अनदेखा
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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इधर बार बार
कर रही है अनदेखा
बिल्कुल
एक अजनबी के लेखा
अब तो
मैनें लिया सोच
अब फेंक देना है मुझे
उसकि आशा क़ो नोंच
तभी टूटेगा घमंड
जो कर रही है प्यार का पाषंड
मुझे नहीं करनी है बात
ओ भी जाग जागकर दिन रात
समझ गया नियत
कि उसकी निगाह में क्या है
मेरे प्यार की किमत
नहीं चाहिए मुझे तेरी हमदर्दी
और ये दिखावा
समझ गया मैं तेरा प्यार है छलावा
जैसा की उस पर अफसोस है
शायद मैं तेरे प्यार के लायक नहीं रहा
इसीलिए तो तू खामोश है
दो या मत दो तुम मुझे जवाब
मैनें भी छोड दिया देखना तेरा ख्वाब
तुम अपनी जगह से हिल न पाओगी
मेरे लाख लाख चाहने पर भी
तुम मुझे मिल न पाओगी
तुम रहो अपनी जगह पर खुश
अब मत होने देना तुम कुछ महसूस
मत पुछना कभी
कि आखिर तुमको क्या हुआ है
तुम अपनी दुनियां में हमेशा खुश रहना
तेरे लिए अब यही दुआ है
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