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कृषि व पशुपालन को बढ़ावा

कृषि व पशुपालन को बढ़ावा

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
भारत कृषि व पशु पालक देश के रूप में विख्यात रहा है। कृषि अपने में अकेला क्षेत्र नहीं था। इसमें पशुपालन और कुटीर उद्योग पूरक के रूप में शामिल थे।तीनों में कभी कोई भी पक्ष कमजोर हुआ तो उसकी भरपाई के विकल्प रहते थे। इनसे आय स्वरोजगार और सुपोषण स्वाभाविक रूप से उपलब्ध रहता था। यही कारण था कि ब्रिटिश काल की शुरुआत तक भारत के सभी गाँव आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और स्वावलंबी थे। भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। अंग्रेजों ने भारत के आर्थिक शोषण की कार्ययोजना बनाई थी। इसके अंतर्गत कुटीर उद्योगों को नष्ट किया गया। जिससे ब्रिटेन के उत्पाद को भारत में बेचना सम्भव हो सके। कृषि पर लगान में वृद्धि होती रही। इससे किसानों की आय कम हुई। ब्रिटिश शासक अपनी सरकारी मशीनरी और सेना का पूरा खर्च भारतीय संसाधनों से पूरा करते थे। स्वतंत्रता के बाद कृषि पशुपालन और स्थानीय उद्योगों पर नए सिरे से ध्यान देने की आवश्यकता थी लेकिन इस क्षेत्र की उपेक्षा की गई। विकसित देशों ने अपनी विकास यात्रा के पहले चरण में गांवों पर फोकस किया था। शहरों के संसाधनों पर भी दबाब बढ़ा।संतुलित विकास का माहौल ही नहीं बनाया गया।

नरेन्द्र मोदी सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प लिया।इसके अंतर्गत अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने एक जिला एक उत्पाद योजना लागू की। इससे स्थानीय उद्योगों को नया जीवन मिल रहा है। इस योजना में कृषि उत्पाद भी शामिल है। इससे किसानों को लाभ मिल रहा है। गौ संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया। गौ संरक्षण केंद्र बनाय गए। गौ पालकों को प्रोत्साहन हेतु धनराशि दी जा रही है। डेयरी उद्योगों का विकास हो रहा है। एक जिला एक उत्पाद योजना अब पूरे देश में क्रियान्वित हो रही है। डेयरी सेक्टर की श्वेत क्रांति किसानों की स्थिति को बदलने में बड़ी भूमिका निभा रही है। पशुपालन करोड़ों किसानों की अतिरिक्त आय का स्रोत बन रहा है। भारत के डेयरी उत्पाद का वैश्विक बाजार में महत्व है। यह महिलाओं के आर्थिक विकास को बढ़ाने का जरिया है। पशधन बायोगैस,जैविक खेती और प्राकृतिक खेती का भी बड़ा आधार है। जो पशु दूध देने योग्य नहीं रह जाते,वह बोझ नहीं होते बल्कि वे भी हर दिन किसानों की आय बढ़ा सकते हैं। कुछ समय पहले नरेंद्र मोदी ने काशी में बनास डेयरी संकुल का शिलान्यास किया था। प्रयागराज में उन्होंने महिला स्वावलंबन अभियान शुरू किया था। इसी प्रकार विगत दिनों वह गुजरात में महिला स्वावलंबन व बनास डेयरी से संबंधित कार्यक्रमों में सहभागी हुए। नरेंद्र मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने ज्योतिग्राम योजना शुरू की थी। इससे बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित हुई थी। ड्रिप सिंचाई का प्रयोग बढ़ रहा है। इससे कृषि लागत में कमी आई है। किसानों की आय बढ़ी है। अब अगर कोई पशु बीमार होता है तो तीस मिनट में एंबुलेंस उनके पास पहुंच जाती है। मधुमक्खी पालन से भी आय में बढोत्तरी हो रही है।

