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विशुद्ध चक्र का भेदन कर दुःखों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति हेतु स्कन्दमाता पूजन-अशोक “प्रवृद्ध”

विशुद्ध चक्र का भेदन कर दुःखों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति हेतु स्कन्दमाता पूजन-अशोक “प्रवृद्ध”

सम्पूर्ण जगत की भलाई व देवताओं के कल्याण हेतु भगवती माता दुर्गा नवरात्रि में नवरूपों में प्रकट हुई। जिसमें स्कन्दमाता स्वरूप की उत्पत्ति नवरात्रि के ठीक पांचवे दिन होती है। भारतीय पुरातन ग्रन्थों में देवी -देवताओं को न केवल माता-पिता की संज्ञा प्राप्त है, बल्कि उन्हें भक्त वत्सल भी कहा गया है। अर्थात देवता संसार के प्राणियों के लालन- पालन हेतु उसी प्रकार सक्रिय रहते हैं, जैसे कोई माता- पिता अपनी संतान के प्रति सदैव सक्रिय रहते हैं। इसी प्रकार दुर्गा का स्कन्दमाता स्वरूप भक्तों पर वात्सल्य को बरसाने हेतु सदैव तत्पर रहती हैं और उसके समस्त दुःखों को भगाती हैं। भक्ति से इनके प्रति समर्पित होने वाले व्यक्ति को ये तत्काल फल को देने वाली होती हैं। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुए सनत्कुमार का नाम स्कन्द है , जिसे कार्तिकेय के नाम से पुराणों में संज्ञायित किया गया है। कुमार कार्तिकेय को पुरातन ग्रन्थों में सनत- कुमार, स्कन्द कुमार के नाम से भी संज्ञायित किया गया है। देव सेना के सेनापति स्कन्द की माता होने से भगवती की पांचवीं स्वरूप स्कन्दमाता कहलाती है। स्कन्द अर्थात भगवान कार्तिकेय को दक्षिण भारत में भगवान मुरुगन भी कहा जाता है। भगवान मुरुगन की महिमा पुराणों में गाई गई है और उन्हें कुमार और शक्तिधर कहा जाता है। उनके वाहन मोर होने के कारण उन्हें मयूरवाहना भी कहा जाता है। भगवान मुरुगन अर्थात कार्तिकेय भगवान गणेश के भाई के रूप में भी जाने जाते हैं।
भगवती की पांचवीं स्वरूप देवी स्कंदमाता शेर की सवारी करती हैं। इनका वाहन शेर अर्थात सिंह पराक्रम वीरता का प्रतीक है। भगवान मुरुगन अर्थात कार्तिकेय माता की गोद में बैठें हैं। देवी स्कंदमाता को चार हाथों से चित्रित किया गया है। माता के दो हाथों में कमल का फूल है। माता के दाहिने हाथ में बाल मुरुगन बैठें हैं, और दूसरा दाया हाथ अभय मुद्रा में रहता है। माता कमल के फूल पर भी बैठती हैं। इसलिए माता के इस रूप को देवी पद्मासना के नाम से जाना जाता है। यह पद्म, पुष्प, वरमुद्रा से युक्त हैं । अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली मां स्कन्दमाता को माहेश्वरी व गौरी के नाम से भी जाना जाता है। महादेव शिव की वामिनी अर्थात पत्नी होने के कारण इन्हें माहेश्वरी भी कहा जाता है ।
पौराणिक मान्यतानुसार श्री भगवती दुर्गा के पंचम स्वरूप अर्थात विग्रह के रूप में प्रसिद्ध स्कन्दमाता की पूजा अर्चना नवरात्रि के पांचवे दिन में होती है। भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करने वाली स्कन्द माता के इस स्वरूप की अर्चना से दाम्पत्य जीवन के आंगन में वात्सल्य की प्राप्ति होती है, अर्थात संतान की कामना को पूर्ण करने वाली होती हैं। व्यक्ति की बुद्धि निर्मल व चित्त प्रसन्न होता है। घर परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने की शक्ति प्राप्त होती है। यही कारण है कि भक्तों के द्वारा बड़े विश्वास के साथ स्थापित देवी-देवताओं की पूजा करते हुए स्कन्दमाता की पूजा शुद्ध जल, तीर्थ के जल, गंधाक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य सहित सम्पूर्ण पूजन की सामाग्री एकत्रित करके नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्धता पूर्वक करने की परिपाटी है ।
भक्तों के कल्याण हेतु अति तेजस्वी रूप में दिखाई देने वाली स्कन्दमाता का दर्शन अति कल्याण प्रद है, जो धन, धान्य व संतान को देने वाला है। माता के चरित्र व कथानक का बड़ा ही सुन्दर वर्णन दुर्गासप्तशती में अंकित करते हुए स्कन्दमाता को सभी प्राणियों की पीड़ा को हरने वाली, सब में व्याप्त रहने वाली कहा गया है। इनकी कृपा से सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्ति होती है। माता ही संसार को उत्पन्न करने वाली तथा उन पर वात्सल्य वरसाने वाली है। कठिन परिस्थितियों में भी यह संसार का कल्याण करना नही भूलती है। सदा अभय प्रदान करने वाली हैं। स्कन्द माता जिन पर प्रसन्न रहती है, वे ही देश मे सम्मानित होते हैं, उन्हीं को धन, यश और बैभव की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं। देवी की कृपा से ही पुण्यात्मा पुरूष प्रतिदिन अत्यन्त श्रद्धापूर्वक सदा सब प्रकार के धर्मानुकूल कर्म करता हुआ स्वर्ग लोक को प्राप्त करता है। इसलिए इन्हें तीनों लोकों में निश्यच ही मनोवांछित फल देने वाली कहा गया है। माँ दुर्गे का स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं, और स्वस्थ पुरूषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती है। इसीलिए भक्तजन प्रार्थना करते हुए कहते हैं- दुःख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि। आपके सिवा दूसरी कौन हैं, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द रहता हो।
देवी सप्तशती व अन्य शाक्त ग्रन्थों में स्कन्द माता के संदर्भं में विविध मन्त्र व स्रोत अंकित हैं, जो अति कल्याण प्रद व भक्तों के दुखों को दूर करने वाले तथा मनवांछित फलों को देने वाले माने जाते हैं। मान्यता है कि स्मरण करने से व्यक्ति को वांछित फल की प्राप्ति होती है-
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै।

ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः । ।

सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया ।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी स्कन्धमाता की उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की प्राप्ति करता है। यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है। एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके माता की स्तुति करने से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से माँ दुर्गा की उपासना करने वाले भक्तों के लिए यह दिन विशुद्ध चक्र की साधना का होता है। इस चक्र का भेदन करने के लिए भक्त को पहले मां की विधि सहित पूजा के लिए कुश अथवा कम्बल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए जैसे पिछले चार दिनों में किया गया है। फिर देवी की प्रार्थना मन्त्र- “सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया. शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी” से करनी चाहिए। इसके बाद पंचोपचार विधि से देवी स्कन्दमाता की पूजा करना चाहिए। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं, और मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है। इस चक्र में अवस्थित साधक के मन में समस्त बाह्य क्रियाओं और चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है, और उसका ध्यान चैतन्य स्वरूप की ओर होता है। समस्त लौकिक, सांसारिक, मायाविक बन्धनों को त्याग कर वह पद्मासन माँ स्कन्दमाता के रूप में पूर्णतः समाहित होता है। सिंह के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से सुशोभित दो हाथो वाली यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है। नवरात्रि की पंचमी तिथि को कहीं -कहीं भक्त जन उत्तम फलदायक उद्यंग ललिता का व्रत भी रखते हैं। मान्यता है कि स्कन्दमाता की भक्ति- भाव सहित पूजन करने वाले को देवी की कृपा प्राप्त होती है, तथा देवी की कृपा से भक्त की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि का वास होता है। संतान की कामना करनेवाले भक्तगण इनकी विशेष रूप से पूजा करते हैं। वे इस दिन लाल वस्त्र में लाल फूल, सुहाग की वस्तुएं- सिंदूर, लाल चूड़ी, महावर, लाल बिंदी, फल, चावल आदि बांधकर मां की गोद भरनी करते हैं। वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए, और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए। नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाता है।
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