वैदिक ऋषि अगस्त और लोपमुद्रा
सत्येन्द्र कुमार पाठक
वेदों , पुरणों एवं स्मृति ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा जी के पौत्र पुलस्त्य ऋषि के पुत्र वैदिक ऋषि अगस्त का जन्म श्रावण शुक्ल पंचमी वैवस्वत मन्वंतर काल सतयुग के काशी में हुआ था । ऋषि अगस्त को अगस्त्य , अगतियार , ऑगस्टा, अगस्टा ,अगस्ता कहा गस्य है । वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई ऋषि अगस्त का जन्म श्रावण शुक्ल पंचमी ३००० ई.पू.. को काशी में हुआ था। अगस्त ऋषि का जन्म स्थान काशी स्थित अगस्त्यकुंड के प्रसिद्ध है। ऋषि अगस्त की पत्नी विदर्भ देश की राजकुमारी वेदज्ञ लोपमुद्रा थी। देवताओं के अनुरोध पर अगस्त ने काशी छोड़कर दक्षिण की यात्रा किये थे। वैज्ञानिक ऋषियों के महर्षि अगस्त्य वैदिक ऋषि थे। महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। महर्षि अगस्त्य मंत्रदृष्टा है । उन्होंने अपने तपस्या काल में मंत्रों की शक्ति को देखा था। ऋग्वेद के अनेक मंत्र इनके द्वारा दृष्ट हैं। महर्षि अगस्त्य ने ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तों को बताया था। अगस्त के पुत्र दृढ़च्युत तथा दृढ़च्युत के पुत्र इध्मवाह नवम मंडल के 25वें तथा 26वें सूक्त के द्रष्टा ऋषि हैं। अगस्त्य को पुलस्त्य ऋषि का पुत्र अगस्त व भाई का विश्रवा था । महर्षि अगस्त्य ने विदर्भ-नरेश की पुत्री लोपामुद्रा से विवाह किया । दक्षिण भारत में लोपमुद्रा को पांड्य राजा मलयध्वज की पुत्री कहा जाता है। लोपमुद्रा को कृष्णेक्षणा जाता है। लोपमुद्रा का पुत्र इध्मवाहन था। अगस्त्य ने अपनी मंत्र शक्ति से समुद्र का समूचा जल पी लिया , विंध्याचल पर्वत को झुका दिया और मणिमती नगरी के इल्वल तथा वातापी दुष्ट दैत्यों की शक्ति को नष्ट कर दिया था। अगस्त्य ऋषि के काल में राजा श्रुतर्वा, बृहदस्थ और त्रसदस्यु थे। ऋषि अगस्त्य के साथ मिलकर दैत्यराज इल्वल को झुकाकर उससे अपने राज्य के लिए धन-संपत्ति मांग ली थी। 'सत्रे ह जाताविषिता नमोभि: कुंभे रेत: सिषिचतु: समानम्। ततो ह मान उदियाय मध्यात् ततो ज्ञातमृषिमाहुर्वसिष्ठम्॥ ऋचा के भाष्य में आचार्य सायण ने उल्लेख किया है- 'ततो वासतीवरात् कुंभात् मध्यात् अगस्त्यो शमीप्रमाण उदियाप प्रादुर्बभूव। तत एव कुंभाद्वसिष्ठमप्यृषिं जातमाहु:॥ दक्षिण भारत में अगस्त्य तमिल भाषा के आद्य वैय्याकरण ऋषि अगस्त्य के परुन अवतार हैं। ग्रंथकार परुन का व्याकरण 'अगस्त्य व्याकरण' है। सनातन धर्म संस्कृति के प्रचार-प्रसार में ऋषि अगस्त के विशिष्ट योगदान के लिए जावा, सुमात्रा आदि में अगस्त की उपासना की जाती है। महर्षि अगस्त्य वेदों में वर्णित मंत्र-द्रष्टा मुनि हैं। ऋषि अगस्त ने आवश्यकता पड़ने पर ऋषियों को उदरस्थ कर लिया एवं समुद्र भी पी गये थे। अकोले के अगस्ती आश्रम में ऋषि अगस्त की मूर्ति स्थापित है ।
महर्षि अगस्त्य आश्रम उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु में हैं। उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यऋषि आश्रम है। महर्षि ने तप किया था तथा आतापी-वातापी असुरों का वध किया था। मुनि के आश्रम के स्थान पर वर्तमान में एक मन्दिर है। मन्दिर में मठाधीश का निवास बेंजी गाँव हैं। तमिलनाडु के तिरुपति ,महाराष्ट्र के अहमदनगर का अकोले के समीप प्रवरा नदी के किनारे अगस्त आश्रम है।
महाराष्ट्र के नागपुर जिले में महर्षि ने रामायण काल में निवास किया था। श्रीराम के गुरु महर्षि वशिष्ठ तथा अगस्त आश्रम समीप था। गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से श्रीराम ने ऋषियों को सताने वाले असुरों का वध करने का प्रण लिया था। महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को इस कार्य हेतु कभी समाप्त न होने वाले तीरों वाला तरकश प्रदान किया था। महर्षि अगस्त का शिष्य विंध्याचल पर्वत का घमण्ड बहुत बढ़ गया था तथा उसने अपनी ऊँचाई बहुत बढ़ा दी जिस कारण सूर्य की रोशनी पृथ्वी पर पहुँचनी बन्द हो गई तथा प्राणियों में हाहाकार मच गया। देवताओं ने महर्षि से अपने शिष्य को समझाने की प्रार्थना की। महर्षि ने विंध्याचल पर्वत से कहा कि उन्हें तप करने हेतु दक्षिण में जाना है । अतः उन्हें मार्ग दे। विंध्याचल महर्षि के चरणों में झुक गया, महर्षि ने उसे कहा कि वह उनके वापस आने तक झुका रहे तथा पर्वत को लाँघकर दक्षिण को चले गये। उसके पश्चात आश्रम बनाकर तप किया तथा वहीं रहने लगे। केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की दक्षिणी शैली वर्मक्कलै के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु ऋषि अगस्त हैं। वर्मक्कलै निःशस्त्र युद्ध कला शैली है। भगवान शिव ने अपने पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) को युद्ध कला सिखायी तथा मुरुगन ने युद्ध कला अगस्त्य को सिखायी। महर्षि अगस्त्य ने कला अन्य सिद्ध को सिखायी थी । महर्षि अगस्त्य दक्षिणी चिकित्सा पद्धति 'सिद्ध वैद्यम्' के जनक हैं। ऋषि अगस्त ने सौरधर्म का आदित्य हृदय , सूर्य उपासना , अगस्त वृक्ष की उत्पत्ति , वल्व प्रकाश , ज्ञान प्रकाश और अथर्ववेद के रचयिता थे । त्रेतायुग में ऋषि अगस्त द्वारा भगवान राम को आदित्यहृदय एवं सूर्य उपासना का मंत्र की शिक्षा दी गयी थी ।
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