संवेदनहीन मानव
एक बेजुबां थी खुराक की तलाश में,
भटक रही थी दरबदर पेट भरने की आस में,
कुछ निष्ठुर ने ऐसा निर्दयी कृत्य किया,
विस्फोटक ही दे दिया उसे अनानास में ।
हकीकत से बेचारी वह तो अनजान थी,
गर्भ में पल रही उसकी नन्ही जान थी,
फल समझकर मौत को था खा लिया,
पल में काया उसकी पूरी लहूलुहान थी।
चुपचाप वह सब कुछ सहती रही,
दर्द में अपने चिल्लाती चीखती रही,
नहीं आई किसी को तनिक भी उस पर दया,
ताटिनी मे दो दिन तक पीड़ा से तडपती रही।
फिर भी उसने कहाँ पशुता का परिचय दिया,
फिर भी कहाँ उसने किसी मानव को कष्ट दिया,
चाहती तो मिटा सकती थी ऐसी मानव जात को,
रूदन में लेकिन अपने प्राणों को तज दिया।
इंसानियत को फिर से ऐसो ने शर्मसार है किया,
देश विदेश में सभी ने इनका बहिष्कार है किया,
ये दुष्ट हकदार है कड़ी से कड़ी सजा के,
सभी ने एक आवाज में इस बात पर सहकार किया।
*मौलिक एवं स्वरचित रचना सुमित मानधना 'गौरव'
सूरत, गुजरात।*हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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