कब है अनंत चतुर्दशी? सौभाग्य और ऐश्वर्य प्रदान करने वाले इस अनन्त चतुर्दशी की कहानी क्या है?
कब है अनंत चतुर्दशी? सौभाग्य और ऐश्वर्य प्रदान करने वाले इस अनन्त चतुर्दशी की कहानी क्या है? मार्कण्डेय शारदेय (ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र विशेषज्ञ) के साथ सम्पादक डॉ राकेश दत्त मिश्र की वार्ता एवं कैमरा पर पप्पू सिंह के द्वारा | भगवान श्री हरि अनंत की कृपा पाने के लिए अनंत चतुर्दशी के दिन इनकी पूजा का विधान है। जो हर साल भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इसी दिन भगवान गणेश का भी विदाई और विसर्जन होता है। अनंत चतुर्दशी की कथा सुनने और इस दिन 14 गांठों का धागा बांधने से भगवान हरि की कृपा बरसती है। अनंत चतुर्दशी तिथि 2022 हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 08 सितंबर दिन गुरुवार को रात 09 बजकर 02 मिनट पर हो रही है। अगले दिन ये तिथि 09 सितंबर शुक्रवार को शाम 06 बजकर 07 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर इस साल अनंत चतुर्दशी 09 सितंबर को मनाई जाएगी। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी पड़ती है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा करके उन्हें सभी संकटों से रक्षा करने वाला अनंतसूत्र बांधा जाता है। हिन्दू धर्म में अनंत चतुर्दशी महत्वपूर्ण तिथियों में से एक है। पंचांग के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को यह व्रत आता है। इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा करके उन्हें सभी संकटों से रक्षा करने वाला अनंतसूत्र बांधा जाता है। साथ ही इसी दिन गणपति महोत्सव का समापन होता है। इस साल 9 सितंबर 2022 को अनंत चतुर्दशी पड़ रही है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है और अनंत चतुर्दशी की कथा पढ़ता या सुनता है उसे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से सौभाग्य और ऐश्वर्य का आशीर्वाद मिलता है. अनन्त चतुर्दशी की कहानी क्या है? हिंदू पौराणिक कथाओं और हिंदू शास्त्रों के अनुसार, पांडवों द्वारा कौरवों के साथ खेले गए जुए के खेल में अपना सारा धन और वैभव खो दिया। जिसके परिणामस्वरूप, उन्हें बारह वर्षों के वनवास के लिए जाना पड़ा। राजा युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से इस कठिन समय से बाहर आने का उपाय पूछा। भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर से कहा कि वे भगवान अनंत की पूजा करें और व्रत का पालन करें क्योंकि इससे ही उनकी खोई हुई संपत्ति, वैभव और राज्य वापस मिलेंगे। ऋषि कौंडिन्य और सुशीला की एक कहानी भगवान कृष्ण ने राजा के साथ साझा की थी|भगवान विष्णु अपने एक अन्य नाम अनंत से भी लोकप्रिय हैं जो सनातन का प्रतीक है और चतुर्दशी शब्द का अर्थ है चैदह। अनंत चतुर्दशी की पूर्व संध्या पर, आमतौर पर पुरुष अपने सभी पिछले पापों से छुटकारा पाने के लिए और अपने बच्चों और परिवार की भलाई के लिए अनंत चतुर्दशी का व्रत रखते हैं। भगवान विष्णु का दिव्य आशीर्वाद पाने और अपनी खोई हुई समृद्धि और धन की प्राप्ति के लिए उपवास का लगातार 14 वर्षों तक पालन किया जाता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार एक सुमंत नामक ब्राह्मण था। उसका विवाह महर्षि भृगु की पुत्री दीक्षा से हुआ था। जब सुमंत और दीक्षा की पुत्री हुई तो उन्होंने उसका नाम सुशीला रखा। परंतु सुमंत की पत्नी दीक्षा की असमय मृत्यु होने पर ब्राह्मण ने एक कर्कशा नाम की कन्या से शादी कर ली। फिर सुशीला का विवाह कौण्डिन्य मुनि से हो गया। कर्कशा के अत्यंत क्रोधी स्वभाव और बुरे कर्मों के कारण सुशीला बहुत निर्धन हो गई।फिर एक दिन जब सुशीला अपने पति के साथ कहीं जा रही थी तो मार्ग में उन दोनों को कुछ महिलाएं एक नदी पर व्रत करते हुए दिखीं। सुशीला ने पास जाकर जब उन महिलाओं से पास जाकर पूछा तो पता चला कि वे स्त्रियां अनंत चतुर्दशी का व्रत कर रही थीं। महिलाओं को विधिपूर्वक व्रत करते देख सुशीला ने भी भगवान को अनंतसूत्र बांध दिया। तब भगवान अनंत की कृपा से उन दोनों पति-पत्नी के सभी कष्ट दूर हो गए और उनके जीवन में खुशियां भर गईं।लेकिन एक बार क्रोध में आकर सुशीला के पति कौण्डिन्य मुनि ने उस अनंतसूत्र को तोड़ दिया जिससे भगवान के रुष्ट हो गए। इस कारण फिर से सुशीला और उसके पति के जीवन में कष्टों का अंबार लग गया। तब सुशीला ने भगवान से क्षमा मांगी कि वह उसके जीवन के सभी कष्टों को समाप्त कर दें। तब अनंत देव सुशीला के विनय को सुनकर प्रसन्न हुए और फिर से अपनी कृपा उन पर बरसाई। मान्यता है कि तभी से यह व्रत रखा जाता है और इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा कर अनंतसूत्र बांधने से ईश्वर की कृपा से जीवन में सभी कष्ट दूर होकर सुख-समृद्धि का वास होता है। अनंत चतुर्दशी पूजा कैसे करें? सबसे पहले, भक्त एक लकड़ी का तखत लेते हैं, जिस पर वे सिंदूर के साथ चैदह तिलक लगाते हैं। • उसके बाद 14 पूए (मीठी गेहूं की रोटी जो कि डीप फ्राई की जाती है) और चैदह पूरियां (गेहूं की ब्रेड जो डीप फ्राई की जाती है) इन तिलकों पर रखी जाती है। • इसके बाद भक्त पंचामृत बनाते देते हैं, जो ‘दूध सागर’ (क्षीरसागर) का प्रतीक है। • एक पवित्र धागा जिसमें 14 गांठें होती हैं जो भगवान अनंत को ककड़ी पर बांधा जाता है और फिर पांच बार ‘दूध के महासागर’ में घुमाया जाता है। • श्रद्धालु एक व्रत का पालन करते हैं और फिर हल्दी और कुमकुम से रंगे हुए पवित्र धागे को अपनी बांह पर (पुरूषों के दाएं हाथ और स्त्रियों के बाएं हाथ में) अनंत सूत्र के रूप में बांधते हैं। दिव्य रश्मि ! धर्म, राष्ट्रवाद , राजनीति , समाज एवं आर्थिक जगत की खबरों का चैनल है | जनता की आवाज़ बनने के उदेश्य से हमारे सभी साथी कार्य करते है अत: हमारे इस मुहीम में आप के साथ की आवश्यकता है |हमारे खबरों को लगातार प्राप्त करने के लिए हमारे चैनल को सबस्क्राइब करना न भूले और बेल आइकॉन को अवश्य दबाए | खबर पसंद आने पर👉 हमारे "चैनल" को Subscribe, वीडियो को Like 👍 & Share↪ , जरुर करें चैनल को सब्सक्राइब करें खबर को शेयर जरूर करें
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