का बेटा (मगही कविता)
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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का बेटा।
पैर में चप्पल ना-
कपार पर फेटा।।
का बेटा।।
उल्टा सीधा लिख के,
चमकवले हे खुब नाम,
जे भी देख s पढ s हे-
कहहे अरे राम! राम,
काम के ना काज के-
बाकि खाना भरपेटा।।
का बेटा।
कुल खानदान के ई-
नमओं हंसयले हे,
माय-बाप के इज्ज्त-
मट्टी में मिलवले हे,
सगरो से लात-बात-
लग s हे चमेटा।
का बेटा।।
अपना के तेज जाने-
बाकि के उजबक,
आज के जमाना में-
के रहल हे बुडबक,
अब हवा में बात करे-
खुब फार के नरेटा।।
का बेटा।।
शुरू होयला पर उ-
का कहीं रूक हे,
मुंह उठाके अपन-
चांदो पर थूक हे,
सबके पेरले हे-
मार के लपेटा।।
का बेटा।।
गांव-घर तबाह रहल-
ऐकरे कोरहाग से,
मेहरारु न खुश रहल-
बकलोल सुहाग से,
रख देलक बना के-
सबके ई नेटा।।
का बेटा।।
कबहियो ना चैन एकरा-
रहत सब घडी वाई में,
बनाव न रहल कभी-
माई बहिन-भाई में,
सबसे बिगाड़ कयले-
जहां जउन भेटा।।
का बेटा।।
बनल चाहे सबसे-
बस बडका चहेता।।
का बेटा।।
का बेटा!का बेटा!!
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