कंडक्टर की ईमानदारी
रविन्द्र को एक आवश्यक कार्य से बाहर रामनगर जाना था,सो उसने अपने मित्र संजय से कहा यार संजय," मैं एक आवश्यक कार्य से बाहर रामनगर जा रहा हूँ । मैं आज रात देर से लौटूंगा। मैं कल तुमसे इत्मीनान से मिलूंगा और ढ़ेर सारी बातें करूँगा "। इतना कहकर रविन्द्र रामनगर जाने के लिए घर से निकल गया। घर से कुछ दूर आगे सड़क पर आकर और ऑटो पर बैठकर बस स्टैंड की ओर चल दिया।
रविन्द्र बस स्टैंड आकर रामनगर जानेवाली गाड़ी में बैठ गया। गाड़ी में बैठते हीं वह मोबाइल देखने लगा। अभी मोबाइल देखे हुए आधे धंटे हुये हीं थे कि रविन्द्र की पत्नी कंचन ने कहा कि "बेटा रौनक के साथियों ने उसके साथ मारपीट किया है,उसे कुछ चोट भी लगी है,सो उसके टीचर से इस संबंध में बात कीजिए"। रविन्द्र अपने बेटा व घर के बारे में कुछ सोच हीं रहा था कि तभी रामनगर का महाराणा चौक आ गया। वहाँ वह उतरकर और ऑटो पर बैठकर शहर की ओर चल दिया।
शहर में आकर वह आवश्यक कार्य से एक अखबार के संपादक से बात करने लगा।बात करते-करते एवं काम करते-करते जब शाम के चार बज गये तब वह वापस अपने शहर प्रेम नगर जाने के लिए जैसे हीं वह अपने बैग को खोजता है तब उसे वहाँ वह बैग नहीं मिलती है। उसे याद आता है,शायद मेरा बैग बस में हीं छूट गया है। लगता है मैं यहाँ बिना बैग के हीं आया हूँ ।
अब रविन्द्र मन हीं मन सोचने लगा कि "मेरा बैग गाड़ी में होगा या नहीं। कहीं मेरे बैग को कोई यात्री ले तो नही गया है। उसने अपने भगवान को याद करते हुए कहा " हे भगवान केवल तुमपर ही हमें विश्वास है,तुम पर ही मेरी आस है।तुम ही मेरी बैग वापस दिलवा सकते हो।" यह सोचकर रविन्द्र एक रिक्शा पकड़कर बस स्टैंड की ओर चल दिया।बस स्टैंड पहुँचकर वह उस बस को ढूंढने लगा जिससे वह आया था। दो धंटे की काफी परेशानी एवं मशक्कत के बाद लगभग सात बजे शाम में आखिरकार उसे वह बस मिल हीं गया जिससे वह आया था।
बस कंडक्टर से मिलने के बाद रविन्द्र ने उसे अपनी सारी बात बतायी कि बारह बजे रामनगर में गाड़ी से उतरने के दौरान मेरी काली रंग की बैग बस में छूट गयी थी। बस कंडक्टर ने बताया कि "ईश्वर की कृपा से यह बैग मेरे हाथ लग गयी। यदि यह बैग कोई यात्री ले जाता तो नहीं हम कुछ कर सकते थे और नहीं आप कुछ कर सकते थे "।
कंडक्टर ने रविन्द्र से पूछा "अच्छा आप यह तो बताइए कि इस बैग में क्या-क्या है। रविन्द्र ने कंडक्टर से मुखातिब होकर कहा कि इस बैग में मेरा पैंट-सर्ट, फाइल,रजिस्टर,आई कार्ड एवं कुछ कागजात हैं "। कंडक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा कि "यह बैग अब आपका हीं है। अब आप इसमें रखी सारी चीजें देख सकते हैं कि आपका सामान सुरक्षित है या नहीं ।अपना बैग आप आराम से ले जाइए। एक बात और इसे दुबारा गलती से नहीं छोडिएगा। आप अपने दिमाग में यह बात कभी नहीं रखिएगा कि सभी कंडक्टर बेईमान होता है "।
रविन्द्र ने नवयुवक कंडक्टर की ईमानदारी पर खुश होते हुए एवं उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा कि "युग-युग जियो मेरे भाई। भगवान तुम्हें व तुम्हारे परिवार को सदैव सुखी,स्वस्थ व सलामत रखें "।
रविन्द्र के आत्मीय भाव से मिले आशीर्वाद से कंडक्टर से चेहरे पर एक मुस्कान छा गई।
------0----- अरविन्द अकेला,पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27
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