गिरता रुपया या उठता डॉलर:-मनोज कुमार मिश्र
आज कल भारत की अर्थ मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण के एक बयान पर हंगामा मचा हुआ है। उन्होंने कहा कि रुपये का अवमूल्यन नहीं हुआ है वरन अमेरिकी डॉलर मजबूत हुआ है। भारत का विपक्ष और नाम गिरामी लेकिन मोदी विरोधी अर्थशास्त्री उनके इस बयान की खिल्ली उड़ा रहे हैं। सुमंत रमन नाम के दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध टीवी एंकर ने भी ट्विटर पर अर्थ मंत्री के इस बयान पर हंसी उड़ाते हुए कहा - Dollar is strengthening it seems. I was so worried that the rupee was weakening. But apparently it is only the Dollar strengthening, you see. 😡🤦🤦।
चिंता और उपहास दोनों को सही कहा जा सकता है क्योंकि जो अमेरिकी डॉलर 2014 में 63 रुपये पर था आज के दिन में 82 रुपये पर है। सीधा सीधा देखने पर रुपये में गिरावट परिलक्षित है। पर इस गिरावट की इतनी सीधी व्याख्या करने से पहले कुछ और कारकों पर भी नज़र डाल लेने से शायद इस क्लिष्ट मसले पर कुछ सार्थक निष्कर्ष निकल पाएं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी अपने बड़े संकट काल से गुजर रही है। अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर 13.50% है और इस महंगाई को लगाम लगाने की जरूरत है। मुद्रास्फीति की यह दर बता रही है कि अमेरिकी बाजार में डॉलर की उपलब्धता बाजार में सामान की उपलब्धता से ज्यादा है। तो इस पर काबू पाने के लिए कोई भी सरकार बाजार से अपनी करेंसी कम करना चाहेगी। यही काम अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने किया। अमेरिकी बैंकों को एक निश्चित रकम यूएस फ़ेडरल बैंक में दैनिक रूप जमा करनी पड़ती है। इसके लिए उन बैंकों को साथी बैंकों से ऋण लेकर भी यह रकम जमा करनी पड़ती है। यह रकम जिस ब्याज पर ली जाती है वह उनकी केंद्रीय ब्याज कहलाती है। यह दर 2014 में शून्य थी। चूंकि अमेरिकी फेडरल बैंक में निवेश पूर्ण सुरक्षित माना जाता है। यह रेट 2010 से ही जीरो था और फरवरी 2022 तक शून्य ही थी। पर अब यह ब्याज दर 3.5% तक आ गयी है और निकट भविष्य में इसके 5% तक जाने की संभावना है। जब फ़ेडरल रेट बढ़ता है तो दुनिया भर के निवेशक जो अभी अपनी जमा पर बेहतर ब्याज के लिए दूसरे देशों में निवेश कर रहे थे वे अपनी रकम उन जगहों से निकाल कर अमेरिकी बैंकों में जमा करना शुरू करते हैं। पर यह जमा करने का उत्साह मुद्रास्फीति भी लेकर आता है। जिसे नियंत्रित करने के लिए फ़ेडरल बैंक को ब्याज दर बढ़ानी पड़ती है। इसका अर्थ यह हुआ कि निकट भविष्य में डॉलर का भाव और भी बढ़ेगा। तो यह तो निश्चित हो गया कि अमेरिकी डॉलर मजबूत हुआ है।
आइये अब देखें क्या भारतीय रुपया अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर हुआ है। विश्व में लगभग 30 मुख्य मुद्राएं हैं इनमें से 3 मुद्राएं ऐसी हैं जिनकी धाक है। इसमें जापानी येन, ब्रिटेन का पौंड, यूरो शामिल हैं।
रुपया ब्रिटिश पौंड के मुकाबले अब कहाँ है-
अक्टूबर 2021 में 1 पौंड की कीमत ₹104 थी जो आज के दिन यानी अक्टूबर 2022 में ₹92 के बराबर है अर्थात रुपये के मुकाबले ब्रिटिश पौंड का अवमूल्यन हुआ है।
यही हाल यूरोपीय यूनियन के यूरो का है -
अक्टूबर 2021 में 1 यूरो ₹88 का आता था वही अब अक्टूबर 2022 में ₹82 का है। यानी यहां भी यूरो का रुपये के मुकाबले अवमूल्यन ही हुआ है।
अब थोड़ा हाल जापानी येन का भी देख लेते हैं - अक्टूबर 2021 में एक जापानी येन 0.65 पैसे का था जो अब अक्टूबर 2022 में 0.55 पैसे का है। यानी यहां भी रुपया मजबूत हुआ है।
कहने का अर्थ यह है कि रुपया सिर्फ डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है। इस बात को और बेहतर समझने के लिए हमें डॉलर इंडेक्स को जानना होगा जो विश्व की मुख्य मुद्राओं से बनता है जिसमें जापानी येन यूरो और ब्रिटिश पौंड शामिल हैं । इस इंडेक्स पर डॉलर का भाव अक्टूबर 2021 में 93 पर था जो अब अक्टूबर 2022 में 113 पर है। यानी डॉलर दुनिया की 6 प्रमुख मुद्राओं के सामने भी मजबूत ही हुआ है कमजोर नहीं।
अब सवाल यह भी है कि आखिर ये रुपये का डॉलर के साथ अवमूल्यन हो क्यों रहा है। दुनिया में रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध के कारण आयल और गैस का भाव आसमान छू रहा है और यह व्यापार सिर्फ डॉलर में होता है।पुनः करीब करीब सभी देशों का विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में रखा जाता है। अतः डॉलर का मजबूत होना स्वाभाविक है।
अब इस चक्रव्यूह को तोड़ा कैसे जाय। इसका एक ही उपाय है कि किसी तरह इस लेन देन को डॉलर से हटा कर किसी अन्य मुद्रा या धातु में किया जाय। इस ओर भारत ने कदम बढ़ा दिए है। भारत ने रूस और और ईरान के साथ अपनी मुद्रा में तेल खरीदने का फैसला किया है जिस पर दोनों देशों ने सहमति भी दी है। भारत वेनेजुएला से भी भारतीय मुद्रा में तेल खरीदने के लिए प्रयासरत है। दूसरी ओर अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए भारत अपने विदेशी मुद्रा भंडार को स्वर्ण में बदलना चाहता है। इसी उद्देश्य से भारत यूएई से 200 टन सोना सस्ती दरों पर खरीद रहा है। वर्तमान में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 12% सोना है इसे 66% तक ले जाने का प्रयास भारत सरकार कर रही है। यह कदम आगे आने वाले सालों में भारतीय मुद्रा की स्थिरता में सहायक होगा क्योंकि विश्व में सिर्फ स्वर्ण भंडार ही एक ऐसी मुद्रा है जो सबसे ज्यादा स्थिर है। आने वाला दशक निश्चित ही भारत का होगा और हमे विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में सहायक होगा।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com