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पर्यावरण बचाने का संदेश देता ओजोन दिवस

विश्व ओजोन दिवस (16 सितम्बर) पर विशेष

पर्यावरण बचाने का संदेश देता ओजोन दिवस

(मोहिता स्वामी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)

भौतिकवाद की दौड़ में हमने पर्यावरण को सांस लेने के लायक भी नहीं रखा है। मैदान तो दूर पहाड़ों पर भी कचरा भर गया हैं। धूल और धुआं बढ़ता ही जा रहा है। इन्हीं सब के चलते आकाश की एक सुरक्षा छतरी फट गयी है। उसके छिद्र लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यह छतरी ही ओजोन परत के नाम से जानी जाती है। दुनिया भर में इसके प्रति चिंता तो जतायी जा रही है लेकिन ठोस उपाय नहीं किये जा रहे हैं। विकसित देश अपनी गलती स्वीकार नहीं करना चाहते और गरीब देशों

पर पर्यावरण प्रदूषित करने का आरोप लगाते हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में विकसित देशों को इसका करारा जवाब दिया था अैर कहा कि कथित विकसित देश ही पर्यावरण को ज्यादा प्रदूषित कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने ओजोन परत के संरक्षण के लिए सभी देशों से ठोस उपाय करने को कहा है। यूएन में 19 सितंबर 1994 को 16 सितंबर को ओजोन दिवस घोषित किया गया था। इसके बाद 16 सितंबर 1995 को पहली बार विश्व स्तर पर ओजोन दिवस मनाया गया। इस बार भी पूरी दुनिया ओजोन दिवस मनाएगी लेकिन अब पृथ्वी और समुद्र के साथ आकाश भी जहरीले कचरे से भर गया है। इसे कैसे रोका जाए, इसके प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है।

ओजोन आक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो वायुमण्डल में बहुत कम मत्रा (0.02 फीसद) में पाई जाती हैं। यह तीखे गंध वाली अत्यन्त विषैली गैस है।

जमीन के सतह के उपर अर्थात निचले वायुमंडल में यह एक खतरनाक दूषक है, जबकि वायुमंडल की ऊपरी परत ओजोन परत के रूप में यह सूर्य के पराबैंगनी विकिरण से पृथ्वी पर जीवन को बचाती है, जहां इसका निर्माण ऑक्सीजन पर पराबैंगनी किरणों के प्रभावस्वरूप होता है। ओजोन ऑक्सीजन का एक अपररूप है। यह समुद्री वायु में उपस्थित होती है।ऑक्सीजन की एक मंद शुष्क धारा नीरव विद्युत विसर्जन से गुजारे जाने पर ओजोन में परिवर्तित होती है।

वैज्ञानिक वॉन मैरम ने सन 1785 में विद्युत विसर्जन यन्त्रों के पास एक विशेष प्रकार की गन्ध का अनुभव किया जिसका उल्लेख उन्होने अपने लेखों में भी किया। 1801 में क्रिक शैंक को भी ऑक्सीजन में विद्युत विसर्जन करते समय यही अनुभव हुआ। 1840 में शानबाइन नें इस गंध का कारण एक नयी गैस को बताया और उन्होने इसे ओजोन नाम दिया जो यूनानी शब्द ओजो यानि मैं सूंघता हूं पर आधारित था। सन 1865 में सोरेट ने यह सिद्ध किया कि यह गैस ऑक्सीजन का एक अपररूप है और इसका अणुसूत्र ओ थ्री है। हाल ही में गैर-सरकारी संस्था विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार देश की राजधानी दिल्ली के वातावरण में बीते सालभर में ओजोन के प्रदूषक कणों की मात्रा डेढ़ गुना तक बढ़ गई है। पिछले वर्ष 1 अप्रैल से 5 जून के बीच 17 दिन ऐसे थे जब हवा में ओजोन की मात्रा मानकों से अधिक थी, जबकि इस वर्ष 28 दिन ऐसे रहे जब ओजोन प्रदूषण की मात्रा निर्धारित मानक से काफी ज्यादा रही। पिछले साल 8 घंटे के औसत में ओजोन की मात्रा 106 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर थी, जबकि इस वर्ष यह 122 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रही।ओजोन गैस समतापमंडल में अत्यंत पतली एवं पारदर्शी परत के रूप में पाई जाती है। यह वायुमंडल में मौजूद समस्त ओजोन का कुल 90 प्रतिशत है, इसे अच्छा ओजोन माना जाता है।

