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सन्नाटे बोल उठेंगें

सन्नाटे बोल उठेंगें

          ---:भारतका एक ब्राह्मण.
            संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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सन्नाटे बोल उठेंगें
निश्चित है
सिंहासन डोल उठेंगें
तम देख लेना
लोग त्राहि-त्राहि बोलेंगें
अभी दिखा है तेजपुंज
तुम सुनोगे अनुगुंज-गुंज
फिर तुम नहीं चुप रहोगे
बिना पुछे हीं सब कहोगे
जब जगेगा प्रतिशोध
तब कहा रहेगा बोध
रग-रग के खुन खौलेंगें
जब धैर्य का बांध
एक दिन टूटेगा
तब क्या वो विनाश
रोकने से भी रुकेगा
लपलपा उठेगी दिशा
बन जायेगी विध्वंसक ये हवा
बस थोडा सब्र करो
अंतस में खौल रहा है वह
और खोज रहा है मार्ग
समय के सापेक्ष
एक-एक क्षण तौलेंगें
चुर-चुर हो जायेगा अभिमान
याद आयेंगें सबको भगवान
उस वक्त
न बल काम देगा न ज्ञान
जब नाचेगा मौत
बनकर मशान
और ये काल की सहचरी
करेगी नर्तन
निगलने को जीवन
जो यहाँ विषधर डोलेंगें
तन मन की विकृति
सहन नहीं कर पाती है प्रकृति
उठाती है खड्ग और खप्पर
फिर नाचती है वो उन्मुक्त
कराल काल पुरुष की छाती पर 
पिने लगती है रक्त
मिटाने को बीज
कि जबतक ये रहेंगें आततायी
बनी रहूंगी रक्तपायी
उन सबका करूंगी संहार
जो भर रहा है ललकार
उसे कर दूंगी भस्मीभूत
बनकर अग्रदूत....अद्भुत
जो इधर जहरर घोलेंगें
जब सन्नाटे बोल उठेंगें
तब निश्चित है
सिंहासन डोल उठेंगें
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वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२.
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