श्राद्ध और तर्पण
----:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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जो कुछ
पितरों के प्रति
श्रद्धा के साथ
किया जाय अर्पण
कहते हैं मनीषी
है यही श्राद्ध और तर्पण
पितामह हो या पिता
करते हैं संरक्षण
प्रमाता या माता
देती है आजन्म आशीर्वचन
यही है साश्वत आकर्षण
जो गुजर चुकी है पीढी
उनके अनुग्रह पाने के निमित्त
बनी है ये श्रद्धा की सीढी
जिसका कर के आरोहण
प्रकट करते हैं लोग
उनके प्रति अगाध समर्पण
जो लोग
नहीं करते हैं देवार्चन
और नहीं करते हैं बडों का आदर
छोटों के प्रति स्नेह
वे अवश्य जाते हैं घोर नरक
भोगते रहते हैं ये जरा मरण
लो आ गया है पितृपक्ष
खोल जरा अक्ष
यूंहीं निढाल पडा मत रह
मोह निशा में शयनकक्ष
चल उठ
और खडा हो जा निष्पक्ष
फल्गु के तट देख अक्षय बट
ब्रह्मयोनि और प्रेतशिला
ज्ञान और मोक्ष की भूमि
विष्णुपद धाम धर्मशिक्षा
है अभ्युदयिक जो दिव्य दर्पण
अर्पण
समर्पण
पितरों को प्रीय है ये
श्रेयस्कर दो कर्म
श्राद्ध और तर्पण
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