एजी की कुर्सी पर फिर रोहतगी!
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
अदालत में केन्द्र सरकार का पक्ष मजबूती के साथ रखने का दायित्व अटाॅर्नी जनरल (एजी) का होता है। देश में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के समय भी इस दायित्व का सफलतापूर्वक निर्वहन मुकुल रोहतगी ने ही किया था। इसके बाद 2017 में इस दायित्व को कोट्टायन कटंकोट वेणुगोपाल ने संभाला था। अटाॅर्नी जनरल अर्थात् महान्यायवादी के.के. वेणु गोपाल भारत के 15वें अटार्नी जनरल थे। वे पद्मभूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किये गये। केके वेणुगोपाल मोरारजी देसाई की सरकार में एडिशनल साॅलिसिटर जनरल रहे थे। वे भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी व अन्य की तरफ से इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में भी पेश हुए थे। एटानी जनरल मुकुल रोहतगी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसी के बाद के.के. वेणुगोपाल को एजी की कुर्सी पर बैठाया गया था। श्री वेणुगोपाल का कार्यकाल एक साल के लिए दो बार बढ़ाया भी गया। अब इसी महीने अर्थात् 30 सितम्बर को उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है और संयोग से मुकुल रोहतगी को ही वे कार्यभार सौंपेगे, जिनसे कभी उन्हांेने कार्यभार ग्रहण किया था। मुकुल रोहतगी गुजरात दंगे को लेकर चले मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनायी गयी विशेष जांच टीम में भी शामिल रहे। वह अदालत में भी हल्का-फुल्का मजाक कर लेते थे। फरवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट में कोरोना वैक्सीन पर चर्चा के दौरान जजों और साॅलिसिटर जनरल मुकुल रोहतगी के बीच हल्का-फुल्का मजाक काफी चर्चित हुआ था।
देश के अटॉर्नी जनरल के तौर पर दूसरी पारी शुरू करने जा रहे सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी 14वें के बाद अब 16वें एजी होंगे। जून 2014 और जून 2017 के बीच अपने पहले कार्यकाल के बाद एजी के रूप में रोहतगी का यह दूसरा कार्यकाल होगा। दरअसल, वर्तमान एजी वेणुगोपाल का 30 सितंबर को कार्यकाल पूरा हो रहा है। इस साल जून के अंत में एजी वेणुगोपाल का कार्यकाल तीन महीने या अगले आदेश तक के लिए बढ़ा दिया गया था। यही अब 30 सितंबर को समाप्त होने वाला है। वेणुगोपाल को 1 जुलाई, 2017 को तीन साल के कार्यकाल के लिए अटॉर्नी जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था, जिसे बाद में एक साल के लिए दो बार बढ़ाया गया था।
एजी का दायित्व संभालने वाले रोहतगी 17 अगस्त 1955 को सीनियर एडवोकेट और बाद में दिल्ली हाईकोर्ट के जज बने अवध बिहारी रोहतगी के बेटे हैं। उनका जन्म मुंबई में हुआ। स्कूल कॉलेज की पढ़ाई दिल्ली और मुंबई में ही हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय से कॉमर्स ऑनर्स की पढ़ाई पूरी की। फिर मुंबई के ही प्रतिष्ठित गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मुकुल 1978 में दिल्ली बार काउंसिल में वकील के तौर पर रजिस्टर्ड हुए। ओडिशा के फकीर मोहन विश्वविद्यालय ने उनको 2011 में डॉक्टरेट इन लॉ से अलंकृत किया और 2016 में यूपी की एमिटी यूनिवर्सिटी ने उनको एलएलडी डॉक्टर ऑफ लॉ की उपाधि से विभूषित किया। यूपीए सरकार के दौरान 2008 में रोहतगी को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नेशनल लॉ डे अवार्ड से सम्मानित किया था। उस दौर के मशहूर वकील योगेश कुमार सब्बरवाल के जूनियर के रूप में कानून और न्याय प्रक्रिया के बारीक गुर सीखे।
