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चिंता

चिंता

काहे चिंता करे बावला,
खेवनहार कोई और है,
सुख-दुख धूप छांव प्यारे,
जिसके हाथों में डोर है।


चिंता अंतर्मन जलाती,
घुटन भरा माहौल बनाती,
होठों की मुस्कानों को,
खुशियों को खा जाती।


चिता समान चिंता होती है
जलती देह आत्मा रोती है
मार्ग अवरुद्ध किस्मत सोती है
जीते जी फिर मृत्यु होती है


मौत को गले लगाना मत
चिंता कर घबराना मत
हर्ष मौज आनंद खुशी को
जीवन में ठुकराना मत


खुशियों में भागी बन देखो
थोड़ा सा त्यागी बन देखो
चिंता चित से दूर करो सब
खुद को अनुरागी कर देखो


जीवन दाता के हाथों में
जब सांसो की डोर है
ऊपर बैठा जग करतार
करे अंधकार को भोर है


छोड़ो चिंता जागो प्यारे,
खुशियां खड़ी आपके द्वारे,
हंसी-खुशी स्वीकार करो,
अपनों को खूब प्यार करो।


रमाकांत सोनी नवलगढ़जिला झुंझुनू राजस्थान
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