भारत प्रति वर्ष साढ़े आठ लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के दूध का उत्पादन करता है। इस क्षेत्र में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है। भारत में प्रति वर्ष उत्पादित गेहूं और चावल का कारोबार भी इससे कम है। डेयरी क्षेत्र का सबसे बड़ा लाभ हमारे छोटे किसानों को है। बायो सीएनजी प्लांट से भी किसानों की आय बढ़ रही है। ऐसे अनेक प्लांट्स बनास डेयरी देशभर में लगाने जा रही है। ये कचरे से कंचन के सरकार के अभियान को मदद करने वाला है। सहकारी आंदोलन आत्मनिर्भर भारत अभियान को मजबूत बना रही है। भारत में प्राचीनकाल से कृषि व पशुपालन परस्पर पूरक रहे है। यह भारत की समृद्ध अर्थव्यवस्था के आधार थे। जैविक अथवा प्राकृतिक कृषि से लागत कम आती थी। इसके अनुरूप लाभ अधिक होता था। ऐसे कृषि उत्पाद स्वास्थ्य के लिए भी लाभ दायक थे। जमीन की उपजाऊ क्षमता भी बनी रहती थी। कुछ दशक पहले केमिकल खाद का प्रचलन शुरू हुआ। जमीन की उपजाऊ क्षमता कम होने लगी। कृषि की लागत बढ़ने लगी। पशुपालन की ओर भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। अब यह समस्याएं जन जीवन को प्रभावित करने लगी है। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इस ओर ध्यान दिया। इस क्षेत्र में बड़े बदलाव की आवश्यकता थी। कृषि क्षेत्र में परिवर्तन अपेक्षित थे लेकिन यह कार्य केवल सरकार के स्तर पर संभव नहीं था। किसानों का भी जागरूक होना आवश्यक था। नरेंद्र मोदी सरकार ने यूरिया की कालाबाजारी रोकी। नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन शुरू किया गया। सरकार ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया। इसी के साथ प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहित करने का अभियान भी शुरू किया गया। बड़ी संख्या में किसान अब प्राकृतिक कृषि के प्रति आकर्षित हो रहे है। मोदी सरकार किसानों की आय दो गुनी करने की दिशा में कार्य कर रही है। इसमें जैविक कृषि भी उपयोगी साबित हो रही है। विगत सात वर्षों के दौरान किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में अनेक कदम उठाए गए है। प्राकृतिक कृषि से देश के अस्सी प्रतिशत किसानों को सर्वाधिक लाभ होगा। इनमें दो हेक्टेयर से कम भूमि वाले छोटे किसान हैं। केमिकल फर्टिलाइजर से इन किसानों की कृषि लागत बहुत बढ़ जाती है।

प्राकृतिक खेती से इनकी आय बढ़ेगी। केमिकल के बिना भी बेहतर फसल प्राप्त की जा सकती है। पहले केमिकल नहीं होते थे, लेकिन फसल अच्छी होती थी। पशुधन, बायो गैस, जैविक खेती, प्राकृतिक खेती का आधार बन रहा है। सहकारिता क्षेत्र की बड़ी इकाई बनास और पूर्वांचल के किसानों की सहभागिता से वाराणसी सहित इस क्षेत्र के किसानों को लाभ मिल रहा है। इससे आस पास के गांवों में दुग्ध समितियां, कलेक्शन सेन्टर बनेंगे। दूध की गुणवत्ता प्रमाणिकता को लेकर उलझन रही है। प्रमाणिकता के लिए अलग। कामधेनु का लोगो भी जारी किया गया है। यह लोगो दूध व दुग्ध उत्पादों की गुणवत्ता व विश्वसनीयता की पहचान होगा। बायो गैस द्वारा बिजली बनाने के इस संयंत्र से ऊर्जा जरूरतें पूरी होंगी। गौतमबुद्धनगर में आईडीएफ वर्ल्ड डेयरी समिट का आयोजन किया गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया। देश-विदेश के डेढ़ हजार डेयरी उद्योग के विशेषज्ञ, किसान,नीति निर्माता इसमें हिस्सा ले रहे हैं। इन अतिथियों की मेजबानी का अवसर उत्तर प्रदेश को मिला। योगी आदित्यनाथ के दिशा निर्देश में सभी आयोजन बेजोड़ होते हैं। उद्घाटन से पहले सभी तैयारियों का जायजा लेने योगी आदित्यनाथ यहां पहुँचे थे। भारत में विश्वस्तरीय सम्मेलन करीब पांच दशक बाद हो रहा है। चार दिनों तक इस समिट में दूध पर महामंथन चलेगा। इस समिट में पचास देशों के मेहमान व प्रतिनिधि शिरकत कर रहे हैं। एक्स्पो सेंटर में कुल ग्यारह हॉल बनाये गए हैं जिसमें डेयरी उद्योग से जुड़े कई विश्वस्तरीय प्रदर्शनी भी लगाई गई हैं। अलग-अलग हॉल के नाम भी गायों की विभिन्न प्रजातियों के नाम पर रखे गए हैं। इनमें गीर,साहिवाल और मुर्रा आदि प्रमुख हैं। प्रधानमंत्री जिस हॉल में डेयरी उद्योग महाकुंभ को संबोधित किया उसका नाम गीर हॉल रखा गया है।
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