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दिवाली की जगमग रात

दिवाली की जगमग रात

दीयों की रोशनी में जगमगा रही
दिवाली की जगमग रात 
जहां जहां राम ने चरण रखे 
हो रही खुशियों की बरसात

अमावस की काली रात भी 
रोशनी से रोशन हो रही 
घी के दिए जल रहे हैं 
घट घट खुशियां हो रही

सज रहा हर कोना कोना
उत्साह उमंग उर में भरा 
होठों पर मुस्कान सभी के 
श्रृंगार करे पावन धरा

खुशहाली अधरों पर छाई 
जगमग दिवाली रात आई 
सुख समृद्धि सबके जीवन में
 वैभव भरे बजे शहनाई

आस्था प्रेम सद्भावों के 
घट घट में दीप जलते रहे
जीवन ज्योति युक्त आलोकित
खुशियों के फूल खिलते रहे

रमाकांत सोनी सुदर्शन 
 नवलगढ़ 
जिला झुंझुनू राजस्थान 
रचना स्वरचित मौलिक है
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