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चिट्ठी तो लिखते हैं अब भी

चिट्ठी तो लिखते हैं अब भी,

पर वह पहूंच नहीं पाती,
डाक अगर पंजीकृत भेजो,
भार जेब पर बहुत बढ़ाती।

चिट्ठी में जज़्बात लिखे थे,
अपने अनुभव साथ लिखे थे,
कुछ खुशियां, गम भी बांटे थे,
घर के सब हालात लिखे थे।

बहुत पीर थी शब्दों में, जो लिखे थे,
घर के सारे किस्से, मां को लिखे थे।
आज तलक न चिट्ठी पहूंची, मां द्वारे,
कैसे पढ़ती दर्द, जहां के जो लिखे थे।

अ कीर्ति वर्द्धन
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