मातृ स्वरूप पर कलंक
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
छोटी छोटी बातों पर समझौते के स्थान पर क्लेश व अलगाव, तलाक व पारिवारिक विवादों को जन्म दे रहे हैं और इस सबका दुष्परिणाम मासूमों के पालन पोषण परवरिश पर पड़ रहा है। इस तरह एक बेहद प्रदूषित माहौल पैदा किया जा रहा है जिसमें कई बार मासूम बच्चों पर माता कुमाता बन कर कहर ढा रही हैं। इन हालात का समाधान कानून के पास नहीं है इस के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति और संस्कारों से जुड़ी मान्यताओं को बच्चियों को अवगत करा कर उन्हें संस्कारित व सभ्य बनाने के लिए माहौल देना होगा।
माँ के बराबर कोई नहीं। भारतीय संस्कृति में एक मां की छवि यही है लेकिन माँ के स्वरूप पर कलंक क्यों लग रहा है। अभी गुरुवार 1 सितंबर को एक बेहद अमानवीय घटना की खबर सामने आई है बिजनौर में एक मां ने प्रेमी के लिए अपने 6 महीने के बच्चे की हत्या करवा दी। उसने घर में काम करने वाली 10 साल की बच्ची के हाथों बच्चे को नाले में फेंकवा दिया। फिर खुद थाने पहुंचकर बच्चे के अपहरण होने की जानकारी देती है। पुलिस ने जांच की तो सीसी कैमरे में सारी घटना के सबूत मिल गए। इस कलियुगी मां ने स्वीकार किया है कि आठ महीने पहले उसका पति उसे छोड़ कर खाड़ी देश कमाने चला गया। इस बीच उसके पुराने प्रेमी से संबंध बन गए। जांच में सामने आया है कि बच्चा उसके प्रेम संबंध में बाधा बन रहा था। आरोपी महिला को गिरफ्तार कर लिया गया है।
इसी तरह एक सप्ताह पहले 26 अगस्त को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बागपत में मां की ममता उस वक्त शर्मशार हो गई, जब एक मां ने डेढ़ साल के बच्चे को नेशनल हाईवे पर गाड़ी के आगे फेंक दिया। इससे बच्चे की मौके पर ही मौत हो गई। पता चला कि मासूम बच्चा बुरी तरह रो रहा था। महिला ने उसे पानी पिलाकर चुप करने की कोशिश की बच्चा चुप नहीं हुआ तो आपा खो बैठी महिला ने उसे हाइवे पर फेंक दिया उसी क्षण वहां से गुजर रही कार से बालक कुचल गया और अबोध बालक की मौत हो गई।
अभी 15 अगस्त को यूपी के गाजीपुर जिले में सुहवल थाना क्षेत्र के ढढ़नी भानमलराय गांव में पति से विवाद के बाद महिला ने अपने चार में तीन बच्चों को जहर देकर मार डाला। दो बेटों की मौके पर मौत हो गई तो तीसरी बेटी ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। चैथा बच्चा अपनी नानी के पास खेत में होने के कारण बाल-बाल बच गया है। बागपत जिले के ही बाखरपुर बालैनी में घरेलू विवाद में मां ने चार साल की बेटी की गला घोंटकर हत्या कर दी। अभी 19 अगस्त को कर्नाटक के तुमकुरु जिले में एक चैंकाने वाली घटना में एक परेशान पति समीउलला ने अपने तीन बच्चों को जहर देकर खुद भी जहर खा लिया, उसकी पत्नी सऊदी अरब में अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी।
गोरखपुर में एक मां ने अपनी ही 5 साल की मासूम बच्ची के साथ बेरहमी की हद कर दी। स्कूल न जाने की जिद कर रही बच्ची को इस मां ने चाकू गर्म कर शरीर पर 17 जगह दाग दिया। पिता ने इस बेरहमी के खिलाफ थाने पहुंचकर गुहार लगाई और केस दर्ज कर मां को गिरफ्तार करा दिया है। मध्य प्रदेश के मंदसौर में बेरहम सौतेली मां का क्रूरता भरा चेहरा सामने आया है, जहां ममता को ताक पर रखकर सौतेली मां ने अपनी 7 वर्षीय बच्ची की बेरहमी से पिटाई कर दी।