मुकुल रोहतगी 1993 में 39 साल की आयु में दिल्ली हाईकोर्ट से सीनियर एडवोकेट बनाए गए। मुंबई से दिल्ली में आकर अपनी प्रखर तर्क क्षमता और कानून के बारीक दांव पेंच की समझ के बदौलत धाक जमाने वाले मुकुल रोहतगी को 1999 में वाजपेयी सरकार के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया। फिर 2014 में मोदी सरकार आई तो कानून मंत्री अरुण जेटली ने अपने पुराने मित्र और दिग्गज वकील मुकुल रोहतगी को अटॉर्नी जनरल नियुक्त करने का मन बनाया। रोहतगी 19 जून 2014 से 18 जून 2017 तक 14 वें अटॉर्नी जनरल रहे। उन्होंने 2014 में 13 वें अटॉर्नी जनरल गुलाम वाहनवती से चार्ज लिया था। पहला कार्यकाल पूरा होने पर रोहतगी से केके वेणुगोपाल ने 15 वें अटॉर्नी जनरल के तौर पर काम शुरू किया। संजोग है कि रोहतगी 16 वें अटॉर्नी जनरल के तौर पर वेणुगोपाल से ही चार्ज लेंगे। वकालत के अपने लंबे दौर में मुकुल रोहतगी ने अनगिनत बड़े मुकदमे लड़े। मशहूर और चर्चित मुकदमों में गुजरात दंगे को लेकर हुए मुकदमों में सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई विशेष जांच टीम यानी एसआईटी की ओर से पैरवी की। शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान के ड्रग्स केस में उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में आर्यन की वकालत की। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के मामले में अटॉर्नी जनरल के तौर पर केंद्र सरकार की पैरवी की। इसके अलावा कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड सहित जिन राज्य विधान सभाओं में संवैधानिक संकट आया मुकुल रोहतगी ने हमेशा केंद्र या राज्य सरकारों की पैरवी की है। पिछले कई सालों में सुप्रीम कोर्ट में आए लगभग सभी बड़े और चर्चित मामलों में मुकुल रोहतगी की उपस्थिति अनिवार्य ही रही है। कानून के दिग्गज विशेषज्ञ और अटॉर्नी जनरल के रूप में मुकुल रोहतगी ने कई अंतरराष्ट्रीय लीगल कॉन्फ्रेंस में भारतीय दल की अगुआई कर चुके हैं।
सन् 2006 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने रोहतगी को स्कॉटलैंड में आयोजित इंडो ब्रिटिश लीगल फोरम में भारतीय प्रतिनिधि मंडल का सदस्य बनाकर भेजा जहां उन्होंने पर्यावरण कानूनों का मानवाधिकारों पर पड़ने वाले असर पर शोध पत्र प्रस्तुत किया जिसकी खूब चर्चा हुई। सुप्रीम कोर्ट में एक सुनवाई के दौरान कोरोना वैक्सीन पर चर्चा हो रही थी। उसी दौरान जजों और सॉलिसिटर जनरल मुकुल रोहतगी के बीच हल्का-फुल्का मजाक हुआ। दरअसल, मराठा आरक्षण पर सुनवाई के दौरान कोरोना वैक्सीन पर भी पांच जजों के संविधान पीठ में दिलचस्प चर्चा हो रही थी। महाराष्ट्र सरकार की ओर से मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा कि मामले को टाल दिया जाए और जल्द शारीरिक रूप से सुनवाई भी शुरू होने वाली है, तब तक हो सकता है कि वैक्सीन भी लग जाए। पीठ में शामिल जस्टिस नागेश्वर राव ने चुटकी लेते हुए कहा कि मिस्टर मुकुल, हम आपको पिछले एक साल से मिस कर रहे हैं। उनकी इस चुटकी पर मुकुल रोहतगी ने प्रस्ताव रखा कि अटॉर्नी जनरल एजी वेणुगोपाल को अपनी संवैधानिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए जजों व वरिष्ठ वकीलों को वैक्सीन लगाने के लिए सरकार को कहना चाहिए लेकिन इस पर जस्टिस राव ने कहा कि वैक्सीन लगे या नहीं, रोहतगी को पेश होना होगा। रोहतगी ने कहा कि उन्होंने दिल्ली सरकार से बात की है अभी वैक्सीन लगने में तीन- चार महीने लग सकते हैं। कपिल सिब्बल ने कहा कि वो एजी से आग्रह करेंगे लेकिन एजी ने कहा कि किसी को वैक्सीन की जरूरत नहीं है। वरिष्ठ वकीलों को वैक्सीन लगाए जाने की बात को सिब्बल ने बीच में काटकर सवाल किया कि वैक्सीन सिर्फ वरिष्ठ वकीलों को क्यों, पहले जूनियरों को लगनी चाहिए। इस पर रोहतगी ने भी जवाब दिया कि यहां वरिष्ठ का मतलब उम्रदार वकीलों से है वरिष्ठता का गाऊन पहनने वालों के लिए नहीं है। इस प्रकार गंभीर माहौल को भी हल्का बनाने में मुकुल रोहतगी का कोई जवाब नहीं है। हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
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