ओजोन हानिकारक संदूषक के रूप में कार्य करती है और बहुत कम मात्रा में होने के बावजूद मानव के फेफड़ों, तंतुओं तथा पेड़-पौधों को नुकसान पहुँचा सकती है। हमारे वायुमंडल में ओजोन परत का बहुत महत्त्व है क्योंकि यह सूर्य से आने वाले अल्ट्रा-वॉयलेट रेडिएशन यानी पराबैंगनी विकिरण को सोख लेती है। इन किरणों का पृथ्वी तक पहुँचने का मतलब है अनेक तरह की खतरनाक और जानलेवा बीमारियों का जन्म लेना। इसके अलावा यह पेड़-पौधों और जीवों को भी भारी नुकसान पहुँचाती है। पराबैंगनी विकिरण मनुष्य, जीव जंतुओं और वनस्पतियों के लिये अत्यंत हानिकारक है। नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन जब तीखी धूप के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तो ओजोन प्रदूषक कणों का निर्माण होता है। वाहनों और फैक्टरियों से निकलने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड व अन्य गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओजोन प्रदूषक कणों का निर्माण करती है।

आज हमारी लपारवाहियों और बढ़ते औद्योगिकरण के साथ ही गाड़ियों और कारखानों से निकलने वाली खतरनाक गैसों के कारण ओजोन परत को भारी नुकसान हो रहा है और इसकी वजह से ओजोन प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। साथ ही इसका दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 8 घंटे के औसत में ओजोन प्रदूषक की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिये। ओजोन परत को पृथ्वी का सुरक्षा कवच कहा जाता है, लेकिन पृथ्वी पर लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के कारण इस कवच की मजबूती लगातार कम होती जा रही है। भूतल से लगभग 50 किलोमीटर की ऊँचाई पर वायुमंडल में ऑक्सीजन, हीलियम, ओजोन, और हाइड्रोजन गैसों की परतें होती हैं, जिनमें ओजोन परत पृथ्वी के लिये एक सुरक्षा कवच का काम करती है क्योंकि यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैगनी किरणों से पृथ्वी पर मानव जीवन की रक्षा करती है। मानव शरीर की कोशिकाओं में सूर्य से आने वाली इन पराबैगनी किरणों को सहने की शक्ति नहीं होती।कई अध्ययनों में यह पाया गया है कि वायुमंडल में सूर्य से आने वाली पैराबैंगनी किरणों का 99 प्रतिशत वहीं अवशोषित कर लेने वाली ओजोन की मात्रा धीरे-धीरे कम होती जा रही है।

ओजोन परत के क्षय की जानकारी सर्वप्रथम वर्ष 1960 में मिली थी। एक अनुमान के अनुसार, वायुमंडल में ओजोन की मात्रा प्रतिवर्ष 0.5 प्रतिशत की दर से कम हो रही है। वर्ष 1985 में वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया कि अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र हो गया है और यह लगातार बढ़ रहा है। इससे अंटार्कटिका के ऊपर वायुमंडल में ओजोन की मात्रा 20 से 30 प्रतिशत कम हो गई है। अंटार्कटिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों के ऊपर भी वायुमंडल में ओजोन परत में छिद्र देखे गए हैं।

ओजोन परत में होने वाले क्षरण का कारण मनुष्य खुद है, जिसके क्रियाकलापों से जीव-जगत की रक्षा करने वाली इस परत को नुकसान पहुँच रहा है। मानवीय क्रियाकलापों ने वायुमंडल में कुछ ऐसी गैसों की मात्रा को बढ़ा दिया है जो पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करने वाली ओजोन परत को नष्ट कर रही हैं। ओजोन परत में हो रहे क्षरण के लिये क्लोरो फ्लोरो

कार्बन गैस प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इसके अलावा हैलोजन, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड

आदि रासायनिक पदार्थ भी ओजोन को नष्ट करने में योगदान दे रहे हैं। क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस का उपयोग हम मुख्यतः अपनी दैनिक सुख सुविधाओं के उपकरणों में करते हैं, जिनमें एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, फोम, रंग, प्लास्टिक इत्यादि शामिल हैं।
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