Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

बदल गया है दौर

बदल गया है दौर

बदल गया है दौर, जमाना नैट का आया,
पुस्तक संस्कृति से सबने मोह बिसराया।
बिकने लगी किताब सड़क पर तौल के भाव,
लेखक प्रकाशक भी यह हाल देख चकराया।


पुस्तकालय भी अब डिजिटल होने लगे,
किताबों के सपने वहां भी सब खोने लगे।
शिक्षा का चलन, आन लाइन हुआ जब से,
बहुमूल्य ग्रंथ निज अहमियत देख रोने लगे।


बैठा है सड़क किनारे सजाकर दुकान वो,
था पुस्तक प्रेमी अपने दौर का इन्सान वो।
करने को शौक पूरा उसने, दुकान खोल ली,
दिखता है शख्स अदना सा, विद्वान है वो।

अ कीर्ति वर्द्धन
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