं
वाह मुरलीवाले ! माखन खूब चुरा कर खाते हैं
मोह _माया का जाल बिछाते हैं
आपस में सबको लरवाते हैं
फिर मित्रता का पाठ पढ़ाते हैं
वाह मुरलीवाले ! माखन खूब चुरा कर खाते हैं
समस्याएं दे जाते हैं
समाधान भी बताते हैं
अहंकार तोड़ कर सबको अपनी शरण में लाते हैं
वाह मुरलीवाले ! माखन खूब चुरा कर खाते हैं
तुम्हारी प्रशंसा में और क्या लिखूं
शब्द कम पर जाते हैं
शब्द कोष के सारे शब्द तुम्हे ही दर्शाते हैं
सबकी डूबी नैया को पार यही लगाते हैं
वाह मुरलीवाले ! माखन खूब चुरा कर खाते हैं।
ऋचा श्रावणीहमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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