बदल गया है दौर
बदल गया है दौर, जमाना नैट का आया,पुस्तक संस्कृति से सबने मोह बिसराया।
बिकने लगी किताब सड़क पर तौल के भाव,
लेखक प्रकाशक भी यह हाल देख चकराया।
पुस्तकालय भी अब डिजिटल होने लगे,
किताबों के सपने वहां भी सब खोने लगे।
शिक्षा का चलन, आन लाइन हुआ जब से,
बहुमूल्य ग्रंथ निज अहमियत देख रोने लगे।
बैठा है सड़क किनारे सजाकर दुकान वो,
था पुस्तक प्रेमी अपने दौर का इन्सान वो।
करने को शौक पूरा उसने, दुकान खोल ली,
दिखता है शख्स अदना सा, विद्वान है वो।
अ कीर्ति वर्द्धन
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