Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

अनाहत चक्र जागरण हेतु कुष्मांडा अराधना-अशोक “प्रवृद्ध”

अनाहत चक्र जागरण हेतु कुष्मांडा अराधना-अशोक “प्रवृद्ध”

शक्ति की अधिष्ठात्री देवी भगवती माता जगदंबा की उपासना का पर्व है नवरात्र। ऋतु परिवर्तन का द्योतक नवरात्रि पर्व का विशिष्ट आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व है। इसलिए नवरात्र के पहले दिन ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार पूजा करने व व्रत रखने का संकल्प लिया जाता है। यह व्रत नौ, सात, पांच या तीन दिन का किया जा सकता है। नवरात्र के दिनों को तीन भागों में बांटा गया है- पहले तीन दिनों में तमस पर विजय की आराधना, अगले तीन दिन रजस और अंतिम तीन दिन सत्व को जीतने की अर्चना के माने गए हैं । नवरात्रि में चौथे दिन ब्रह्मांड को उत्पन्न करनेवाली माता कुष्मांडा को देवी के रूप में पूजे जाने की परिपाटी है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है। कथा के अनुसार सृष्टि के पूर्व जब सृष्टि नहीं थी, चतुर्दिक अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी के द्वारा अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना किये जाने के कारण इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति के नाम से अभिहित किया गया है। कुष्मांडा के आठ भुजाएं होने के कारण ये अष्टभुजा भी कहलाई। इनके सात भुजाओं अर्थात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा विराजमान हैं, तथा आठवें हाथ में अष्टसिद्धियों और नौनिधियों को देने वाली बिजरंके अर्थात कमल फूल के बीज का जप माला है। देवी कुष्मांडा व उनकी आठ भुजाएं कर्मयोगी जीवन अपनाकर तेज अर्जित करने की प्रेरणा देती हैं, उनकी मधुर मुस्कान हमारी जीवनी शक्ति का संवर्धन करते हुए हमें हंसते हुए कठिन से कठिन मार्ग पर चलकर सफलता पाने को प्रेरित करती है। कुष्मांडा देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि सर्वाधिक प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं। इसलिए इस देवी को कुष्मांडा कहा गया। इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। ऐसी मान्यता है कि सूर्यलोक में रहने की शक्ति, क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। ऐसी मान्यता है कि देवी कुष्मांडा को हरा रंग अत्यधिक पसंद है। नवरात्रि मानसून के बाद नवरात्रि के आगमन काल में चतुर्दिक चारों ओर प्रकृति हरे रंग की खुबसुरत चुनर ओढ़े विहंसती प्रतीत होती है। इस खूबसूरती को देवी कुष्मांडा बहुत पसंद करती हैं। मार्कंडेय पुराण के अंतर्गत देवी महात्म्य में दुर्गा ने स्वयं को शाकंभरी अर्थात साग-सब्जियों से विश्व का पालन करने वाली बताया है। देवी का एक नाम कूष्मांडा भी है। इससे स्पष्ट है कि माँ दुर्गा का संबंध वनस्पतियों से भी प्रतीकात्मक रूप से जुड़ा हुआ है। दुर्गा पूजा का मूल महत्व मातृशक्ति की पूजा है। शक्ति में सृजन की जो क्षमता होती है, उसी की पूजा की जाती है। शक्ति का सत्य स्वरूप, सही रूप सृजन धर्मा ही है। प्रकृति अपने नारी रूप में जगत को धारण करती है, उसका पालन करती है और शक्ति रूप में संतुलन बिगड़ने पर विध्वंसकारी शक्तियों का विनाश कर सार्थक शक्ति का संचार करती है। नवरात्र में किए गए प्रयास, शुभ संकल्प पराम्बा की कृपा से सफल होते हैं।
पौराणिक मान्यतानुसार स्थिर और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन कुष्मांडा की पूजा-आराधना करने से भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा आयु, यश, बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है। अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देने वाली देवी की सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है। नवरात्रि पर्व के चौथे दिन भक्त का मन अनाहत (अनाहता) चक्र में प्रवेश करता है। मां कुष्मांडा की पूजा करने से भक्त को अपने सभी दुखों और तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है। उसे दीर्घायु, प्रसिद्धि, शक्ति, बल और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है। आधियों-व्याधियों से मुक्त और सुख-समृद्धि व उन्नति प्रदान करने वाली देवी कुष्मांडा के विधि-विधान से पूजा करने वाले भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। यही कारण है कि इस देवी की उपासना में भक्तगण सदैव ही तत्पर रहते हैं। इस दिन बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला का पूजन कर उन्हें भोजन में दही, हलवा खिला फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट कर विदा करना चाहिए। इससे माताजी प्रसन्न होती हैं। और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के चौथे दिन मां की पूजा हरे रंग के कपड़े पहनकर करने का विधान है। मां के लिए ऊं कुष्मांडा देव्यै नम: मंत्र का जाप किया जाना चाहिए। वहीं सिद्ध कुंजिका स्रोत का पाठ करना नवरात्रि में लाभदायक माना गया है। मां को प्रिय भोग मालपुए का भोग लगाना चाहिए। मालपुए का भोग अर्पित करने से मां कूष्माण्डा बहुत प्रसन्न होती हैं। इसके बाद प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान कर स्वयं ग्रहण करना चाहिए।
भगवती के सभी नौ स्वरूपों का विस्तार से वर्णन करने वाली मार्कण्डेय पुराण के देवी सप्तशती के कवच में कुष्मांडा स्वरूप का महात्म्य वर्णन करते हुए कहा गया है -
कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार: ।
स अण्डेमांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा ।।
अर्थात- वह देवी जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है वह कूष्माण्डा हैं। देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं। जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी उस समय अंधकार का साम्राज्य था। सैकड़ों सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त मुखमंडल वाली देवी कुष्मांडा उस समय प्रकट हुई। उनके मुख पर बिखरी मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गई। जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ। सूर्यमण्डल के मध्य में निवास करने वाली देवी कुष्मांडा सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं। इनकी पूजा से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित भक्तों को दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को अनहत चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद ले साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार प्रयास करने वाले भक्तों को भगवती कूष्माण्डा सफलता प्रदान करती हैं। जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है। दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार देवी ब्रह्मचारिणी और चन्द्रघंटा की पूजा की जाती है । इस दिन भी सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा कर फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करना चाहिए, जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं। इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करना आरम्भ करते हुए पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करना चाहिए-
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे । ।
देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए। श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए। नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की उपासना करने वाले भक्तों को सर्वप्रथम मां का ध्यान मंत्र पढ़कर उनका आहवान कर कुष्मांडा माता का निम्नलिखित मंत्र से जाप करना चाहिए-

स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता।

करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।।.

माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अतः अपनी लौकिक, पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए। चतुर्थी के दिन माँ कूष्मांडा की आराधना- उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