Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

देश को समर्पित इन्दिरा की कुर्बानी

देश को समर्पित इन्दिरा की कुर्बानी

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)

इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू गाँधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को हुआ था और 31 अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या कर दी गयी। हत्या उनके ही अंगरक्षकों ने की थी और उसके पीछे पंजाब को अलगाववादियों के हाथों से बचाने के लिए किया गया आपरेशन ब्लू स्टार का प्रतिशोध था। इसी आपरेशन में भिंडरावाला समेत कई अलगाववादियों को सेना ने मार गिराया था । यह देश की एकता के लिए बहुत बड़ी कुर्बानी थी। इस तरह के बलिदान देशवासियों के लिए नमन करने वाले हैं लेकिन स्वार्थ की राजनीति जलती चिता पर भी रोटी सेंकती है। इन्दिरा गांधी की हत्या से देश भर में आक्रोश पैदा हुआ था। इसी के चलते दिल्ली में विशेष रूप से सिखों को मारा पीटा गया था। स्वार्थ की राजनीति उसी दंगे को जकयादा याद करती है जबकि इन्दिरा गांधी की कुर्बानी को याद कर उससे सबक लेना चाहिए । इंदिरा गाँधी वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चैथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। अक्तूबर महीने की अंतिम तारीख अर्थात 31अक्टूबर को देश की तीसरी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। कल हमारा देश इंन्दिरा गांधी की 38वीं बरसी पर श्रद्धांजलि अर्पित करेगा। यह दिन कांग्रेस के लिए विशेष रूप से सबक देने वाला है। लम्बे अर्से के बाद कांग्रेस को नेहरू गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष मिला है। इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद बहुत गंभीर संदेश देश को मिला हालांकि पतन की सीमा तक पहुंच चुकी सियासत ने इतिहास से सबक लेना ही बंद कर दिया है।इतिहास बताता है कि हादसा महज गहरा घाव पीछे नहीं छोड़ जाता, बल्कि कुछ सबक भी सिखा जाता है। इन्दिरा गांधी की नृशंस हत्या जैसे जघन्य कांड के भी कई प्रमुख सबक हैं?

इंदिरा गांधी की हत्या उनके आवास पर उन्हीं के सुरक्षाकर्मियों द्वारा कर दी गई थी। ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के बाद से खुफिया ब्यूरो (आईबी) और रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (रॉ) को लगातार इनपुट मिल रहे थे कि सीमा पार से आईएसआई के आला अधिकारी इंदिरा गांधी को रास्ते से हटाने की साजिशें रच रहे हैं। यही वजह थी कि प्रधानमंत्री के आवास और कार्यालय की किलेबंदी में दिल्ली पुलिस के साथ केंद्रीय बलों के जवानों को तैनात कर दिया गया था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की इस सुरक्षा-व्यवस्था की नियमित समीक्षा होती थी और खुफिया एजेंसियों के अधिकारी भी इनमें हिस्सा लेते। उन्हीं दिनों ‘रॉ’ को जानकारी मिली कि सुरक्षा चक्र के अंदरूनी घेरे में तैनात दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर बेअंत सिंह ने कुछ दिनों पहले अमृत छका है और उसकी मुलाकातें संदिग्ध लोगों से हो रही हैं।

वह न केवल मुक्तिवाहिनी के वास्तुकारों में एक थे, बल्कि सैन्य रणनीति के निर्धारण में भी उनका खासा दखल था। 1971 की उस जंग में भारत की ऐतिहासिक विजय ने 1962 में चीन युद्ध के आघात से उबरने का मौका मुहैया कराया था। हमारा राष्ट्रीय गौरव नए शिखर पर प्रतिष्ठापित हो रहा था। यही वजह थी कि प्रधानमंत्री उन पर काफी भरोसा करती थीं। काव ने बेअंत के संदेहास्पद होने की ताकीद की थी। इसी आधार पर उसका तबादला दिल्ली पुलिस की सशस्त्र इकाई में कर दिया गया था। कहते हैं कि इंदिरा गांधी उसे बेहद पसंद करती थीं और ‘सरदार जी’ कहकर पुकारती थीं। उनकी दखल पर वह कुछ दिनों में वापस लौट आया। 31 अक्तूबर की उस काली सुबह प्रधानमंत्री पर सबसे पहले उसी ने गोली चलाई। केहर और सतवंत सिंह ने उसका साथ दिया। कुछ देर बाद बेअंत को ‘रहस्यमय’ कारणों से गोली मार दी गई। प्रधानमंत्री की हत्या के षड्यंत्र का वही मुख्य मोहरा था। उसका बयान कई तथ्यों को उजागर कर सकता था।