यूपी के सुलतानपुर में एक मां अपने बच्चे के ही जान की दुश्मन बन गई। मां ने गुस्से में अपने एक वर्षीय बेटे का गला दबा दिया। परिवार वाले अस्पताल ले ही जा रहे थे कि मासूम ने दम तोड़ दिया। दरअसल, पत्नी अपने पति के साथ मुम्बई जाने की जिद कर रही थी। पति ने इसके लिए मना कर दिया तो मना किए जाने पर पत्नी ने गुस्से में अपने मासूम बच्चे का मुंह दबा दिया जिससे उसकी सांस रुक गई। हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें दिल्ली में पांच वर्षीय बच्ची चिलचिलाती धूप में छत पर पड़ी हुई है और उसके हाथ पीछे से बंधे हुए हैं। दरअसल एक महिला ने होमवर्क नहीं करने पर अपनी पांच साल की मासूम बच्ची के हाथ पैर बांधकर भरी दोपहर चिलचिलाती धूप में तपती छत पर डाल दिया। बच्ची चीखती चिल्लाती रही किसी ने इस घटना का वीडियो बनाकर वायरल कर दिया जिसके बाद महिला पर पुलिस ने केस दर्ज मां बाप की काउंसलिंग करायी।
यह सभी घटनाएं तो सिर्फ बानगी भर है। रोजाना इस तरह की घटनाएं घटित हो रही है जिनमें जन्म देने वाली मां ही अपनी कोख से पैदा मासूमों की जान लेने से भी बाज नहीं आ रही हैं। इन घटनाओं में जहां एक तरफ मां का क्रूरता भरा अमानवीय चेहरा सामने आ रहा है जो भारतीय नारी की परम्परागत वात्सल्य व करुणा वाली छवि से एक दम उलट विपरीत है। वहीं बढ़ती गृह कलह भी एक सामाजिक समस्या के रूप में सामने आ रही है। कभी पति से तो कभी सास से मामूली कहासुनी के बाद सारा गुस्सा मासूमों पर उतर रहा है। वहीं विवाहेत्तर संबंध भी बच्चों की जान पर भारी पड़ रहे हैं।
वरिष्ठ महिला एक्टिविस्ट एवं प्रतिष्ठितलेखिका समाजसेवी सुश्री इंदु सिंह कहती है कि कभी अपने बच्चों के लिए जान तक देने वाली मां अब उसकी जान लेने में पीछे नहीं हट रही बल्कि, बेदर्दी से इसे अंजाम दे रही ऐसे में उसके बदलते व्यवहार पर दृष्टि व मानसिकता का विश्लेषण जरूरी है।
इंदु सिंह कहती हैं कि आधुनिकता के नाम पर फेमिनिस्ट के नाम पर महिलाओं को जो जीवन मंत्र पढ़ाये जा रहे हैं उनका सार मेरा लाइफ मेरे रूल्स, माय बॉडी माय चॉइस, जिंदगी न मिलेगी दोबारा, अपने दिल की सुनो, सही-गलत पाप-पुण्य कुछ नहीं होता जो मन को सही लगे वो सही है । इसके अलावा भी कई तरह के सूत्र फेमिनिस्ट्स के द्वारा बोले जाते जो हमारे भारतीय सामाजिक वातावरण व ढांचे के प्रतिकूल हैं। इसने महिलाओं के भीतर की सुप्त कामनाओं को तो जागृत कर दिया लेकिन, उसे किस तरह से संभालना यह नहीं बताया तो उसके दुष्परिणाम कई रूपों में सामने आ रहे हैं। सनातन व्यवस्था में पहले अपने आपको साधने अपनी इंद्रियों को अपने वश में करने ब्रम्हचर्य की शिक्षा दी जाती जिससे कि व्यक्ति आगे चलकर हर परिस्थिति में अपने आप पर नियंत्रण रख सके। जाहिर है कि आज की महिला को किसी भी परिस्थिति से मुकाबले के लिए सक्षम बनाने के स्थान पर विषम या तनिक भी प्रतिकूल परिस्थितियों में एकदम नैराश्य भाव में टूट जाने वाली बच्चों व स्वयं के जीवन की हंता बनने के लिये उतावली चरित्र को तैयार किया गया है। उस पर तमाम सास-बहू के सीरियल और बेबसीरीज अनैतिक पर पुरुषों के साथ अवैध संबंधांे को चित्रित कर आम महिलाओं की मानसिकता को दूषित करने के लिए प्रयासरत हैं। यह स्थिति अब खतरनाक मोड़ पर पहुंच रही है। छोटी छोटी बातों पर समझौते के स्थान पर क्लेश व अलगाव, तलाक व पारिवारिक विवादों को जन्म दे रहे हैं और इस सबका दुष्परिणाम मासूमों के पालन पोषण परवरिश पर पड़ रहा है। इस तरह एक बेहद प्रदूषित माहौल पैदा किया जा रहा है जिसमें कई बार मासूम बच्चों पर माता कुमाता बन कर कहर ढा रही हैं। इन हालात का समाधान कानून के पास नहीं है इस के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति और संस्कारों से जुड़ी मान्यताओं को बच्चियों को अवगत करा कर उन्हें संस्कारित व सभ्य बनाने के लिए माहौल देना होगा ताकि वह जीवन की प्रतिकूलताओं में भी अपने विवेक व संयम का परिचय देते हुए स्वयं व बच्चों परिवार के जीवन की महत्ता को स्वीकार करें और परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए सबल व शक्ति का प्रतीक बनकर एक अच्छे समाज की संरचना का मूलाधार बने।
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