आस्था के फूल ...
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं,
लोग अपनों से छले जाते हैं जहां में,
छलने से फिर भी घबराते नहीं हैं।
आस्था को आधार बना आगे बढ़ते जाते हैं,
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं।
कुछ लोग बताते हैं "खुदा" खुद को, मगर
खुदा की मौजूदगी को झुठलाते नहीं हैं।
तन्हाई में करते हैं वो बंदगी खुदा की,
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं।
साथ चलने की खाकर कसम जिंदगी में,
रहबर छोड़ जाते हैं अक्सर मझधार में।
इंतजार में रहती आँखें खुली, मरते वक़्त,
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं।
नये दोस्तों से बढाकर नज़दीकियाँ,
फिर नये रिश्ते हर पल बनाते हैं।
छलने वाले की बताते हैं मजबूरियां,
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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