इस सनसनीखेज हत्याकांड से सबक लेकर राजीव गांधी सरकार ने प्रधानमंत्री और उनके परिजनों की सुरक्षा के लिए अलग विशेषाधिकार प्राप्त एजेंसी की स्थापना की। उसका नाम- ‘स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप’ यानी एसपीजी रखा गया। एसपीजी आज तक प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है। नियमों के अनुसार, खुद प्रधानमंत्री अपने सुरक्षाकर्मियों और कार्यकारी चिकित्सक के बिना आवास नहीं छोड़ सकते। यह सुखद है कि कुछ चूकों को छोड़ दें, तो इस एजेंसी के गठन से आज तक किसी भारतीय प्रधानमंत्री के नजदीक कोई हमलावर नहीं पहुंच सका है। भविष्य में ऐसा कभी न हो, इसके लिए एसपीजी का तंत्र छोटी-मोटी भूलों का भी संज्ञान ले अपनी व्यवस्था को दुरुस्त करता चलता है। लगभग सभी राज्यों ने आगे चलकर इसी तर्ज पर अति-विशिष्ट लोगों के लिए सफल सुरक्षा प्रोटोकॉल तैयार किए। उस हादसे से उपजा यह पहला सबक था। अति-विशिष्ट लोग इससे महफूज तो हुए, पर आम आदमी से उनकी दूरी बढ़ती चली गई। आज देश में सुरक्षा पाना जरूरत से ज्यादा रुतबे का प्रतीक बन गया है। लोकतंत्र के लिए यह शुभ शगुन नहीं है। इंदिरा गांधी पर हमले की खबर फैलते ही लोगों में गम और गुस्से के साथ चिंता व्याप्त हो गई थी। उनका सियासी-सामाजिक कद इतना बड़ा था कि कोई अन्य राजनेता उनके आस-पास नहीं ठहरता था। राजीव गांधी को सियासत में आए तब तक पांच साल भी पूरे नहीं हुए थे। लोग उन्हें विनम्र और ऊर्जावान मानते थे, पर वह इंदिरा गांधी की जगह ले सकते हैं, इसे स्वीकारने को कोई राजी न था। कांग्रेस ने 1980 के आम चुनाव में 353 सीटें जीतकर शानदार बहुमत हासिल किया था और उसके पास प्रणब मुखर्जी, नरसिंह राव, नारायण दत्त तिवारी जैसे दिग्गज थे। जनता की नजर में उनमें से एक भी इंदिरा गांधी की पासंग भर न था। ऐसे में, राजीव के राज्यारोहण की खबर फैलते ही यह सवाल भी आकार लेने लगा कि वह अपनी मां की रिक्ति को कैसे भरेंगे?

इसमें कोई दो राय नहीं कि इंदिरा गांधी भारत के विभाजक तत्वों से लड़ते हुए शहीद हुई थीं। उस समय पंजाब में आग लगी हुई थी, कश्मीर से चिनगारियां रह-रहकर फूट उठती थीं। उत्तर-पूर्व में भी अलगाव के अलाव सुलग रहे थे। आज पंजाब देश के शांत और संपन्न सूबों में गिना जाता है। उत्तर-पूर्व की अशांति अतीत की बात बन चुकी है। तमाम घात-प्रतिघात के बावजूद कश्मीर हिन्दुस्तान का मुकुट बना हुआ है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी देना पड़ेगा। मोदी सरकार ने तीन साल पहले न केवल विवादास्पद अनुच्छेद 370 खत्म किया, बल्कि सूबे को बेहतर प्रशासन के लिए दो हिस्सों में बांट केंद्र शासित क्षेत्र में तब्दील कर दिया।

श्रीमती इंदिरा गाँधी ने इकोले नौवेल्ले, बेक्स (स्विट्जरलैंड), इकोले इंटरनेशनेल, जिनेवा, पूना और बंबई में स्थित प्यूपिल्स ओन स्कूल, बैडमिंटन स्कूल, ब्रिस्टल, विश्व भारती, शांति निकेतन और समरविले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड जैसे प्रमुख संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की थी। उन्हें विश्व भर के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था। प्रभावशाली शैक्षिक पृष्ठभूमि के कारण उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा विशेष योग्यता प्रमाण दिया गया। श्रीमती इंदिरा गांधी शुरू से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहीं।बचपन में उन्होंने ‘बाल चरखा संघ’ की स्थापना की और असहयोग आंदोलन के दौरान कांग्रेस पार्टी की सहायता के लिए 1930 में बच्चों के सहयोग से ‘वानर सेना’ का निर्माण किया था।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