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राम वन गमन

राम वन गमन 

चली गई कैकई कोप भवन में बात मंथरा मानी 
वचन पूरे करो राजन तब बोली कैकयी महारानी 
भरत राजतिलक हो वन जाए राम लक्ष्मण भाई 
वन चले राम रघुराई

केकई कान की कच्ची ना होती बात ये सच्ची ना होती
अभिमानी रावण कहां मरता माता सीता हरण ना होती
वनवासी वेश रामजी गंगा तीर चले संग लखन भाई 
वन चले राम रघुराई

नैया पार लगाए नाविक केवट गंगा पार हमें जाना 
पहले चरण जल से धो लूं नौका में भगवान आना 
मेरी नैया बनी काठ की कहीं नारी ना बन जाए 
पत्थर की शिला अहिल्या रघुवर की कृपा पाए 
भवसागर के तारणहार कैसे ले लूं मैं उतर आई 
वन चले राम रघुराई

ऋषि मुनि साधु संतों की वन करते रक्षा श्री राम 
कंदमूल फल फूल खाकर धरा पर करते विश्राम 
पंचवटी में जा रघुवर ने सुंदर नंदन कुटि बनाई 
राम लखन सीता माता सब प्रभु की है प्रभुताई 
वन चले राम रघुराई

रमाकांत सोनी सुदर्शन 
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
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